जया एकादशी पर इस कथा को पढ़ने-सुनने से विशेष फल प्राप्ति की है मान्यता, यहां देखेंं
Jaya Ekadashi Vrat Katha: एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है, यानी इस दिन श्रीहरि की पूजा का विधान है

Magh Ekadashi 2021, Jaya Ekadashi Vrat Date: माघ महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी कहते हैं। इसे जानकार सबसे उत्तम व्रतों में से एक मानते हैं। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है, यानी इस दिन श्रीहरि की पूजा का विधान है। मान्यता है कि नारायण के आशीर्वाद के प्रभाव से मनुष्यों की सभी परेशानियां व तकलीफ दूर हो जाती हैं। कहते हैं कि जया एकादशी के दिन विधि-विधान से पूजा करने पर भक्तों को पिशाच अथवा भूत-प्रेत की योनि से मुक्ति मिल जाती है। इस बार ये एकादशी 23 फरवरी को है। माना जाता है कि इस दिन कथा का पाठ करने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है।
किस कथा का करें पाठ: पौराणिक कथा के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से पूछते करते हैं कि माघ शुक्ल एकादशी को किसे देवता की पूजा करनी चाहिए और इस एकादशी का क्या महात्मय है। इसके जवाब में श्रीकृष्ण कहते हैं कि माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है, इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति नीच योनि जैसे कि भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है।
जो मनुष्य इस दिन भगवान की पूजा सच्चे मन से करते हैं और व्रत रखते हैं, उसे भूत-पिशाच की योनि से मुक्ति मिल जाती है। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को जया एकादशी के प्रसंग के बारे में भी बताया।
एक बार नंदन वन में उत्सव चल रहा था। इस उत्सव में सभी देवता, जाने-माने संत और दिव्य पुरुष भी शामिल हुए थे। उस समय गंधर्व गाना गा रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रही थीं। सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था। इसी बीच पुष्यवती की नजर जैसे ही माल्यवान पर पड़ी वह उस पर मोहित हो गई।
पुष्यवती ये सोचकर सभा की मर्यादा को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी जिससे माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो जाए। माल्यवान गंधर्व कन्या की भंगिमा को देखकर सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक गया जिससे सुर ताल उसका साथ छोड़ गए।
दोनों ही अपनी धुन में एक-दूसरे की भावनाओं को प्रकट कर रहे थे, किंतु वे इस बात से अनजान थे कि देवराज इन्द्र उनकी इस नादानी पर क्रोधित हो रहे थे। तभी उन्होंने दोनों को नीच पिशाच योनि प्राप्त होने का श्राप दिया। इस श्राप से तत्काल दोनों पिशाच बन गए और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास बन गया।
पिशाच योनि में इन्हें काफी तकलीफों का सामना करना पड़ रहा था। इसी बीच माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि आई। इस दिन सौभाग्य से दोनों ने केवल फलाहार ग्रहण किया। उस रात ठंड काफी थी तो वे दोनों पूरी रात्रि जागते रहे, ठंड के कारण दोनों की मृत्यु हो गई। हालांकि, उनकी मृत्यु जया एकादशी का व्रत करके हुई जिसके बाद उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति मिली और वे स्वर्ग लोक में पहुंच गए।
इंद्रदेव उन दोनों को वहां देख हैरान हो गए और पिशाच योनि से मुक्ति कैसी मिली यह पूछा। माल्यवान ने कहा यह भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है। हम इस एकादशी के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हुए हैं। इंद्र इससे अति प्रसन्न हुए और कहा कि आप जगदीश्वर के भक्त हैं इसलिए आप अब से मेरे लिए आदरणीय है, आप स्वर्ग में आनंद से रहें।