लद्दाख के नेताओं (Ladakh Leaders) ने केंद्र सरकार को बड़ा झटका दिया है। दरअसल इन नेताओं ने केंद्र सरकार की उच्चस्तरीय समिति से बाहर होने का फैसला किया है। खुद को उच्चस्तरीय समिति से बाहर होने वाले नेताओं ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने से पहले लद्दाख जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) के साथ ही बेहतर था।
नेताओं ने केंद्र के पैनल का हिस्सा बनने से किया इनकार
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने क्षेत्र में असंतोष को समाप्त करने के लिए गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय (Minister of State for Home Affairs Nityanand Rai) की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी। इसके कुछ दिनों के बाद इन नेताओं ने केंद्र के पैनल का हिस्सा बनने से भी इनकार कर दिया है।
लद्दाख और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस की सर्वोच्च संस्था (Apex Body of Ladakh and Kargil Democratic Alliance) ने सर्वसम्मति से फैसला किया है कि यह समिति की किसी भी कार्यवाही का हिस्सा नहीं होगा जब तक कि लद्दाख (Ladakh) को राज्य का दर्जा नहीं मिलेगा साथ ही संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष दर्जा सहित उनकी मांगों को एजेंडे का हिस्सा नहीं बनाया जाता है। इस समिति में लद्दाख के उपराज्यपाल, लद्दाख के सांसद, गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी और लेह और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस के शीर्ष निकाय के नौ प्रतिनिधि सदस्य हैं।
लेह के शीर्ष निकाय के नेता और लद्दाख बौद्ध संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष चेरिंग दोरजे (Chering Dorjay) ने कहा, “वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए हमें लगता है कि जम्मू-कश्मीर का हिस्सा होने की पहले की व्यवस्था बेहतर थी।” चेरिंग दोरजे ने आरोप लगाया कि केंद्र उच्च स्तरीय समिति बनाकर लद्दाखी लोगों को मूर्ख बनाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन राज्य की उनकी मांग और लद्दाख के लिए छठी अनुसूची को मानने से इंकार कर रहा है।
भाजपा के पूर्व नेता और मंत्री रह चुके दोरजे ने कहा कि लद्दाखी लोगों की नौकरियों, भूमि और पहचान की रक्षा के लिए समिति के एजेंडे में विश्वसनीयता की कमी है क्योंकि यह स्पष्ट नहीं है कि संविधान के किस प्रावधान के तहत वे लद्दाख के लोगों को ये अधिकार प्रदान करेंगे।