scorecardresearch

Joshimath Sinking: क्यों जोशीमठ की इमारतों में आ रही दरारें? जानिए किस वजह से धंस रही जमीन

Joshimath Sinking: जोशीमठ जमीन से 6107 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और यहां की आबादी लगभग 23,000 है।

joshimath sinking| Uttarakhand| joshimath|
Joshimath के कई घरों में दरारें आई हैं (ANI PHOTO)

उत्तराखंड के जोशीमठ (Joshimath in Uttarakhand) के कई घरों में दरारें आ गई है और प्रशासन राहत-बचाव कार्य में जुटा हुआ है। अब सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है कि आखिर जोशीमठ की जमीन क्यों धंस रही है? जोशीमठ के करीब 600 से अधिक घरों में अब तक क्रैक आ चुके हैं।

Joshimath 6107 फीट की ऊंचाई पर स्थित है

6107 फीट की ऊंचाई पर स्थित जोशीमठ लगभग 23,000 की आबादी वाला उत्तराखंड के चमोली जिले का एक पहाड़ी शहर है। यह हिंदुओं द्वारा पूजनीय बद्रीनाथ मंदिर, हेमकुंड साहिब का सिख तीर्थ स्थल, फूलों की घाटी जो यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है जोशीमठ में अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग गंतव्य भी है और विभिन्न ट्रेकिंग स्थान हैं। इसके कारण होटल और बाज़ार का निर्माण हुआ है जो शहर में टूरिस्ट को आकर्षित करता है।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक अक्टूबर 2021 में शहर के गांधीनगर और सुनील वार्ड के निवासियों ने अपने घरों में दरारें देखीं। 2022 के मध्य तक रविग्राम वार्ड में भी दरारें आ गईं। सितंबर 2022 में उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें मुख्य रूप से शहर में खराब नियोजित निर्माण को भूमि धंसने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण बताया गया। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अपर्याप्त जल निकासी और अपशिष्ट जल निपटान प्रणाली ने समस्या को बढ़ा दिया है।

श्रीनगर गढ़वाल स्थित हेमवती नंदन बहुगुणा (HNB) गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूविज्ञानी यशपाल सुंद्रियाल ने कहा, “चूंकि जोशीमठ में वेस्ट वाटर के प्रबंधन के लिए कोई व्यवस्था नहीं है, इसलिए अधिकांश इमारतों में गड्ढ़े होते हैं, जिसके माध्यम से वेस्ट वाटर जमीन में प्रवेश करता है। यह वेस्ट वाटर फिर सामग्री को जमीन में धकेल देता है, जिसके परिणामस्वरूप भूमि डूब जाती है। (यह भी पढ़ें: लगभग 50 साल पहले 18 सदस्यीय समिति ने चेतावनी दी थी कि जोशीमठ शहर ‘भौगोलिक रूप से अस्थिर’ है।)

राज्य भर में कई जगहों पर इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। चमोली जिले में ही 2013 की बाढ़ के बाद जोशीमठ के पास खिरोन-लामबागर ग्राम सभा के अंतर्गत आने वाले गांव डूबने लगे थे। हालांकि उत्तराखंड डिजास्टर मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट सेंटर (DMMC) के कार्यकारी निदेशक पीयूष रौतेला (Piyoosh Rautela) ने कहा कि जोशीमठ की स्थिति अलग थी। उन्होंने कहा, “पूरे उत्तराखंड के गांवों में डूबने की घटनाएं देखी गई हैं, लेकिन यह पहली बार है कि किसी शहरी क्षेत्र में भूमि डूबने का मामला सामने आया है।”

2009 में घटी थी घटना

देहरादून स्थित डीएमएमसी और गढ़वाल विश्वविद्यालय (Garhwal University) द्वारा किए गए 2010 के एक अध्ययन में कहा गया है कि 24 दिसंबर, 2009 को तपोवन विष्णुगढ़ परियोजना के लिए औली (जोशीमठ के पास) से लगभग एक किलोमीटर नीचे एक सुरंग का निर्माण किया जा रहा था। इस्तेमाल की जा रही टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) ने सेलंग गांव (सेलांग जोशीमठ से लगभग 5 किमी दूर है) से 3 किमी दूर एक जलभृत को तोड़ गया, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 700-800 लीटर प्रति सेकंड की दर से पानी निकलने लगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह प्रति दिन 20-30 लाख लोगों के लिए पर्याप्त था।

जोशीमठ निवासी पूरन बिलंगवाल (43) ने कहा, “घटना के तुरंत बाद जोशीमठ में भूजल स्रोत सूखने लगे ‘सुनील कुंड’, जो यहां का एक प्रमुख मीठे पानी का स्रोत था, अचानक सूख गया। हालांकि डिस्चार्ज (पानी का निकलना) समय के साथ कम हो गया, लेकिन यह कभी भी पूरी तरह बंद नहीं हुआ।”

भूवैज्ञानिक नवीन जुयाल (सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त High Powered Committee (HPC) के सदस्य के रूप में चार धाम परियोजना की समीक्षा की) ने कहा, “हम में से कुछ ने सुझाव दिया था कि सड़क तब तक नहीं बनाई जानी चाहिए जब तक कि एक भू-तकनीकी व्यवहार्यता अध्ययन नहीं किया जाता है। हालांकि हमारे सुझाव को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया और आवश्यक वैज्ञानिक रिपोर्ट के बिना सड़क निर्माण की अनुमति दे दी गई।” स्थानीय लोगों ने बताया कि बाइपास के निर्माण में ड्रिलिंग के साथ-साथ विस्फोटकों का भी इस्तेमाल किया गया है।

पढें राज्य (Rajya News) खबरें, ताजा हिंदी समाचार (Latest Hindi News)के लिए डाउनलोड करें Hindi News App.

First published on: 10-01-2023 at 15:57 IST
अपडेट