रघुवंश जी ने समाजावादी विचारधारा को न सिर्फ पढ़ा-लिखा बल्कि उसे जिया भी। लोहिया, जयप्रकाश के साथ उनकी जैसी वैचारिक मित्रता थी वैसे ही समाजवादी विचारधारा के प्रति भी थी। गांधीवाद और समाजवाद को अपने जीवन में उतार लिया था। राज्यसभा सांसद डीपी त्रिपाठी ने मंगलवार को समाजवादी चिंतक प्रोफेसर रघुवंश के अंधानुकरण एवं तानाशाही प्रवृत्तियों से राष्ट्र को आगाह करते लेखों के संकलन ‘हम भीड़ हैं’ के लोकार्पण समारोह में ये बातें कहीं। पुस्तक का लोकार्पण बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया। डीपी त्रिपाठी ने कहा कि रघुवंश जी के पास शरीर की संपदा नहीं थी लेकिन उनके विचार जो 60 से 70 के दशक में आए थे वे आज भी प्रासंगिक हैं। आज भी गहरा अंधेरा छाया है, जिसमें उनकी वैचारिक संपदा जुगनू की तरह है।
बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा कि रघुवंश के विचारों के प्रति प्रतिबद्ध लोगों को एकजुट होना होगा। मुख्यमंत्री ने असहिष्णुता से लड़ने के लिए बिखरे हुए समाजवादी दलों और बुद्धिजीवियों के बीच एकजुटता का आह्वान किया। उन्होंने कहा, ‘आज जिस तरह असहिष्णुता का दौर बना हुआ है, इन परिस्थितियों में लेखकों, बुद्धिजीवियों को न केवल लिखना होगा बल्कि और भी चीजें करनी होंगी। ऐसा नहीं है कि आज जो कुछ हो रहा है, उससे सब सहमत हैं, अधिकतर सहमत नहीं हैं, लेकिन विरोध की यह आवाज मजबूत नहीं है और यह आवाज सुनाई दे, इसके लिए हम सबको मिलकर कड़ी मेहनत करनी होगी’।
राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश ने प्रोफेसर रघुवंश की यादों को ताजा करते हुए कहा कि उन्हें मीसा के तहत तीन महीने के लिए जेल में डाल दिया गया। उन पर आरोप था कि वे बिजली के तार काट रहे थे। यह सबको पता है कि अपनी शारीरिक स्थिति के कारण वे ऐसा करने में सक्षम नहीं थे। सबसे बड़ी बात है कि उन्होंने शिक्षा, संस्कृति और समाज के बारे में जो 25 साल पहले सोचा था वह आज भी प्रासंगिक है। कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर सुजाता रघुवंश ने किया। रघुवंश ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अध्यक्ष के पद पर रहकर हिंदी के क्षेत्र में अहम योगदान दिया था। वे शिक्षा, राजनीतिक व्यवस्थाओं और सांप्रदायिक संकटों को समझने और समझाने में जुटे रहे। उन्होंने आधुनिकता को समाज के गतिशील होने की सांस्कृतिक आकांक्षा के वैशिष्ट्य के रूप में समझने की चेष्टा की।

