ShivSena in Saamana: महाराष्ट्र की सत्ता से बाहर हो चुकी शिवसेना (उद्धव गुट) ने महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस को लेकर सामना में एक लेख के जरिए निशाना साधा है। हाल ही में महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम ने प्रेस वार्ता के दौरान कहा था कि महाराष्ट्र की राजनीति में ऐसी कटुता आ गई है, जिसे नकारा नहीं जा सकता। इसी को लेकर शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में शुक्रवार (28 अक्टूबर, 2022) को लिखा, ‘फड़णवीस, कटुता खत्म कर दो, लग जाओ काम पर’। सामना में लिखा गया कि महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम ने दिवाली के मौके पर काफी समझदारी वाली बातें की थीं। इसके लिए उनकी जितनी तारीफ की जाए, वो कम है। फडणवीस का स्वाभाव मिल-जुलकर पेश आने वाला है, लेकिन सत्ता जाने के बाद वो बिगड़ गया। नए सत्ता परिवर्तन के बाद उनमें परिपक्वता आ गई होगी, ऐसा मालूम पड़ता है।
सामना में लिखा गया कि दिवाली के उपलक्ष्य में देवेंद्र फडणवीस ने मीडिया से कई मुद्दों को लेकर खुलकर बातें की थीं। उन्होंने दो महत्वपूर्ण मुद्दे रखे। जिसको लेकर महाराष्ट्र को विचार करना चाहिए। फडणवीस ने महाराष्ट्र की राजनीति में आ रही कटुता को भी लेकर बात की। जिसको उन्होंने खुद स्वीकार किया कि ऐसी कटुता कभी नहीं हुई। महाराष्ट्र की राजनीति में न केवल कटुता, बल्कि बदले की राजनीति का विषैलापन उमड़ रहा है। इस प्रवाह का मुख्य कारण भाजपा की हालिया राजनीति है, लेकिन इस मामले में फडणवीस जैसे नेताओं को अब पछतावा होने लगा है तो उस विष को अमृत बनाने का काम भी उन्हें ही करना होगा। फडणवीस ने अपने मन की वेदना जाहिर की।
मुखपत्र में लिखा गया कि महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम कहते हैं कि महाराष्ट्र में राजनीति की कटुता अब राजनीतिक वैमनस्य तक पहुंच गई है। महाराष्ट्र की ऐसी राजनीतिक संस्कृति नहीं है। राजनीतिक मतभेद हो फिर भी सभी पार्टियों के नेता एक-दूसरे से बात कर सकते हैं। यह कटुता कम की जा सकती है, इसके लिए मैं प्रयास करूंगा। सामना में आगे लिखा गया है कि अगर फडणवीस ऐसा कहें तो यह उनका बडप्पन है।
महाराष्ट्र ही नहीं पूरे देश में अलग तरह का माहौल
सामना में आगे लिखा गया कि केवल महाराष्ट्र में ही नहीं, पूरे देश की राजनीति में एक अलग तरह का वातावरण है। लोकतंत्र में ऐसा नहीं होता है, जैसा की आज देखने को मिल रहा है। सत्ताधारी पार्टी कोई भी हो, उसे विपक्षी पार्टी को शत्रु नहीं मानना चाहिए। लोकतंत्र में मतभेद का महत्व होता है, लेकिन इसका मतलब देशविरोधी विचारधारा नहीं है। इसलिए सत्ताधारी दल और विपक्ष एक-दूसरे के साथ ईमानदारी और भरोसे के साथ काम करें, लेकिन आज यह माहौल महाराष्ट्र और देश में नहीं रह गया है।
महाराष्ट्र में कटुता क्यों और किसने निर्माण की?
महाराष्ट्र में पिछले ढाई साल में तीन सत्ता परिवर्तन हुए। इनमें से दो सत्ता परिवर्तन फडणवीस के नेतृत्व में हुए हैं। अजीत पवार की मदद से फडणवीस और उनकी पार्टी ने सत्ता परिवर्तन करने का प्रयास किया, जो फंस गया। उन दिनों भी केंद्रीय सत्ता का पूरी तरह से दुरुपयोग किया गया। यह प्रयोग सफल हुआ होता तो वह जनता की इच्छा साबित हुआ होता। लेकिन वहां महाविकास आघाड़ी का प्रयोग सफल होते ही इसे असंवैधानिक सरकार बताया गया।
महाराष्ट्र की राजनीति में कटुता न रहे और राज्य के कल्याण के लिए सभी को एक साथ बैठना चाहिए। यही राज्य की परंपरा है। समन्वय की राजनीति ही महाराष्ट्र की परंपरा है। यशवंतराव चव्हाण, शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे, शरद पवार जैसे नेताओं ने समन्वय की राजनीति की। राजनीति में व्यक्तिगत कीचड़ उछालते हुए किसी भी मर्यादा का पालन नहीं किया जा रहा है। बीजेपी ने कुछ भौंकनेवाले कुत्तों को प्रशिक्षण दिया है। वो लोग शरद पवार से लेकर ठाकरे तक के लिए जिस भाषा का उपयोग करते हैं, उससे राज्य की राजनीति में कटुता कैसे कम होगी।
केंद्रीय सत्ता का दुरुपयोग करके सरकार गिराई गई
लेख में आगे लिखा गया कि आपने केंद्रीय सत्ता का दुरुपयोग करके सरकार गिराई, शिवसेना तोड़ी। शिवसेना का धनुष-बाण चिह्न फ्रीज हो, इसके लिए परदे के पीछे से राजनीतिक चाल चली। यह सब महाराष्ट्र और देश ने देखा। शिवसेना न रहे और शिवसेना से जो जहर बाहर निकला है। उससे कटुता की धार कैसे कम होगी? शिवसेना के कुछ लोगों को लाचार या लालची बनाने के बाद सत्ता मिली, लेकिन महाराष्ट्र का राजनीतिक माहौल साफ नहीं होने का पता फडणवीस को हुआ, यह क्या कम है? लेख में दशहरे मेले का भी जिक्र किया गया।
असली शिवसेना कौन?
यह फडणवीस को अच्छी तरह से पता है और उन्होंने गले में जो ‘असली शिवसेना’ का पत्थर बांध लिया है वह महाराष्ट्र को ले डूबेगा। यह समझने जितना फडणवीस बुद्धिमान हैं। लेकिन उनकी बुद्धिमानी कहीं भटकने जैसी हो गई है। फडणवीस कहते हैं, ‘उद्धव ठाकरे का युति तोड़ने का निर्णय पूर्वनियोजित था।’ फडणवीस ने यह बयान किस आधार पर दिया? शिवसेना से वादा करके ढाई वर्ष के मुख्यमंत्री पद को नकार दिया, यहीं कटुता की चिंगारी भड़की।