26 जनवरी की पूर्व संध्या पर केंद्र सरकार ने देश की महान हस्तियों को भारत रत्न, पद्म भूषण और पद्म श्री सम्मान देने की घोषणा की। भारत रत्न मिलने वालों में चंडिकादास अमृतराव देशमुख उर्फ नानाजी का नाम भी है, जिन्हें मरणोपरांत यह सम्मान दिया जा रहा है। ऐसे में चर्चा होने लगी कि क्या सिर्फ जनसंघ के बड़े नेता होने की वजह से नानाजी को देश का सबसे बड़ा सम्मान मिल रहा है? क्या है इसकी असल वजह और क्यों मोदी सरकार ने उन्हें चुना, जानते हैं इस रिपोर्ट में।
1980 तक की राजनीति, फिर लिया संन्यास : नानाजी देशमुख 1980 तक राजनीति में सक्रिय रहे। कहा जाता है कि मध्य प्रदेश के चित्रकूट से उनका गहरा नाता था। राजनीति से संन्यास लेने के बाद वे सबसे पहले चित्रकूट गए और हमेशा वहीं रहे। उन्हें राष्ट्र ऋषि भी कहा जाता है। इसके अलावा उन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है।
खुद खोला देश का पहला ग्रामीण विश्वविद्यालय : नानाजी ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की स्मृति में स्थापित दीनदयाल शोध संस्थान (डीआरआई) के तहत संचालित विभिन्न प्रकल्पों की स्थापना की। इसका विकास और विस्तार ही उनका एकमात्र ध्येय रहा। इनके अलावा खेतीबाड़ी, कुटीर उद्योग, ग्रामीण शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का उन्होंने विशेष ध्यान रखा। नानाजी ने चित्रकूट में ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की थी, जो देश का पहला ग्रामीण विश्वविद्यालय है।
1999 में राज्यसभा सदस्य बने : नानाजी ग्रामोदय विश्वविद्यालय के पहले कुलाधिपति बने थे। वहीं, 1999 में एनडीए सरकार ने उन्हें राज्य सभा के लिए मनोनीत किया। 2005 में नानाजी ने 500 गांवों को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प लिया। इसके तहत कई गांवों में ग्राम शिल्पियों की टीम बनाई गई। वहीं, 26 जनवरी 2005 को चित्रकूट परियोजना का शुभारंभ किया।
अपनी देह तक कर दी दान : नानाजी देशमुख ने 27 फरवरी 2011 को चित्रकूट स्थित अपने आवास सियाराम कुटीर में अंतिम सांस ली थी। उस वक्त वे 95 वर्ष के थे। नानाजी ने अपनी वसीयत में अपनी देह मेडिकल के शोध कार्य के लिए दान कर दी थी। इसकी घोषणा भी उन्होंने 1997 में ही कर दी थी। नानाजी का पार्थिव शरीर आज भी नई दिल्ली स्थित एम्स में सुरक्षित रखा हुआ है।