उत्तराखंड के ग्रामीण विकास और पलायन निवारण आयोग ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि पांच वर्षों में उत्तराखंड के गांवों से स्थायी पलायन की दर में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है। राज्य सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में आयोग ने कहा है कि 2008 से 2018 तक की दस वर्षों की अवधि में 1,18,981 लोगों ने अपने गांवों से स्थायी रूप से पलायन किया था, जबकि जनवरी 2018 से सितंबर 2022 के बीच स्थायी पलायन करने वालों की संख्या घटकर 28,531 रह गई।
‘पारंपरिक कृषि परिदृश्य अब भी पांच साल पहले जितना ही निराशाजनक’
आयोग के उपाध्यक्ष एसएस नेगी ने स्थायी पलायन में दर्ज की गई इस गिरावट का श्रेय राज्य के बाहर जाकर जीवन यापन करने की बजाय घर पर उपलब्ध स्व-रोजगार के साधनों का लाभ उठाने के प्रति स्थानीय लोगों के बढ़ते रुझान को दिया। नेगी ने कहा, ‘पारंपरिक कृषि परिदृश्य अभी भी पांच साल पहले जितना ही निराशाजनक है, लेकिन लोग अपना घर छोड़ने की बजाय मत्स्य पालन, मुर्गीपालन और डेयरी फार्मिंग क्षेत्रों में उपलब्ध अवसरों से लोग रुक रहे हैं।
अल्मोड़ा, टिहरी और पौड़ी स्थायी पलायन का दंश झेलने वाले सर्वाधिक प्रभावित जिले
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना जैसी योजनाओं ने भी उन्हें घर पर स्वरोजगार के सर्वश्रेष्ठ मौकों का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अल्मोड़ा, टिहरी और पौड़ी स्थायी पलायन का दंश झेलने वाले सर्वाधिक प्रभावित जिलों में शामिल हैं। पांच वर्ष में अल्मोड़ा से 5,926, टिहरी से 5,653 और पौड़ी से 5,474 लोगों ने स्थायी रूप से पलायन किया है। नैनीताल से 2,014, चमोली से 1,722, पिथौरागढ़ से 1,713, चंपावत से 1,588, बागेश्वर से 1,403, हरिद्वार से 1,029, उत्तरकाशी से 900, रुद्रप्रयाग से 715, देहरादून से 312 और उधम सिंह नगर से 82 लोग स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, पांच वर्षों में 24 और गांव पूरी तरह से निर्जन हो गए हैं और इसके साथ ही वीरान मकानों और बंजर भूमि वाले गांवों की संख्या 1,792 तक पहुंच गयी है। आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा, वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में 1,034 निर्जन गांव थे।
2018 तक 734 और गांव इस सूची में जुड़े जबकि 2022 में 24 का और इजाफा हो गया जिससे निर्जन गांवों की कुल संख्या बढ़कर 1,792 तक पहुंच गई। हालांकि, लोगों का अस्थायी पलायन अभी जारी है, जहां आजीविका की तलाश में लोग अपने गांवों से बाहर चले जाते हैं लेकिन बीच-बीच में घर लौटते रहते हैं।
वर्ष 2008 से 2018 के बीच उत्तराखंड की 6338 ग्राम पंचायतों से कुल 3,83,726 लोगों ने अस्थायी रूप से पलायन किया और पांच वर्षों में (जनवरी 2018 से सितंबर 2022 के बीच) ऐसे लोगों की संख्या 3,07,310 रही।
नेगी ने कहा कि यदि अस्थायी पलायन इसी दर से जारी रहता है तो पांच वर्षों में यह छह लाख के आंकड़े को पार कर सकता है और 2008 और 2018 की अवधि में दर्ज किए गए 3,83,726 के आंकड़े से लगभग दोगुना हो सकता है। हालांकि, उन्होंने कहा कि अस्थायी पलायन का भी एक सकारात्मक पहलू है क्योंकि यह राज्य से बाहर नहीं बल्कि इसकी सीमा के भीतर ही हुआ है। (ए)