बीरबल शर्मा 
बरामंडी जिले के गोहर उपमंडल में पड़ने वाला गांव देवी दड़ न केवल अपनी प्राचीन शैली वाले मकानों के लिए बल्कि पूरे प्रदेश के सबसे खूबसूरत स्थलों में भी एक है। जिला मुख्यालय से महज 55 किलोमीटर की दूरी पर पड़ने वाला यह गांव हजारों लाखों लोगों की जीवनदायिनी बनी ज्यूणी खड्ड के उद्गम स्थल पर है। मंडी या सुंदरनगर से डडौर, बग्गी, चैलचौक, कोट, शाला, जाच्छ, तुन्ना, धंग्यारा, जहल और फिर आता है देवीदड़। चैल चौक से आगे कटलोग कोट से जंजैहली मार्ग को छोड़ कर शाला की ओर ज्यूणी घाटी में आगे बढ़ते हुए यहां जिला मुख्यालय मंडी से दो ढाई घंटों में आराम से पहुंचा जा सकता है। किसी भी मौसम में जाएं यहां की खूबसूरती मन को सुकून देती है, सौंदर्य मन को मोह लेता है, देवदारों के घने जंगलों को देख मन मयूर होकर नाचने लगता है। सर्दियों में भी यहां खिली धूप शरीर को गजब की ऊर्जा देती है।

देवीदड़ के कुदरती सौंदर्य को देख कर यह कहने से भी गुरेज नहीं होता कि हिमाचल के बारे में स्थापित इस मिथक को तोड़ दिया जाए कि हिमाचल प्रदेश शिमला, मनाली और डलहौजी में ही दिखाता है। असली हिमाचल तो कहीं और बसा है जिसे अभी देश व दुनिया के लोगों को दिखाना है। इसी कड़ी में आने वाले स्थलों में देवीदड़ एक है। मंडी जिले में गोहर उपमंडल के तहत समुद्रतल से 7800 फुट की ऊंचाई पर मां शिकारी के आंचल में अराध्य देव कमरूनाग के श्रद्धा क्षेत्र में, ज्यूणी खड्ड का उदगम स्थल है देवी दड़।

सोना उगलती ज्यूणी घाटी के इस अंतिम गांव तक अब सड़क पहुंच चुकी है। जिला मुख्यालय मंडी से 55 किलोमीटर दूर या फिर चंडीगढ़ मनाली नेशनल हाइवे पर मंडी सुंदरनगर के बीच स्थित डडौर से महज 40 किलोमीटर दूरी पर स्थित यह स्थल स्वपनलोक की तरह लगता है। यहां पहुंच कर कशमीर के गुलमर्ग या फिर पहलगांव जैसा अहसास होता है। जून के महीने भी देवदार के घने जंगलों से निकलने वाली ताजी ठंडी हवाएं सर्दी का अहसास दिलाने लगती हैं। यूं आज किसी भी मौसम में जाएं, देवी दड़ की खूबसूरती आपको अपनी सुंदरता के मोहपाश में बांध लेगी।

सोना बरसाती है यहां की जमीन

वैसे तो पूरी ज्यूणी घाटी ही सौंदर्य से लबालब है। ज्यूणी खड्ड से निकलने वाली कूलहें घाटी की जमीन पर सोना बरसाती हैं, सजावटी फूलों के उत्पादन, मशरूम, बेमौसमी सब्जियों, आलू व मटर आदि नकदी फसलों से लबालब इस घाटी का पोर पोर सौंदर्य से भरा हुआ है। वैसे यहां की पारंपरिक खेती धान, मक्का और आलू रही है और सबसे स्वादिष्ट माने जाने वाला लाल चावल भी इसी घाटी में होता रहा है। नकदी फसलों की चाह और आधुनिक तकनीक की मदद से अब लोग अपनी पारंपरिक खेती के साथ-साथ नकदी फसलें फूल, मशरूम, मटर, गोभी आदि भी उगाने लगे हैं।
घने देवदार के जंगल और साथ में कल कल बहते नाले और बर्फ जैसे शीतल जल के झरने मैदानी क्षेत्र गर्म हवाओं से पूरी तरह छुटकारा दिला देती है। धंग्यारा पहुंचते ही देवदारों के जंगलों से निकलने वाली ठंडी, साफ व शुद्ध हवा से मन मयूर होकर नाचने लगता है।

कुदरत ने खुल कर सौंदर्य लुटाया है यहां

जहल से आगे पांच किलोमीटर तो जैसे स्वर्ग की सैर ही माना जाएगा। घने जंगलों से होकर गुजर रही सड़क और साथ में कल-कल करके बहती ज्यूणी खड्ड हर मोड़ पर ठहर कर आनंद उठाने को विवश कर देती है। फिर देवीदड़ की मामली घास वाली लंबी चौड़ी चरागाह पर पहुंचकर तो जैसे मन मयूर होकर नाचने लगता है। ढलानदार मैदान, उसके चारों ओर विशालकाय देवदार के पेड़ों की कतारें, मैदान के एक और माता मुंडासन का प्राचीन पहाड़ी शैली का मंदिर, उसके साथ घने जंगल के आगोश सौ साल पुराना वन विभाग का विश्राम गृह और पहाड़ से चिपका नजरआता गांव जिसके चारों ओर लहलहाती हुई फसल वाले सर्पाकार खेत सब कुछ ऐसा दृश्य पेश करते हैं कि दिल यहीं बस जाने को कहता है।

काम की थकान को मिटाने और महीनों तक शरीर में नई उर्जा भरने के लिए देवीदड़ में एक दो दिन गुजार कर यह सब हासिल किया जा सकता है। मामली घास वाला लंबा चौड़ा कुदरती मैदान चारों ओर से विशालकाय देवदार के पेड़ों से घिरा हुआ, ऐसा अनूठा नजारा पेश करता है कि मन यही महीनों तक रुके रहने को करता है। मई जून में भी यहां सर्दी का एहसास हो जाता है और गर्म वस्त्रों की जरूरत महसूस होती है। रोजमर्रा की भागदौड़ भरी जिंदगी और शहरी क्षेत्र की चिल-पौं से दूर यहां पर एक दो दिन रुक कर जो आत्मा को शांति मिलती है उसका असर महीनों तक जहन में रहता है।

ट्रैकिंग के शौकीनों की खास पसंद
यहां पर ट्रेकरों के लिए भी खास बात यह है कि यदि वे मंडी जिले के सबसे खूबसूरत क्षेत्र जंजैहली से कमरूनाग रोहांडा तक तीन दिन का ट्रेक करना चाहते हों तो देवी दड़ इस यात्रा का बेस कैंप हो सकता है। पहले दिन जंजैहली में ठहर कर दूसरे दिन सुबह यात्रा शुरू की जा सकती है। शिकारी देवी में दोपहर को पहुंच कर शाम को आराम से देवी दड़ पहुंचा जा सकता है। देवी दड़ में रात्रि ठहराव करके अगले दिन कमरूनाग के लिए रवाना होकर रोहांडा पहुंचा जा सकता है। यह एक सुंदर ट्रेक है।