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किसी काम का नहीं अहंकार

जब अंदर अंहकार पैदा हो जाता है तो स्वयं को सर्वशक्तिमान मानने की प्रवृत्ति आती है। ऐसा महसूस होने लगता है कि जैसे हमारी वजह से ही यह समाज और दुनिया चल रही है। ज्यों-ज्यों यह भ्रम बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों अंहकार भी बढ़ता जाता है।

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सुखी जीवन की कुंजी आत्म-महत्व की झूठी भावना को त्यागने में है। (Source: Pixabay)

कोरोना काल ने यह बता दिया है कि मनुष्य स्वयं इतना समर्थ नहीं है जितना कि वह समझता है। समय और परिस्थितियां ही किसी भी मनुष्य को समर्थ बनाती हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि समय और परिस्थिति के हिसाब से कर्म के महत्व को नकार दिया जाए। कर्म की मजबूत बुनियाद पर खड़े होकर ही आदमी सच्चे अर्थों में समर्थ बनता है। जब वह किसी भी रूप में समर्थ हो जाता है तो अपने अन्दर एक अंहकार पाल लेता है। इस अंहकार के कारण ही दूसरों को तुच्छ समझने का सिलसिला शुरू होता है।

जब अंदर अंहकार पैदा हो जाता है तो स्वयं को सर्वशक्तिमान मानने की प्रवृत्ति आती है। ऐसा महसूस होने लगता है कि जैसे हमारी वजह से ही यह समाज और दुनिया चल रही है। ज्यों-ज्यों यह भ्रम बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों अंहकार भी बढ़ता जाता है। लेकिन क्या वास्तव में हम इतने समर्थ हैं कि स्वयं को सर्वशक्तिमान समझने लगें? जब भ्रम जरूरत से ज्यादा बढ़ जाता है तो वह मूर्खता कहलाता है। इस मूर्खता के कारण कई बार हम अपने जीवन को संकट में डाल देते हैं। इस कोरोना काल में रोगी ऑक्सीजन पाने के लिए तड़पते रहे। श्मशान घाटों में जगह नहीं। लाइन में रखे गए शव दाह संस्कार का इंतजार करते रहे। यह सही है कि इस स्थिति के लिए काफी हद तक व्यवस्था जिम्मेदार है। लेकिन व्यवस्था के साथ एक बहुत छोटा सा विषाणु किस हद तक लाचार बना सकता है, यह सब प्रत्यक्ष रूप से देख रहे हैं। पुराने जमाने में जब महामारी फैलती थी तो तब ज्यादा साधन नहीं थे। चिकित्सा विज्ञान ने भी इतनी प्रगति नहीं की थी। लेकिन आज समस्त साधन मौजूद हैं।

कुछ अपवादों को छोड़कर जटिल से जटिल रोगों का उपचार संभव है। इसके बावजूद मनुष्य लाचार है। इस कोराना काल में न इनसान की धन-दौलत काम आ रही है, न उसका रसूख। इस दौर में रसूखदार लोगों को भी अस्पताल में बिस्तर और ऑक्सीजन नहीं मिले। दरअसल इस कोरोना काल ने यह बता दिया है कि हमारा सारा वैभव और अहंकार बेकार है।

आखिर किस बात का अहंकार है? निश्चित रूप से हम अपने शरीर और धन-दौलत पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करते हैं और अंतत: यही अहंकार का कारण बनता है। ऐसा नहीं है कि शरीर और धन-दौलत काम नहीं आते हैं। एक सीमा तक ये चीजें काम आती हैं। ये चीजें हमारे जीवन को अजर और अमर नहीं बना सकतीं। यह सही है कि एक गरीब आदमी धन के अभाव में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं भी नहीं पाता। इसी तरह निर्बल शरीर पर जीवाणु और विषाणु जल्दी हमला करते हैं और वह शीघ्र रोगी हो जाता है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि अमीर और मजबूत शरीर वाले आदमी को जीवन में कोई कष्ट नहीं मिलेगा और वह हर तरह के संकटों से मुक्त रहेगा। इसलिए हमें अपने शरीर और धन-दौलत पर कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए। जब हमारे अंदर अहंकार पैदा होता है तो यह कई तौर-तरीकों से हमारे जीवन पर प्रभाव डालता है। इससे मात्र हमारा जीवन ही प्रभावित नहीं होता, बल्कि सगे-संबंधियों और हमारे संपर्क में आए अन्य व्यक्तियों का जीवन भी प्रभावित होता है।

दरअसल अहंकार से कुछ हासिल नहीं होता, इसके बावजूद हम इसे नहीं छोड़ पाते हैं। हमें महसूस होता है कि हम अपने अहंकार से आगे बढ़ रहे हैं लेकिन हम जितना अधिक अहंकार करते हैं, उतना ही पीछे होते चले जाते हैं। इसलिए इसको त्यागकर ही हम सच्चे अर्थों में आगे बढ़ सकते हैं। कोरोना काल ने आदमी को बता दिया है कि अहंकार किसी काम का नहीं है। उसका जीवन तभी सार्थक हो सकता है जबकि वह अहंकार को पनपने का मौका ही न दें। अपने जीवन को हम स्वयं ही सार्थक बना सकते हैं, कोई दूसरा नहीं।

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First published on: 24-05-2021 at 00:50 IST
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