Bageshwar Dham Sarkar Pandit Dhirendra Krishna Shastri: बागेश्वर धाम के पुजारी और प्रसिद्ध कथावाचक धीरेंद्र महाराज आज कल चर्चा का विषय बने हुए हैं। चर्चा की वजह इनके विवादित बयान, दरबार लगाने का तरीका और अनजान व्यक्ति को सीधे नाम से बुला कर समस्याओं की पर्ची पकड़ाने का तरीका है। बागेश्वर धाम महाराज के नाम से प्रसिद्ध धीरेंद्र कृष्ण के प्रशंसक और भक्त बड़ी तादाद में हैं। इनसे आशीर्वाद लेने वालों में देवेंद्र फड़णवीस जैसे कई नेता हैं तो अरुण गोविल जैसे अभिनेता भी हैं।
आपको बता दें कि धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री शहरों में जा-जाकर श्रीराम कथा के साथ अपना दिव्य चमत्कारी दरबार लगाते हैं। अभी हाल में ही उन्होंने महाराष्ट्र के नागपुर में दरबार लगाया था। वहां महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने भी दरबार में पहुंचकर हाजिरी लगाई थी। वहीं कई और राजनेता और नेता बागेश्वर धाम में हाजिरी लगा चुके हैं।
वहीं अभी कुछ दिन पहले एक चैनल में संत धीरेंद्र ने बताया कि विज्ञान जहां से अंत होता है, आध्यात्म वहां से शुरू होता है। हम निरंतर मानव सेवा कर रहे हैं। साथ ही किस व्यक्ति से कौन सा कार्य कराना है। ये ईश्वर तय करते हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि बागेश्वर धाम बहुत पुराना है। लेकिन मीडिया के प्रभाव से यह अभी लोकप्रिय हुआ है।
उन्होंने कहा कोई भी इंसान भविष्य नहीं बता सकता है। लेकिन गुरु और हनुमान जी की कृपा से हम भविष्य में होने वाली घटनाओं का जरूर संकेत देते हैं।
परिवार के लोग नहीं मानते बाबा
वहीं जब संत धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री यह पूछा कि आपके परिवार के लोग दूसरे संतों के पास जाते हैं। वो कहते हैं कि धीरेंद्र ने एक आत्मा को कैद करके रखा है। इस सवाल पर धीरेंद्र ने कहा कि अगर हम कोई आत्मा को कैद करते तो हनुमान जी की सेवा कैसे कर पाते। साथ ही हनुमान जी को कैसे धारण कर पाते। जब उनसे पूछा गया कि परिवार वाले आपको बाबा नहीं मानते हैं और दूसरे संतों के पास जाते हैं तो उन्होंने कहा कि परिवार के लोगों के साथ सामंजस्य है, कोई विरोधाभास नहीं है।
जानिए कौन हैं धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री
आपको बता दें कि धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जन्म 4 जुलाई 1996 को हुआ। साथ ही इनके पिता का नाम रामकृपाल गर्ग और मां सरोज गर्ग है। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री शुरू में सत्यनारायण भगवान की कथा करते थे और बाद में छतरपुर के गांव गड़ा में बालाजी हनुमान मंदिर के पास दिव्य दरबार लगाने लगे और धीरे- धीरे दरबार में भक्तों- प्रंशसकों की भीड़ बढ़ने लगी।