रमजान के पाक महीने में करीब एक महीने तक रोजा रखने के बाद ईद उल फितर का त्योहार मनाया जाता है। जिसे मीठी ईद के नाम से भी जाना जाता है। ईद की तैयारियां कुछ दिन पहले से ही शुरू हो जाती है। इस दिन नये कपड़े पहनकर नमाज अदा की जाती है। इस बार ईद पर्व 24 मई को मनाए जाने की उम्मीद है। ईद उल-फ़ित्र इस्लामी कैलेण्डर के दसवें महीने शव्वाल के पहले दिन मनाया जाता है।
इसलामी कैलंडर के सभी महीनों की तरह यह नया महीना भी नए चाँद के दिखने पर शुरू होता है। जिसे चांद रात कहा जाता है। ये त्योहार भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार है। जिसे आपस में लोग मिल जुलकर मनाते हैं। लेकिन इस बार कोरोना महामारी के कारण लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान में रखते हुए इस पर्व को मनाना होगा। Eid Ul Fitr के दिन पांचों वक्त की नमाज अदा कर खुदा से महीने भर की गई इबादत स्वीकार करने की प्रार्थना की जाती है और सुख-शांति और बरक्कत के लिए दुआएं मांगी जाती हैं।
रमजान के पूरे महीने रोजा रखने के बाद ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है। फित्र या फितर शब्द अरबी के ‘फतर’ शब्द से बना। जिसका अर्थ होता है टूटना। इस दिन रोजेदार दोपहर में 30 दिन बाद खाना खाते हैं। नमाज से पहले सभी अनुयायी कुरान के अनुसार, गरीबों को अनाज की नियत मात्रा दान देने की रस्म अदा करते हैं, जिसे फितरा देना कहा जाता है। फितर एक उपहार या दान है, जो रोजा तोड़ने पर दिया जाता है।
कहा जाता है कि शव्वाल महीने के पहले दिन हजरत मुहम्मद मक्का शहर से मदीना के लिए निकले थे। मक्का से मोहम्मद पैगंबर के प्रवास के बाद पवित्र शहर मदीना में ईद-उल-फितर का उत्सव शुरू हुआ। कहा ये भी जाता है कि पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई में इस दिन जीत हासिल की थी। जिस खुशी में सबका मुंह मीठा करवाया गया था, इसी कारण इस दिन को मीठी ईद के रुप में मनाया जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार हिजरी संवत 2 यानी 624 ईस्वी में पहली बार (करीब 1400 साल पहले) ईद-उल-फितर मनाया गया था।