ईशा फाउण्डेशन के संस्थापक सद्गुरु यूरोप और अरब देशों की यात्रा के बाद भारत लौट आए हैं। वह ओमान के सुल्तान काबूस बंदरगाह से चलकर तीन दिन भारतीय महासागर में बिताने के बाद गुजरात के जामनगर बंदरगाह पर उतरे। बता दें कि सद्गुरु अपने ‘मिट्टी के लिए’(सेव सॉइल) अभियान के तहत इन देशों की यात्रा पर थे। जामनगर के बंदरगाह पर भारतीय नौसेना ने अपने बैंड पर ‘सेव-सॉयल’ एंथम बजाकर सद्गुरु का भव्य स्वागत किया।
बंदरगाह पर सद्गुरु का स्वागत करने के लिए जामनगर में जाम साहब की प्रतिनिधि, एकताबा सोढ़ा के साथ, धार्मिक और राजनीतिक नेता, भारतीय सेना, नौसेना, और वायुसेना के कमांडिंग ऑफिसर मौजूद थे।
क्यों कर रहे हैं यात्रा? ईशा फाउण्डेशन के संस्थापक सद्गुरु ने बीते मार्च में मिट्टी के विलुप्त होने को रोकने के लिए वैश्विक जागरुकता अभियान की शुरुआत की थी। इसी क्रम में वह फिलहाल 30,000 किमी की 100 दिन की ‘मिट्टी के लिए यात्रा’ अभियान पर हैं। उनकी यात्रा 21 मार्च को लंदन से शुरू हुई थी और कावेरी नदी घाटी में जून के अंत में समाप्त होगी।
क्या है अभियान का मकसद? मिट्टी बचाओ अभियान का मुख्य मकसद भारत समेत दुनियाभर के देशों को जागरूक करना है ताकि तत्काल नीतियों में बदलाव किया जाए और कृषि-भूमि में कम से कम 3-6 प्रतिशत जैविक तत्व का होना अनिवार्य बनाया जाए। सद्गुरु के मुताबिक मृदा वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि इस न्यूनतम जैविक तत्व के बिना मिट्टी एक तरीके से खत्म हो जाएगी। इस घटना को ‘मिट्टी का विलुप्त होना’ कहा जा रहा है।
भारत के सामने कैसा खतरा? सद्गुरु के मुताबिक भारत में कृषि-भूमि में औसत जैविक तत्व 0.68 प्रतिशत होने का अनुमान है, इस कारण मरुस्थलीकरण होने का बड़ा खतरा है। देश की लगभग 30 प्रतिशत उपजाऊ मिट्टी बंजर हो गई है और उपज नहीं दे रही है। ऐसा अनुमान है कि दुनिया भर में उपजाऊ जमीन का लगभग 25 प्रतिशत रेगिस्तान बन गया है।
UN ने भी दी है चेतावनी: संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि इस दर से मिट्टी के खराब होने से धरती का 90 प्रतिशत 2050 तक रेगिस्तान में बदल जाएगा, जिसमें बस 30 साल बचे हैं। मिट्टी के इस तरह बंजर होने से दुनिया भर में अभूतपूर्व पर्यावरणीय, आर्थिक, और सामाजिक तबाही आ सकती है। जिसमें तीव्र जलवायु परिवर्तन, वैश्विक खाद्य और जल संकट, नृशंस गृह युद्ध, और दुनिया भर में पलायन जैसा खतरा पैदा हो सकता है।