देवउठनी एकादशी 2017 व्रत विधि: जानिए किस विधि का प्रयोग करने से होता है एकादशी का व्रत सफल
Devutthana Ekadashi 2017 Vrat Vidhi, Katha: व्रत पूरा करने के लिए अगले दिन पूजा करने के बाद ही व्रत पूर्ण माना जाता है और उसके बाद ही भोजन किया जाता है।

आषाढ़ माह की एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। एक साल में 24 एकादशी होती हैं। एक महीने में दो एकादशी आती हैं। सभी एकादशी में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी को देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन के धार्मिक मान्यता है कि इस दिन श्री हरि राजा बलि के राज्य से चातुर्मास का विश्राम पूरा करके बैकुंठ लौटे थे। इसके साथ इस दिन तुलसी विवाह भी किया जाता है।
व्रत विधि-
इस दिन सूर्योदय से पहले उठना चाहिए और उसके बाद अपने सभी कार्य करके स्नान कर लेना चाहिए। इस दिन जो लोग व्रत कर रहे हैं वो सूरज के उगने से पहले ही व्रत का संकल्प करें और सूरज के उगने के बाद सूर्य देव को अर्ध्य अर्पित करें। इस दिन नदी या कुएं के पानी से स्नान करना शुभ माना जाता है। व्रत करने वालों को विशेष ध्यान रखना चाहिए कि इस दिन बिना आहार ग्रहण किए व्रत किया जाता है। व्रत पूरा करने के लिए अगले दिन पूजा करने के बाद ही व्रत पूर्ण माना जाता है और उसके बाद ही भोजन किया जाता है। कई लोग इस दिन जागरण भी करते हैं और उसमें भजन, कीर्तन जैसे कार्य करते हैं। इस दिन पूजा के दौरान बेल पत्र, शमी पत्र, और तुलसी चढ़ाने की मान्यता है। देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का भी महत्व माना जाता है।
वैसे तो रोजाना तुलसी के पौधे को जल चढ़ाएं लेकिन इस दिन विशेषकर ये प्रक्रिया करें और तुलसी के आगे दीया-बाती अवश्य करें। एकादशी के दिन शुभ मुहूर्त देखकर तुलसी के विवाह के लिए मंडप सजाएं। गन्नों को मंडप के चारों तरफ खड़ा करें और नया पीले रंग का कपड़ा लेकर मंडप बनाए। इसके बीच हवन कुंड रखें। मंडप के चारों तरफ तोरण सजाएं। इसके बाद तुलसी के साथ आंवले का गमला लगाएं। तुलसी का पंचामृत से पूजा करें। इसके बाद तुलसी की दशाक्षरी मंत्र से पूजा करें।
दशाक्षरी मंत्र- श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वृन्दावन्यै स्वाहा।
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