Chhath Puja 2019 Vrat Katha, Kahani, Story, Puja Vidhi: छठ का महापर्व 31 अक्टूबर से शुरू हो चुका है जो 3 नवंबर तक चलेगा। ये पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होता है जिसके पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन व्रत रख सूर्य को संझिया अर्घ्य और चौथे दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत संपन्न किया जाता है। ये व्रत इस तरह से 36 घंटे तक निर्जला रखा जाता है और इस व्रत में छठ मैया और सूर्य देव की अराधना की जाती है। जानिए छठ व्रत की पूजा सामग्री, विधि और कथा…
छठ पूजा की सामग्री लिस्ट (Chhath Puja Samagri List) :
प्रसाद रखने के लिए बांस की दो तीन बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने 3 सूप, लोटा, थाली, दूध और जल के लिए ग्लास, नए वस्त्र साड़ी-कुर्ता पजामा, चावल, लाल सिंदूर, धूप और बड़ा दीपक, पानी वाला नारियल, गन्ना जिसमें पत्ता लगा हो, सुथनी और शकरकंदी, हल्दी और अदरक का पौधा, नाशपाती और बड़ा वाला मीठा नींबू, शहद की डिब्बी, पान और साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, कुमकुम, चन्दन, मिठाई
प्रसाद : ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पूड़ी, खजूर, सूजी का हलवा, चावल का बना लड्डू आदि प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाएगा।
फल सब्जी : टोकरी में नई फल सब्जियां भी रखी जाती हैं जैसे कि केला, अनानास, सेब, सिंघाड़ा, मूली, अदरक पत्ते, गन्ना, कच्ची हल्दी, नारियल।
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छठ पूजा की विधि और सूर्य को अर्घ्य देने के मुहूर्त तक की सभी जानकारी यहां जानिए
छठ पूजा की विधि (Chhath Puja Vidhi) :
– कार्तिक शुक्ल षष्ठी को पूरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। इस दिन व्रती घर पर बनाए गए पकवानों और पूजन सामग्री लेकर आस पास के घाट पर पहुंचते हैं।
– घाट पर ईख का घर बनाकर बड़ा दीपक जलाया जाता है।
– व्रती घाट में स्नान करते हैं और पानी में रहकर ही ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
– फिर घर जाकर सूर्य देवता का ध्यान करते हुए रात्रि भर जागरण किया जाता है। जिसमें छठी माता के गीत गाये जाते हैं।
– सप्तमी के दिन यानी व्रत के चौथे और आखिरी दिन सूर्योदय से पहले घाट पर पहुंचें। इस दौरान अपने साथ पकवानों की टोकरियां, नारियल और फल भी रखें।
– फिर उगते हुए सूर्य को जल दें। छठी की कथा सुनें और प्रसाद बांटे।
– आखिर में व्रती प्रसाद ग्रहण कर अपना व्रत खोलें।
छठी माता की कथा (Chati Mata Ki Katha/Chhath Katha) :
प्रियव्रत नाम के एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। दोनों की कोई संतान नहीं थी। इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे। उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं।
नौ महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ। इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दुख हुआ। संतान शोक में वह आत्म हत्या का मन बना लिया। लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुईं।
देवी ने राजा को कहा कि मैं षष्ठी देवी हूं। मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं। इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है, मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण कर देती हूं। यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी। देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया।
राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि के दिन देवी षष्ठी की पूरे विधि-विधान से पूजा की। इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा। छठ व्रत के संदर्भ में एक अन्य कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।
छठ व्रत पूजन का महत्व (Chhath Puja Significance) :
छठ पर्व में छठ मैया की पूजा की जाती है। इन्हें भगवान सूर्यदेव की बहन माना जाता है। छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। छठी मैया का ध्यान करते हुए लोग मां गंगा-यमुना या किसी नदी के किनारे इस पूजा को मनाते हैं। जिसमें सूर्य की पूजा अनिवार्य है साथ ही किसी नदी में स्नान करना भी। इस पर्व में पहले दिन घर की साफ सफाई की जाती है। छठ के चार दिनों तक शुद्ध शाकाहारी भोजन किया जाता है। पूरे भक्तिभाव और विधि विधान से छठ व्रत करने वाला व्यक्ति सुखी और साधनसंपन्न होता है। साथ ही संतान प्राप्ति के लिए भी ये व्रत उत्तम माना गया है। इस व्रत को 36 घंटों तक निर्जला रखा जाता है।

