राजस्थान की राजनीति में शुरू से ही तीसरे मोर्चे की कोई पहचान नहीं रही थी लेकिन एक जाट नेता के जुनून ने हालात बदल डाले। कांग्रेस के कट्टर विरोधी और बीजेपी से बागी हुए हनुमान बेनीवाल एकमात्र ऐसे नेता हैं जिनकी राजनैतिक पहचान कोई दबा नहीं सका। राजस्थान में हाल ही में होने वाले विधानसभा चुनावों में यह जाट नेता दोनों सियासी पार्टियों के लिए सिरदर्द बना हुआ है। आइए जानते हैं कौन हैं हनुमान बेनीवाल।
करीब 15 साल पहले जोधपुर में एक जाट समाज की एक सभा हो रही थी। उस समय राजस्थान बीजेपी के पास कोई बड़ा जाट चेहरा नहीं था इसलिए दिल्ली के जाट नेता और वाजपेयी सरकार के मंत्री साहब सिंह वर्मा को राजस्थान के जाट बाहुल्य वाले इलाकों में प्रचार के लिए भेजा गया था. जोधपुर की इस सभा को भी वही संबोधित करने जा रहे थे। वर्मा समय पर नहीं पहुंचे तो भीड़ छंटने लगी लेकिन उस वक्त ऐसा कोई वक्ता नहीं था जो भीड़ को बांध सके। इतने में राजस्थान यूनिवर्सिटी का एक छात्रनेता मंच पर पहुंचा और अपने भाषण से समां बांध लिया। ये नेता हनुमान बेनीवाल ही थे जो अपनी भाषण शैली से ऐसे लोकप्रिय हुए कि आज तक कोई सियासी पार्टी उनका तोड़ नहीं निकाल पाई है।
राजस्थान यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट रहे खींवसर विधायक हनुमान बेनीवाल की पैदाइश नागौर में हुई। छात्र राजनीति से पॉलिटिक्स में कदम रखने वाले बेनीवाल ने राजनीति की शुरुआत में बीजेपी ज्वॉइन की थी हालांकि उनके पिता कांग्रेस के नेता थे। 2010 में उन्होनें खुलेआम बीजेपी के नेताओं को भ्रष्ट करार दिया और कांग्रेस-बीजेपी की सांठगांठ होने के आरोप लगाते हुए अपनी ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया, जिसके बाद उन्हें पार्टी छोड़नी पड़ी। लेकिन बेनीवाल कहां रुकने वाले थे, 2013 में अपने विधानसभा क्षेत्र खींवसर से वे निर्दयलीय प्रत्याशी के रुप में फिर खड़े हुए और मोदी लहर के असर के बावजूद भी रिकॉर्ड मतों से जीत हांसिल की। बेनीवाल नागौर, बाड़मेर, बीकानेर, सीकर और जयपुर जिलों में 5 सफल हुंकार रैलियों का आयोजन किया जिनमें जुटी लाखों की भीड़ की गूंज दिल्ली तक जा पहुंची।
बीजेपी से बागी होकर बेनीवाल ने ‘राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी’ का गठन किया और इस बार के चुनाव में उन्होनें ज्यादातर दोनों पार्टियों के बागी नेताओं को टिकट दिया है। बेनीवाल धुंआधार प्रचार कर रहें हैं और एक दिन में 6 से 8 सभाएं करते हैं। भाषण देने में माहिर बेनीवाल की रैलियों में आने वाली भीड़ को देखकर दोनों सियासी पार्टियों के पसीने छूट रहे हैं। लोकप्रियता ऐसी की खड़े होने की जगह ना मिलने पर लोग भाषण सुनने के लिए लोग खंभो पर भी चढ़ जाते हैं।
राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने राजस्थान के 200 सीटों में से 57 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। जाटों की लड़ाई को आगे ले जाना बेनीवाल का एक मात्र सपना था और यहीं कारण था की जाट आरक्षण का विरोध करने वाली राजपूत करणी सेना से उनकी कभी नहीं बनी। युवाओं को साथ लेकर चलने वाले बेनीवाल मानते हैं कि बीजेपी-कांग्रेस की आपसी सांठ-गांठ है और दोनों ही एक दूसरे के भ्रष्टाचार को छुपाते हैं इसलिए क्षेत्रिय पार्टी का राज होना चाहिए। वे ठोक बजाकर कहते हैं कि चाहें कुछ मिले या ना मिले वे दोनों पार्टियों को चुनावों में कड़ी टक्कर देगें।