उत्तराखंड के जंगल गर्मी से पहले ही इस बार धधक उठे हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं मंडल के जंगलों में कई जगह आग लगने की घटनाएं हो चुकी हैं। गढ़वाल मंडल के मुकाबले कुमाऊं मंडल में इस बार आग लगने की घटना ज्यादा हुई हैं। कुमाऊं मंडल के दक्षिण क्षेत्र में अब तक 20 से ज्यादा जंगल जलने की घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें 40 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल खाक हो चुके हैं। वैसे माना जा रहा है कि उत्तराखंड में पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों में अब तक लगभग 100 के करीब जंगल जलने की घटनाएं हो चुकी हैं और 100 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल अब तक आग की भेंट चढ़ चुके हैं।
शुष्क मौसम और कम बारिश है बड़ी वजह
वन विशेषज्ञ और वन महकमे के अधिकारी उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में आग लगने की वजह मौसम का शुष्क होना, इस बार बारिश व बर्फबारी का कम होना मुख्य वजह मान रहे हैं। वरना पहले पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों में आग लगने की घटनाएं मई-जून के महीने में हुआ करती थीं और तब गर्मी चरम पर होती थी। परंतु इस बार फरवरी-मार्च के महीने में ही जंगलों में आग लगने की घटनाएं घटित होने लगी हैं।
कुछ मामले प्राकृतिक हैं और कुछ वन माफिया की करतूतें हैं
उत्तराखंड वन विभाग के कुमाऊं मंडल के दक्षिणी परिक्षेत्र के वरिष्ठ वन अधिकारी आकाश कुमार का कहना है कि पर्वतीय क्षेत्रों में इस बार गर्मियों से पहले ही आग लगने की जो घटनाएं हुई हैं उसका प्रमुख कारण मौसम का शुष्क होना, बारिश व और बर्फबारी का कम होना है। उत्तराखंड के वन क्षेत्रों के कई संवेदनशील इलाकों में आग लगने की घटनाएं घटी हैं। कुछ घटनाएं अकस्मात प्राकृतिक कारणों से हुई हैं और कुछ घटनाएं वन माफिया द्वारा की गई हैं।
वन माफिया से निपटने के लिए न तो हथियार हैं और न सुरक्षाकर्मी
एक सर्वेक्षण के अनुसार उत्तराखंड के वन विभाग के पास वन माफिया से निपटने के लिए संसाधनों का अभाव है। सूत्रों के मुताबिक उत्तराखंड के वन विभाग के पास डेढ़ सौ से ज्यादा वन दरोगाओ की कमी है। इसके अलावा जो वन सुरक्षाकर्मी हैं उनके पास भी जंगलों की रक्षा के लिए उम्दा किस्म के हथियार नहीं हैं।
उत्तराखंड के वन मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि जंगलों की रक्षा के लिए राज्य सरकार एक बृहद वन नीति लाने जा रही है और जल्दी ही जंगलात विभाग में सुरक्षाकर्मियों की नियुक्तियां की जाएंगी और आधुनिक हथियार भी मुहैया कराए जाएंगे ताकि जंगलों की वन और वन्य जीव तस्करों से रक्षा की जा सके।
सोमवार को उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के बागेश्वर में एक बार फिर से जंगलों में आग भड़क उठी है। इस क्षेत्र में गणखेत रेंज के वज्युला के जंगल में भीषण आग लगी है। यहां के जंगलों में चारों तरफ धुआं ही नजर आ रहा है। इससे पहले भी बागेश्वर की जंगलों में आग लग चुकी है। हरे भरे जंगलों में आग लगने के कारण भारी तादाद में वन संपदा और वन्यजीवों का नुकसान हो रहा है।
वायुमंडल में धुआं फैलने से बढ़ रहा है प्रदूषण
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों में चीड़ के पेड़ बड़ी तादाद में है। पतझड़ के बाद चीड़ के पेड़ की पत्तियां जंगलों में फैल जाती हैं। यह पत्तियां अत्यंत ज्वलनशील होती हैं और जो जल्दी से आग पकड़ लेती हैं। वन तस्कर चीड़ की पत्तियों में सबसे पहले आग लगाते हैं। जो लोग जंगलों के आसपास रहते हैं वे भी जली हुई बीड़ी, सिगरेट या माचिस की जलती तिल्ली चीड़ के वन क्षेत्र में डाल देते हैं जिससे तुरंत आग पकड़ लेती है। इनमें अगर एक बार आग लग जाए तो यह आग को और भी तेजी से फैलाने का काम करता है।
दूसरी ओर, कुमाऊं मंडल के नैनीताल और उसके आसपास के क्षेत्र में शीतकालीन बारिश और बर्फबारी ना होने के चलते जंगल पूरे तरीके से सूख चुके हैं, जिसका नतीजा जंगलों में आग लगना एक प्रमुख कारण बन गया है सोमवार की देर रात नैनीताल के नजदीक ज्योलिकोट के पास के जंगलों में आग लग गई। पिछले दिनों उत्तराखंड के प्रमुख सचिव आरके सुधांशु द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि जंगल की आग पर काबू केवल वन विभाग नहीं कर सकता। इसके लिए जिला, विकासखंड और वन पंचायत स्तर पर समितियों का गठन किया जाए।
उत्तराखंड के जंगलों में आग लगाने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया जाएगा। वनों में आग की रोकथाम के लिए जरूरत पड़ने पर सेना और अर्द्धसैनिक बलों का भी सहयोग लिया जाएगा। शासन की ओर से इस संबंध में सभी जिलाधिकारियों को आदेश जारी किया गया है राजस्व, पुलिस, चिकित्सा, लोक निर्माण विभाग, वन पंचायत प्रबंधन आदि अन्य विभागों से समन्वय बनाया जाए।
एसडीआरएफ, आपदा एवं अग्नि शमन विभाग का सहयोग लिया जाए। इसके लिए उपजिलाधिकारियों का उत्तरदायित्व तय किया जाए। जरूरत पड़ने पर वाहनों को अधिग्रहित कर इन वाहनों को प्रभागीय वनाधिकारियों के नियंत्रण में दिया जाए वन पंचायत व कई आरक्षित वनों में वनाग्नि घटनाओं की मुख्य वजह वनों से सटी हुई कृषि भूमि पर पराली जलाने से पाया गया है। आदेश में यह भी कहा गया है कि जंगलों में आग की दैनिक, साप्ताहिक और मासिक रिपोर्ट दी जाए।
संवेदनशील और अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में कलस्टर के आधार पर गठित ग्राम पंचायत स्तरीय वनाग्नि सुरक्षा प्रबंधन समितियों के कार्यों की निगरानी की जाए। आदेश में कहा गया है, हर जिले में जिला आपदा परिचालन केंद्र को प्रभागीय वनाधिकारियों के मास्टर कंट्रोल रूम में अवश्य जोड़ा जाए। यह भी तय कर लिया जाए कि राज्य परिचालन केंद्र से सभी वनाग्नि घटनाओं की सूचना का आदान-प्रदान सक्रिय रूप से हो।