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उत्तराखंड: देवभूमि में कई जगह आचमन लायक भी नहीं बचा गंगा जल, श्रद्धालुओं की आस्था पर पहुंच रही चोट

पवित्र व शुद्ध जल वाली गंगा का पानी काला हो चुका है। स्वच्छ गंगा का नारा देकर कुछ संगठन तो बने लेकिन उनका कोई कार्य गंगा में जहर घुलने से नहीं रोक सका है।

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स्वच्छ गंगा का नारा देकर कुछ संगठन तो बने लेकिन उनका कोई कार्य गंगा में जहर घुलने से नहीं रोक सका है। जीवनदायिनी गंगा का अमृत सा जल आचमन और स्नान लायक नहीं रह गया है।

मोक्षदायिनी, पतितपावनी गंगा महज सामान्य जलधारा नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक वैभव, श्रद्धा एवं आस्था की प्रतीक मानी जाती हैं। बढ़ते प्रदूषण के कारण पवित्र गंगा अब मैली होती जा रही है। जिसके कारण गंगा स्रान के लिए श्रद्धालुओं के आने की संख्या भी कम होने लगी है। गंगा अब पाप धोते-धोते खुद ही मैली हो गई है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट पर विश्वास करें तो अपने उद्गम स्थल पर ही मोक्षदायिनी गंगा मैली हो रही है। इससे श्रद्धालुओं की आस्था पर चोट पहुंच रही है।

लक्ष्मण झूला से पशुलोक बैराज तक ए श्रेणी, पशुलोक बैराज के आगे जल बी श्रेणी का है

रिपोर्ट के अनुसार लक्ष्मण झूला, मुनि की रेती, ऋषिकेश से लेकर स्वर्गाश्रम, पशुलोक बैराज तक गंगाजल आचमन के लायक है और यहां गंगाजल की गुणवत्ता ए श्रेणी की मानी गई है जबकि पशुलोक बैराज से आगे लक्कड़ घाट से गंगाजल की गुणवत्ता घटकर बी श्रेणी की हो जाती है। यहां पर गंगाजल आचमन लायक नहीं बल्कि केवल नहाने लायक ही रह जाता है। इसका सबसे प्रमुख कारण श्यामपुर से लेकर रायवाला तक गंदे नाले अब भी गंगा में गिर रहे हैं।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी जांच रिपोर्ट में ये सब बातें कहीं हैं। बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि ऋषिकेश में सीवर शोधन संयंत्र के निर्माण और नालों के टेप होने के बाद गंगाजल में प्रदूषण का स्तर पहले से बहुत कम हुआ है। इसीलिए लक्ष्मण झूला, मुनि की रेती, स्वर्गाश्रम और पशु लोक बैराज में गंगा जल आचमन योग्य है। पेयजल निगम निर्माण एवं अनुरक्षण इकाई के परियोजना प्रबंधक एसके वर्मा का कहना है कि सीवर शोधन संयत्र के निर्माण से गंगा में गंदगी गिरने पर अंकुश लगा है।

ऋषिकेश 238 करोड़ रुपए की लागत से तीन सीवर शोधन संयंत्र का निर्माण किया गया

ग्रामीण क्षेत्रों को सीवर लाइन से जोड़ने, नालों को टेप करने, नए एसटीपी के निर्माण और 15 साल से पुराने सीवर शोधन संयंत्र की क्षमता बढ़ाने पर कार्य किया जा रहा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार ‘नमामि गंगे’ अभियान में बड़े पैमाने पर गंगा में गिरने वाले नालों को टेप किया गया। गंदे पानी के शोधन के लिए एसटीपी भी बनाए गए हैं। ऋषिकेश 238 करोड़ रुपए की लागत से तीन सीवर शोधन संयंत्र का निर्माण किया गया।

2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लक्कड़ घाट में 26 एमएलडी, चंद्रेश्वर नगर में 7.5 एमएलडी और चोरपानी में 5 एमएलडी के संयंत्र का राष्ट्र को समर्पित किए थे किया। इन संयंत्रों यह निर्माण और चालू होने के बाद क्षेत्र में गंगा जल की गुणवत्ता में जबरदस्त सुधार आया है। जबकि श्यामपुर और रायवाला क्षेत्र में गंदे नालों को अब तक टेप नहीं किया गया है।

रंभा, सौंग और सुसवा नदी में भी गंदे नाले गिर रहे हैं, जो आखिर में गंगा में मिलते हैं। गंगा की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए श्यामपुर और रायवाला क्षेत्र में भी नालों को टेप करने ओर एसटीपी के निर्माण की जरूरत है इस समय रायवाला श्यामपुर क्षेत्र में रंभा नदी, कृष्णानगर नाला, सुसवा, सौंग, बंगाला नाला, ग्वेला नाला, प्रतीतनगर सिंचाई नाले गिर रहे हैं।

पवित्र व शुद्ध जल वाली गंगा का पानी काला हो चुका है। स्वच्छ गंगा का नारा देकर कुछ संगठन तो बने लेकिन उनका कोई कार्य गंगा में जहर घुलने से नहीं रोक सका है। जीवनदायिनी गंगा का अमृत सा जल आचमन और स्नान लायक नहीं रह गया है।

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First published on: 22-03-2023 at 06:01 IST