Eid ul Fitr 2020: रमजान का पाक महीना खत्म होने के बाद ईद मनाई जाती है। और नए महीने शव्वाल की शुरुआत होती है। इसके पहले दिन ही ईद मनाई जाती है। मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए ये पर्व बेहद ही खास होता है। जिसे ईद-उल-फितर के नाम से भी जाना जाता है। इस्लामिक कैलेंडर (हिजरी ) के अनुसार रमजान के 10वें महीने यानी शव्वाल की पहली तारीख को ईद होती है। इस्लामी कैलेंडर में ये महीना चांद देखने के साथ शुरू होता है। जो इस साल 25 मई को मनाए जाने की उम्मीद है। अगर आज यानि कि 24 को चांद का दीदार हुआ तब सोमवार 25 मई को ईद पड़ेगी।
ईद उल फितर को मीठी ईद के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मीठे पकवान बनाए जाते हैं। खासतौर पर इस दिन सेंवईं बनती हैं। लोग इस खास पर्व पर एक दूसरे से गले मिलकर अपने गिले शिकवे दूर करते हैं। इस दिन नए कपड़े पहनकर नमाज अदा करते हुए अमन और चैन की दुआ मांगी जाती है। इस दिन खुदा का शुक्रिया अदा किया जाता है और जरूरतमंदों के लिए रकम दान की जाती है। जिसे जकात कहते हैं।
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ईद का इतिहास: मक्का से मोहम्मद पैगंबर के प्रवास के बाद पवित्र शहर मदीना में ईद-उल-फितर का उत्सव शुरू हुआ। माना जाता है कि इस दिन पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई जीती थी। इस जीत की खुशी में सबका मुंह मीठा करवाया गया, इसी कारण इस दिन को मीठी ईद या ईद उल फितर के रुप में मनाया जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार हिजरी संवत 2 यानी 624 ईस्वी में पहली बार ईद-उल-फितर मनाया गया था।
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नमाज शुरू करने से पहले ये किस उद्देश्य से पढ़ी जा रही है इसलिए ये अपने कानों को सुनाई दे, इतनी आवाज में कहा जाता है। इसी को नीयत कहते हैं। जुमे की नमाज की तुलना में ईद उल फितर की नमाज में 6 ज्यादा तकबीरात (अल्लाहु अकबर) होती है। पूरी नमाज के पांच मुख्य हिस्से होते हैं। ईद की नमाज में इमाम द्वारा खुतबा नमाज के बाद पढ़ा जाता है, जबकि शुक्रवार की नमाज में खुतबा नमाज अदा करने से पहले पढ़ा जाता है।
मुस्लिम समुदाय के पैगम्बर हजरत मुहम्मद हैं। 624 ईस्वी में बद्र के युद्ध में हजरत मुहम्मद विजयी हुए थे। इसके उपलक्ष्य में ईद का त्यौहार मनाया जाता है। पहली ईद उल-फ़ितर पैगम्बर मुहम्मद ने सन 624 ईसवी में जंग-ए-बदर के बाद मनाई थी। इस दिन मीठे पकवान बनाए और खाए गए थे और अपने से छोटों को ईदी दी गयी थी।
रमजान में 30 रोजे रखने के बाद मुस्लिम समुदाय ईद को सेलिब्रेट करते हैं। इसे बड़े ही उल्लास और प्रेम के साथ मनाया जाता है। ईद की तैयारियां बहुत पहले से शुरू कर दी जाती है, रोजे के दौरान ही रोजे खोलने वालों के लिए मार्केट में तरह-तरह के व्यंजन उपलब्ध कराये जाते है, लोग अपने घर में ऐसे ही व्यंजन बनाकर तैयार करते हैं। ईद में सभी लोग एक दूसरे के गले मिल कर मुबारक बाद देते हैं। घर में बच्चों और बड़ों के द्वारा नये- नये कपड़े पहने जाते है। लेकिन इस बार कोरोना की वजह से बाजार के साथ समुदाय में भी रौनक नहीं है। ना ही वैसा उत्साह बना हुआ है। इस ईद कोई गले भी नहीं मिल पाएगा।
रमजान माह इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना होता है। यहां पर इस्लाम एक चंद्र कैलेंडर है जिसका अर्थ है, हर महीना नया चाँद के साथ शुरू होने वाला। इस्लामी कैलेंडर ” एम वी इ ” के रूप में जाना जाता है और यह सामान्य कैलंडर की तुलना में ग्यारह दिन कम होता हैं । ईद-उल-फितर और ईद-उल-अधा दोनों एक दूसरे से अलग भी हैं। ईद-उल-अधा को बड़ी ईद के रूप में जाना जाता है।
इस्लाम में जकात एक महत्वपूर्ण पहलू है। जिसमें हर मुसलमान को धन, भोजन और कपड़े के रूप में कुछ न कुछ दान करने के लिए कहा गया है। कुरान में जकात अल-फित्र को जरूरी बताया है इसे रमजान के अंत में और लोगों को ईद की नमाज पर जाने से पहले दिया जाता है। इससे अल्लाह लोगों को खुशियां अता फरमाते हैं।
ईद की शुरुआत सुबह दिन की पहली प्रार्थना के साथ होती है। जिसे ईद उल फितर की नमाज कहते हैं। इसके बाद पूरा परिवार कुछ मीठा खाता है। वैसे ईद पर खजूर खाने की परंपरा है। फिर नए कपड़ें पहन कर ईद की नमाज अदा की जाती है।
ईद भाईचारे के त्योहार के तौर पर भी जाना जाता है। इस पाक दिन लोग जो नमाज पढ़ते हैं वह अल्लाह को शुक्रिया करते हैं और कुशल-मंगल रहने की दुआ करते हैं। ईद मुस्लिम समुदाय के लिए अल्लाह से इनाम लेने का दिन होता है। इस दिन लोग स्वादिष्ट पकवान बनाते हैं और नए-नए कपड़े पहनकर नमाज पढ़ने मस्जिद जाते हैं। साथ ही हर किसी को गले मिलकर ईद की मुबारकबाद देते हैं। इस दिन हर मुस्लिम का यह कर्तव्य होता है कि वह जरूरतमंदों को दान जरूर दें। रमजान के महीने में ईद से पहले फितरा और जकात देना हर हैसियतमंद मुसलमान पर फर्ज होता है।
हदीस के अनुसार ईद उल फित्र अल्लाह की दी हुई पेशकश या भेंट हैं। रमज़ान के पूरे महीने रोज़े रख मुस्लिम मन और तन से पवित्र हो जाते हैं और अल्लाह को लगातार याद कर एक आध्यात्मिक संबंध का अनुभव करते हैं। ईद उल फित्र इस अनुभव को और भी यादगार बनाने का काम करता है।
हिजरी कैलेंडर के अनुसार ईद साल में दो बार आती है। एक ईद होती है ईद-उल-फितर और दूसरी ईद-उल-जुहा। माना जाता है कि रमजान के महीने में ही शब-ए-कद्र को कुरआन-ए-पाक नाजिल हुआ था।
ईद उल फितर को मनाने का मकसद ये है कि पूरे महीने अल्लाह की इबादत करते हैं रोजा रखा जाता है और अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं जिसका अज्र मिलने का दिन ही ईद कहलाता है। इस उत्सव को पूरी दुनिया के मुस्लिम लोग बड़े ही धूम धाम से मनाते हैं। लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलते हैं। ईद की मुबारक देते हैं।
रमजान के पाक माह में व्यक्ति गर्मियों में भूख-प्यास बर्दाश्त करता है, उसी प्रकार जीवन में घटने वाली सभी परिस्थितियों को बर्दाश्त करना होता है। ईद उल-फितर त्याग की भावना समझता है, यह पर्व बताता है कि इंसानियत के लिए अपनी इच्छाओं का त्याग करना चाहिए, ताकि एक बेहतर समाज को बनाया जा सके। हमेशा भाईचारे के साथ रहना चाहिए ताकि हर घर में सुख और शांति रहे।
ईद से पहले सजते हैं बाजार और कपड़ों के खरीदारों से आती है रौनक, हालांकि इस बार ऐसा नहीं हो पा रहा है। कोरोना महामारी ने बाजार की रौनक छीन ली है। कुछ बाजार खुल तो गए हैं, लेकिन सोशल डिस्टेसिंग और अन्य तरह के ऐहतियात से लोग खरीदारी नहीं कर रहे हैं।
रमजान के पाक महीने में सूर्योदय से सूर्यास्त तक रोजा रखा जाता है। रोजा रखने वाले लोग सूर्योदय से पहले उठकर भोजन कर लेते हैं, इसे सहरी कहा जाता है। इसके बाद रोजा रखने वाले दिनभर कुछ भी नहीं खाते- पीते नहीं हैं। सूर्यास्त होने के बाद रोजा रखने वाले रोजा खोलते हैं, इसे इफ्तार कहा जाता है।
ईद की शुरुआत सुबह दिन की पहली प्रार्थना के साथ होती है। जिसे सलात अल-फ़ज़्र भी कहा जाता है। इसके बाद पूरा परिवार कुछ मीठा खाता है। वैसे ईद पर खजूर खाने की परंपरा है। फिर नए कपड़ों में सजकर लोग ईदगाह या एक बड़े खुले स्थान पर जाते हैं, जहां पूरा समुदाय एक साथ ईद की नमाज़ अदा करता है। प्रार्थना के बाद, ईद की बधाईयां दी जाती है। उस समय ईद-मुबारक कहा जाता है। ये एक दूसरे के प्यार और आपसी भाईचारे को दर्शाता है।
कोरोना वायरस लॉकडाउन के बीच केरल और जम्मू-कश्मीर में आज ईद मनाई जाएगी। वहीं बाकी पूरे देश में सोमवार 25 मई को ईद-उल-फितर होगी। श्रीनगर में ग्रैंड मुफ्ती नसीर-उल-इस्लाम ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में चांद दिखा है इसलिए यहां रविवार को ईद मनाई जाएगी। उन्होंने रेड जोन में रहने वाले लोगों से घर में ही ईद की नमाज पढ़ने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, ‘ग्रीन जोन के लोग कुछ निर्दिष्ट स्थानों पर नमाज अदा कर सकते हैं लेकिन मास्क पहनकर और सोशल डिस्टेंसिंग के पालन के साथ। सिर्फ 10 से 20 लोग ही एक बार में इकट्ठा हों।’
रमजान के दौरान ईद जितना करीब आता जाता है, उसके लिए हफ्तों पहले से तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। नए कपड़ों से लेकर पकवान बनाने तक की तैयारियां होती हैं। इस दौरान उन लोगों को जो गरीब है और सामान नहीं खरीद सकते हैं, उन्हें संपन्न मुस्लिम परिवार अपनी ओर से सामान खरीदकर देते हैं, जिससे उनके घरों में भी ईद की खुशियां आ सकें।
दीपक में अगर नूर ना होता;
तन्हा दिल यूँ मजबूर ना होता;
मैं आपको “ईद मुबारक” कहने जरूर आता;
अगर आपका घर इतना दूर ना होता.
ईद मुबारक!
-सुबह जल्दी उठकर फजर की नमाज अदा करने के खुद की सफाई और कपड़े वगैरह तैयार
-रखनागुस्ल (नहाना) करना
– मिस्वाक (दातून) करना
– सबसे उम्दा और साफ कपड़े पहनना। (नए या पुराने, लेकिन साफ)
– इत्र लगाना (सिर्फ पुरुष)
– ईदगाह जाने से पहले कुछ खाना
– नमाज से पहले फितरा, जकात अदा करना- ईदगाह में जल्दी पहुंचना- ईद की नमाज खुले मैदान में अदा करना। (बारिश या बर्फ गिरने की स्थिति में नहीं)- ईदगाह आने-जाने के लिए अलग-अलग रास्तों का इस्तेमाल करना- ईदगाह जाते वक्त यह तकबीर पढ़ना
ईद उल फितर को मीठी ईद के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मीठे पकवान बनाए जाते हैं। खासतौर पर इस दिन सेंवईं बनती हैं। लोग इस खास पर्व पर एक दूसरे से गले मिलकर अपने गिले शिकवे दूर करते हैं। इस दिन नए कपड़े पहनकर नमाज अदा करते हुए अमन और चैन की दुआ मांगी जाती है। इस दिन खुदा का शुक्रिया अदा किया जाता है और जरूरतमंदों के लिए रकम दान की जाती है। जिसे जकात कहते हैं।
दरगाह आला हजरत के प्रमुख मौलाना सुब्हान रजा खां सुब्हानी मियां और सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रजा कादरी अहसन मियां ने लोगो को ईद के साथ मुकद्दस रमजान में हुकूमत की गाइड लाइन और उलमा के मशवरे पर अमल करने के लिए मुबारकबाद देते हुए कहा है कि लोग ईद पर भी हर सूरत में खुद को किसी भी मजमे से बचाएं और सिर्फ अपने घर वालो के साथ ईद की खुशियां मनाएं। ईद पर बगैर जरूरत खरीदारी भी न करें। दरगाह की ओर से यह एलान पहले ही किया जा चुका है कि लोग घरों में ईद के बदले चार रकात नमाजे चाश्त अदा करें।
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार हिजरी संवत 2 यानी 624 ईस्वी में पहली बार (करीब 1400 साल पहले) ईद-उल-फितर मनाया गया था। जानकारों के अनुसार उत्सव मनाने के लिए अल्लाह ने कुरान में पहले से ही 2 सबसे पवित्र दिन बताए हैं। जिन्हें ईद-उल-फितर और ईद-उल-जुहा कहा गया है। इस प्रकार ईद मनाने की परंपरा अस्तित्व में आई।
मुस्लिम धर्म के अनुयायी विशेष पंचांग या कैलेंडर को मानते हैं जो कि चंद्रमा की उपस्थिति और अवलोकन द्वारा निर्धारित किया गया है। रमज़ान के 29-30 दिनों के बाद ईद का चांद नज़र आता है। रमज़ान के महीने की शुरुआत भी चांद से होती है और ख़त्म भी चांद देखने से होता है।
इस्लामिक कलेंडर में 29 या 30 दिन होते हैं। खाड़ी देशों में 23 अप्रैल को रमज़ान का चाँद दिखा था और 24 अप्रैल से रमजान शुरू हो गए थे। खाड़ी देशों में एक दिन पहले जुमा (शुक्रवार) को रमजान के 29 दिन पूरे हो गए थे। आज शनिवार को वहां 30 रोजे पूरे हो चुके हैं, रमजान 30 दिन ही होते हैं।
महीने भर का रोजा रविवार को चांद रात के साथ खत्म हो जाएगा। सोमवार को ईद होगी। और इसी के साथ शुरू हो जाएगा मुबारकबाद देने का सिलसिला। खुशियों के इस त्योहार पर हर तरफ बस मुबारकबाद की रहेगी गूंज।
कोरोना वायरस लॉकडाउन के बीच केरल और जम्मू-कश्मीर में आज ईद मनाई जाएगी। वहीं बाकी पूरे देश में सोमवार 25 मई को ईद-उल-फित्र होगी। केरल में मौलवियों ने रविवार को ईद की घोषणा की। बुखारी ने लोगों ने घर पर ही ईद की नमाज पढ़ने की अपील की।
इस त्योहार को शव्वाल महीने की शुरुआत में मनाया जाता है जो इस्लामिक कैलेंडर का 10वां महीना होता है जो रमजान महीने के खत्म होने के बाद शुरू होता है। इस दिन लोग नमाज अदा कर एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद देते हैं।
ईद उल फितर को मनाने का मकसद ये है कि पूरे महीने अल्लाह की इबादत करते हैं रोजा रखा जाता है और अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं जिसका अज्र मिलने का दिन ही ईद कहलाता है। इस उत्सव को पूरी दुनिया के मुस्लिम लोग बड़े ही धूम धाम से मनाते हैं। लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलते हैं। ईद की मुबारक देते हैं
रमजान में रोजा रखने से तन और मन दोनों में स्वच्छता आती है। बुरे विचारों और गलत कामों से दूर रहने की प्रेरणा मिलती है। यह आत्मसुधार का वक्त होता है।
ईद उल फितर को मीठी ईद के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मीठे पकवान बनाए जाते हैं। खासतौर पर इस दिन सेंवईं बनती हैं। लोग इस खास पर्व पर एक दूसरे से गले मिलकर अपने गिले शिकवे दूर करते हैं। इस दिन नए कपड़े पहनकर नमाज अदा करते हुए अमन और चैन की दुआ मांगी जाती है। इस दिन खुदा का शुक्रिया अदा किया जाता है और जरूरतमंदों के लिए रकम दान की जाती है। जिसे जकात कहते हैं।
आज खुदा की हम पर हो मेहरबानी;
करदे माफ़ हम लोगो की सारी नाफ़रमानी;
ईद का दिन आज आओ मिलकर करें यही वादा;
खुदा की ही राहों में हम चलेंगे सदा यही है हमारा वादा.
ईद मुबारक
दिए जलते और जगमगाते रहें;
हम आपको इसी तरह याद आते रहें;
जब तक जिंदगी है ये दुआ है हमारी;
आप ईद के चांद की तरह जगमगाते रहें.
आपको ईद की ढेरों मुबारकबाद
सदा हंसते रहो जैसे हंसते हैं फूल; दुनिया के सारे गम तुम जाओ भूल;
चारों तरफ फ़ैलाओ खुशियों के गीत; इसी उम्मीद के साथ तुम्हें मुबारक हो ईद.
महीने भर का रोजा रविवार को चांद रात के साथ खत्म हो जाएगा। सोमवार को ईद होगी। और इसी के साथ शुरू हो जाएगा मुबारकबाद देने का सिलसिला। खुशियों के इस त्योहार पर हर तरफ बस मुबारकबाद की रहेगी गूंज।
रमजान में पूरे महीने रोजे रखने का नियम है। यह सभी के लिए जरूरी है। इस दौरान पूरी साफ-सफाई से रहते हुए नमाज और तरावीह पढ़नी चाहिए। रोजे अगर छूट जाते हैं तो बाद में जरूर रखें।
रमजान में रोजे से मन को ताकत मिलती है। संयम, प्रेमभाव, त्याग और परोपकार की भावना का विकास होता है। इबादत करने से खुदा तक मन का जुड़ाव होता है।
रमजान में रोजा रखने से तन और मन दोनों में स्वच्छता आती है। बुरे विचारों और गलत कामों से दूर रहने की प्रेरणा मिलती है। यह आत्मसुधार का वक्त होता है।
इस त्योहार को शव्वाल महीने की शुरुआत में मनाया जाता है जो इस्लामिक कैलेंडर का 10वां महीना होता है जो रमजान महीने के खत्म होने के बाद शुरू होता है। इस दिन लोग नमाज अदा कर एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद देते हैं।
जल्दी उठकर फजर की नमाज अदा करने के खुद की सफाई और कपड़े वगैरह तैयार रखनागुस्ल (नहाना) करना- मिस्वाक (दातून) करना- सबसे उम्दा और साफ कपड़े पहनना। (नए या पुराने, लेकिन साफ)- इत्र लगाना (सिर्फ पुरुष)- ईदगाह जाने से पहले कुछ खाना- नमाज से पहले फितरा, जकात अदा करना- ईदगाह में जल्दी पहुंचना- ईद की नमाज खुले मैदान में अदा करना। (बारिश या बर्फ गिरने की स्थिति में नहीं)- ईदगाह आने-जाने के लिए अलग-अलग रास्तों का इस्तेमाल करना- ईदगाह जाते वक्त यह तकबीर पढ़ना
रमजान के पाक महीने में सूर्योदय से सूर्यास्त तक रोजा रखा जाता है। रोजा रखने वाले लोग सूर्योदय से पहले उठकर भोजन कर लेते हैं, इसे सहरी कहा जाता है। इसके बाद रोजा रखने वाले दिनभर कुछ भी नहीं खाते- पीते नहीं हैं। सूर्यास्त होने के बाद रोजा रखने वाले रोजा खोलते हैं, इसे इफ्तार कहा जाता है।
ईद उल फितर को मनाने का मकसद ये है कि पूरे महीने अल्लाह की इबादत करते हैं रोजा रखा जाता है और अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं जिसका अज्र मिलने का दिन ही ईद कहलाता है। इस उत्सव को पूरी दुनिया के मुस्लिम लोग बड़े ही धूम धाम से मनाते हैं। लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलते हैं। ईद की मुबारक देते हैं।