पूनम नेगी
सुंकष्टी चतुर्थी हिंदुओं का एक प्रसिद्ध पर्व है। हिंदू धर्मावलम्बी प्रत्येक शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश जी का पूजन करते हैं क्यूोंकि उन्हें प्रथम पूज्य की गरिमामय पदवी हासिल है। अपने भक्तों की सभी परेशानियों और बाधाओं को दूर कर बुद्धि, शक्ति, ज्ञान और विवेक के अनुदान-वरदान देने के कारण गजमुख गणेश विघ्नहर्ता और संकट मोचन भी कहलाते हैं। यूं तो हिन्दू कैलेंडर के अनुसार भगवान गणेश की आराधना के लिए निर्धारित चतुर्थी तिथि हर माह में दो बार आती है। इनमें पूर्णिमा के बाद आने वाले कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुथी कहते हैं और अमावस्या के बाद आने वाले शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।
शास्त्रीय मान्यता के अनुसार इन सभी चतुर्थी तिथियों में माघ माह के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी की सर्वाधिक महत्ता है। संकष्टी शब्द मूलत: संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसका आशय है कष्टों से मुक्ति। इस तरह संकष्टी चतुर्थी का अर्थ हुआ- बाधाओं को दूर करने वाली चतुर्थी। बोलचाल में यह पर्व सकट चौथ, माघी चतुर्थी और तिलचौथ के नाम से भी जाना जाता है। उत्तरी और दक्षिणी राज्यों में इसे अत्यधिक श्रद्धा व उत्साह संग मनाया जाता है।
पौराणिक मान्यता है कि सर्वप्रथम मां पार्वती ने पुत्र गणेश की मंगलकामना के लिए संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया था। तभी से संतान की मंगलकामना के इस व्रत का शुभारम्भ माना जाता है। एक अन्य मान्यता है कि पार्वती नंदन गणेश ने इस दिन देवताओं की मदद कर उनके संकट दूर किए थे तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उनको यह आशीर्वाद दिया था कि जो भी श्रद्धालु इस तिथि को गणेश जी का व्रत पूजन करेगा, उसके जीवन के सब संकट इस व्रत के प्रभाव से दूर हो जाएंगे। तभी से लोगों द्वारा यह व्रत रखा जाने लगा। सकट चौथ से जुड़ी एक लोककथा भी श्रद्धालु के बीच खूब लोकप्रिय है।
पुराने समय में एक गांव में एक बहुत ही गरीब और दृष्टिहीन बुजुर्ग महिला अपने बेटा-बहू के साथ रहती थी। वह गणेश जी की परम भक्त थी और बेटा-बहू के मिलकर श्रद्धा-भक्ति से नियमित उनका पूजन किया करती थी। एक बार माघ की संकष्टी चतुर्थी के दिन सभी गणेश जी की पूजा कर रहे थे; उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर गणेश जी प्रकट होकर उस बुजुर्ग महिला से बोले- मां! तू जो चाहे सो मांग ले। महिला बोली- मुझसे तो मांगना ही नहीं आता। कैसे और क्या मांगू? तब गणेशजी बोले- अपने बहू-बेटे से पूछकर मांग ले। पुत्र ने कहा- मां! तू धन मांग ले। बहू ने कहा- पोता मांग ले। महिला को लगा कि ये तो अपने-अपने मतलब की बात कह रहे हैं। अत: उसने पड़ोसिनों से पूछा।
पड़ोसिनों ने कहा- तू आंखों की रोशनी मांग ले। फिर तीनों पक्षों पर विचार कर महिला बोली- ह्ययदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझे नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, आंखों की रोशनी दें, नाती-पोता दें और अंत में मोक्ष दें।ह्ण यह सुनकर तब गणेशजी बोले- मां! तुमने तो हमें ठग लिया। फिर भी जो तूने मांगा है, वचन के अनुसार सब तुझे मिलेगा। तथास्तु कहकर गणेशजी अंतर्धान हो गए। तभी से उस माई के जीवन से प्रेरणा लेकर महिलाएं अपने बच्चों की सलामती के लिए माघ की संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने लगीं।
इस दिन हिंदू धर्म की महिलाएं अपनी संतान की दीघार्यु और खुशहाल जीवन की कामना के साथ निर्जल व्रत रखकर चौथ माता (पार्वती) और विघ्नहर्ता गणेश की जल, अक्षत, दूर्वा, पान, सुपारी से विधि विधान से पूजा अर्चना करती हैं। चूंकि यह समय शीत ऋतु का होता है, इसलिए इस पर्व पर गणेश जी को मोतीचूर व बेसन के स्थान पर तिल के लड्डू का भोग प्रसाद चढ़ाया जाता है। कारण कि तिल ऊष्ण प्रवृति का आहार तो होता ही है, धर्मशास्त्रों में इसे देवान्न की संज्ञा भी दी गई है। विष्णु, पद्म और ब्रह्मांड पुराण में तिल को महाऔषधि बताया गया है तथा तिल दान को महा पुण्यफलदायी माना गया है। है न इस प्रसाद के पीछे धर्म और विज्ञान की कितनी सुन्दर जुगलबंदी!