पूनम नेगी
उन्होंने अपने जीवन में 24 गुरु बनाए जिनमें कीट, पक्षी और जानवर तक शामिल हैं। आइए जानते हैं कि कि उन्होंने गुरुओं से क्या सीखा। पृथ्वी- पृथ्वी से सहनशीलता व परोपकार की भावना सीख सकते हैं। पृथ्वी पर लोग कई प्रकार के आघात करते हैं। पृथ्वी हर आघात को परोपकार का भावना से सहन करती है।
कबूतर- कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे बच्चों को देखकर खुद भी जाल में जा फंसता है। इनसे यह सबक लिया जा सकता है कि किसी से बहुत ज्यादा मोह दु:ख की वजह होता है। सूर्य- सूर्य से दत्तात्रेय ने सीखा कि जिस तरह एक ही होने पर भी सूर्य अलग-अलग माध्यमों से अलग-अलग दिखाई देता है। आत्मा भी एक ही है, लेकिन कई रूपों में दिखाई देती है।
वायु- जिस प्रकार अच्छी या बुरी जगह पर जाने के बाद वायु का मूल रूप स्वच्छता ही है। उसी तरह अच्छे या बुरे लोगों के साथ रहने पर भी हमें अपनी अच्छाइयों को छोड़ना नहीं चाहिए।हिरण- हिरण उछल-कूद, संगीत, मौज-मस्ती में इतना खो जाता है कि उसे अपने आसपास शेर या अन्य किसी हिसंक जानवर के होने का आभास ही नहीं होता है और वह मारा जाता है। इससे यह सीखा जा सकता है कि हमें कभी भी लापरवाह नहीं होना चाहिए।
समुद्र- समुद्र सीख देता है कि जीवन के उतार-चढ़ाव में भी खुश और गतिशील रहना चाहिए।
पतंगा- पतंगा आग की ओर आकर्षित होकर जल जाता है। वह ये सीख देता है कि रूप-रंग के आकर्षण और झूठे मोह में उलझना नहीं चाहिए। आकाश- दत्तात्रेय ने आकाश से सीखा कि हर देश, काल, परिस्थिति में आसक्ति से दूर रहना चाहिए। जल- दत्तात्रेय ने जल से सीखा कि हमें सदैव पवित्र रहना चाहिए।
मधुमक्खी-मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करती है और एक दिन छत्ते से शहद निकालने वाला सारा शहद ले जाता है। इस बात से ये सीखा जा सकता है कि आवश्यकता से अधिक चीजों को एकत्र करके नहीं रखना चाहिए। मछली- हमें स्वाद का लोभी नहीं होना चाहिए। मछली किसी कांटे में फंसे मांस के टुकड़े को खाने के लिए चली जाती है और अंत में प्राण गंवा देती है।
कुरर पक्षी- चीजों को पास में रखने की सोच छोड़ देना चाहिए। कुरर पक्षी मांस के टुकड़े को चोंच में दबाए रहता है, लेकिन उसे खाता नहीं है।
बालक- छोटे बच्चे से सीखा कि हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न रहना चाहिए।आग- आग से दत्तात्रेय ने सीखा कि कैसे भी हालात हों, हमें उन हालातों में ढल जाना चाहिए। जिस प्रकार आग अलग-अलग लकडियों के बीच रहने के बाद भी एक जैसी ही नजर आती है।
चन्द्रमा- आत्मा लाभ-हानि से परे है। आत्मा भी किसी भी प्रकार के लाभ-हानि से बदलती नहीं है। कुमारी कन्या- कुमारी कन्या की तरह अकेले रहकर भी काम करते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए। शरकृत या तीर बनाने वाला- अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करना चाहिए। दत्तात्रेय ने एक तीर बनाने वाला देखा जो तीर बनाने में इतना मगन था कि उसके पास से राजा की सवारी निकल गई, पर उसका ध्यान भंग नहीं हुआ।
सांप- दत्तात्रेय ने सांप से सीखा कि किसी भी संन्यासी को अकेले ही जीवन व्यतीत करना चाहिए पर कभी भी एक स्थान पर रुककर नहीं रहना चाहिए। जगह-जगह ज्ञान बांटते रहना चाहिए।मकड़ी- मकड़ी से दत्तात्रेय ने सीखा कि भगवान भी मायाजाल रचते हैं और उसे मिटा भी देते हैं। भृंगी कीड़ा– इस कीड़े से दत्तात्रेय ने सीखा कि अच्छी हो या बुरी, जहां जैसी सोच में मन लगाएंगे, मन वैसा ही हो जाता है।
भौंरा- भौरें से दत्तात्रेय ने सीखा कि जहां भी सार्थक बात सीखने को मिले उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। जिस प्रकार भौरें अलग-अलग फूलों से पराग ले लेती है। अजगर– अजगर से सीखा कि हमें जीवन में संतोषी बनना चाहिए। जो मिल जाए, उसे ही खुशी-खुशी स्वीकार कर लेना चाहिए।