आपने भगवान शिव की कई ऐसी तस्वीरें देखी होगी जिसमें वे मां काली के पैरों के नीचे लेटे हुए हैं। कहते हैं कि महादेव ही एकमात्र ऐसे देव हैं जो आदि और अनंत हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि महाकाली के क्रोध को शांत करने के लिए आखिर खुद भगवान शिव को महाकाली के पैरों के नीचे क्यों आना पड़ा। क्या आपको इस घटना के बारे में जानकारी है? यदि नहीं तो आगे हम इसे पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार जानते हैं।

शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार एक बार रक्तबीज नामक दैत्य ने कठोर तपस्या की। जिसके बाद उसे वरदान मिला कि उसके शरीर से खून की एक भी बूंद जब धरती पर गिरेगी तो उससे सैकड़ों दैत्य बन जाएंगे। रक्तबीज इस शक्ति के बल पर निर्दोषों को परेशान करना शुरू कर दिया। परिणाम स्वरूप तीनों लोकों पर उसका आतंक मच गया। इतना ही नहीं, रक्तबीज देवताओं को भी ललकारने लगा। जिसके बाद देवताओं और दानवों के बीच भयंकर लड़ाई हुई। देवताओं ने दानवों को हरानेके लिए पूरी शक्ति लगा दी।

रक्तबीज के शरीर से खून की एक बूंद जमीन पर गिरती तो देखते ही देखते सैकड़ों दैत्य पैदा हो जाते थे। ऐसे में रक्तबीज को हराना लगभग नामुमकिन हो गया था। देवता लोग इस परेशानी को सुलझाने के लिए मां काली की शरण में गए। काली मां ने राक्षसों का वध करना शुरू कर दिया, लेकिन मां जब भी रक्तबीज के शरीर पर वार करती तो उसके खून से और भी राक्षस पैदा हो जाते। इसके लिए मां ने अपनी जीभ को बड़ा कर लिया। जिसके बाद रक्तबीज का रक्त जमीन पर गिरने की बजाय मां की जीभ पर गिरने लगी। क्रोध से उनके ओंठ फड़कने लगे और आंखें बड़ी-बड़ी हो गई।

महाकाली के विकराल रूप को देखकर सभी देवता परेशान हो गए, क्योंकि उन्हें शान्त करना किसी के बस की बात नहीं थी। दानवों की लाशें बिछने लगी। मां को शांत करने के लिए सभी देवता महादेव की शरण में पहुंच गए। भगवान शिव ने मां काली को शांत करने का भरसक प्रयास किया, लेकिन बात नहीं बनी। शिव जी उनके रास्ते पर लेट गए और जब मां के पैर उन पर पड़ी तो मां चौंक गईं। जिसके बाद उनका गुस्सा बिल्कुल शांत हो गया।