सिर्फ पांच साल में 57 सीटों का नुकसान झेल चुकी भारतीय जनता पार्टी अब उत्तर प्रदेश के उन इलाकों पर ध्यान केन्द्रित कर रही है जहां विधानसभा चुनाव के दरम्यान उसे मुंह की खानी पड़ी। ऐसे इलाकों के बूथों को सुधारने के लिए पार्टी आलाकमान ने सांसदों और विधायकों दोनों को जिम्मेदारी सौंपी है। सांसदों को प्रदेश के सौ बूथ और विधायकों को 25 कमजेर बूथ दुरुस्त करने का जिम्मा सौंपा गया है।
उत्तर प्रदेश में 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव की तुलना करें तो दोनों चुनावों के परिणाम ज्यादा स्पष्टता से प्रदेश की पांच साल की भाजपा सरकार की लोकप्रियता की कहानी कहते हैं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 312 सीटें पाने वाली भाजपा, 2022 में 255 पर आ कर सिमट गई। अपनी सरकार की लोकप्रियता का दावा करने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुआई में लड़े गए इस चुनाव में भाजपा को 57 सीटों का नुकसान हुआ।
यदि एक लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटों से इस 57 के आंकड़े को भाग दें तो प्रदेश की 11 लोकसभा की सीटें ऐसी हैं जहां भाजपा की पांच साल में पकड़ ढीली हुई है। यदि बूथों पर भाजपा की पकड़ कमजोर होने की बात की जाए तो प्रदेश में ऐसे बूथ की संख्या हजारों में है। पार्टी सूत्र कहते हैं कि प्रदेश के डेढ़ हजार से अधिक बूथ फिलहाल ऐसे हैं, जहां भाजपा ने अपनी पकड़ पांच साल ढीली की है।
दो बरस बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से योगी सरकार के पांच साल के कार्यकाल के दरम्यान हुए 11 सीटों के नुकसान की अभी से भरपाई में भारतीय जनता पार्टी जुट गई है। रविवार को मुख्यमंत्री आदित्यनाथ, दोनों उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक और केशव प्रसाद मौर्य, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह, संगठन मंत्री सुनील बंसल ने सांसदों और विधायकों को बूथ दुरुस्त करने का काम सौंपा। 30 मई को मोदी सरकार के आठ साल पूरे होने पर सभी सांसदों और विधायकों को इन आठ साल में प्रदेश को केन्द्र से क्या मिला? इसकी जानकारी जनता तक पहुंंचाने का निर्देश दिया।
दरअसल लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश को दुरुस्त करने के लिए तीन जून को ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी आयोजित की जा रही है। इसमें 75 हजार करोड़ रुपए के निवेश आने की बात कही जा रही है। फिलहाल उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने योगी सरकार से पांच साल में जो आस लगाई थी, उसमें व्यक्तिगत तौर पर उन्हें खास कुछ हासिल नहीं हुआ है।
हालांकि भाजपा का बूथ प्रबंधन खासा सशक्त है लेकिन पांच साल में योगी सरकार में कार्यकर्ता खुद को अलग थलग पा रहे हैं। कई युवा नेता, जिनकी संख्या काफी है, सिर्फ इसलिए पद पा पाने में नाकाम रहे क्योंकि उन पर किसी वरिष्ठ नेता का वरदहस्त होने का आरोप लगा। यही हाल जिला, ब्लाक और ग्रामीण व मोहल्ला स्तर पर भाजपा को झोलना पड़ रहा है। कार्यकर्ताओं की उदासीनता का सीधा असर बूथ पर पड़ रहा है।
भाजपा के वरिष्ठ सूत्र बताते हैं कि बूथों को दुरुस्त करने का निर्देश आलाकमान से आने के बाद प्रदेश के वरिष्ठ भाजपा नेता सकते में हैं। खास तौर पर वे जिन्होंने पांच साल में कार्यकर्ता सम्मेलनों के नाम पर प्रदेश का पर्यटन किया है। ऐसे में देखने वाली बात ये है कि क्या वास्तव में भाजपा अपने पांच साल से नाराज कार्यकर्ताओं को मना कर बूथ मजबूत कर पाने में कामयाब होगी? या इस बात के लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 80 सीटें कुछ नई परिभाषा गढ़ेंगी।