JLF में तस्लीमा नसरीन बोलीं- हिंदू और अन्य धर्मों पर लिखती हूं तो कुछ नहीं होता, इस्लाम पर बोलते ही जारी हो जाता है फतवा
लेखिका तस्लीमा नसरीन ने 23 जनवरी को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में सेशन को संबोधित किया। नसरीन के सेशन के बारे में पहले से जानकारी नहीं दी गई थी।

लेखिका तस्लीमा नसरीन ने 23 जनवरी को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में सेशन को संबोधित किया। नसरीन के सेशन के बारे में पहले से जानकारी नहीं दी गई थी। जेएलएफ के आयोजकों की ओर से जारी स्पीकर्स की लिस्ट और सेशन शेड्यूल में भी इसका जिक्र नहीं था। वे रविवार (22 जनवरी) को जेएलएफ में एक सेशन के दौरान नजर आई थीं। नसरीन ने इस दौरान कहा था कि वह साहित्य के जमावड़े में खुद को आने से नहीं रोक पाईं। उस समय भी उनके कार्यक्रम के बारे में नहीं बताया गया था। फ्रंट लॉन में हुए इस कार्यक्रम में तस्लीमा को कड़ी सुरक्षा के बीच लाया गया। उनके आने से पहले पुलिस जाब्ता बढ़ा दिया गया। आयोजक संजॉय रॉय खुद उन्हें लेकर आए। श्रोताओं में तस्लीमा को लेकर काफी उत्सुकता दिखाई दी।
भारत में इनटॉलरेंस के सवाल पर उन्होंने कहा कि केवल सेक्युलर लोगों की हत्या होना इनटॉलरेंस नहीं है। सभी तरह के अपराध इस श्रेणी में आते हैं। इसे रोका जाना चाहिए। दुनिया में कहां ऐसा सब नहीं होता है। महिलाओं के खिलाफ अपराध भी इनटॉलरेंस है। राष्ट्रवाद के मसले पर तस्लीमा नसरीन ने कहा कि वह इसमें विश्वास नहीं करती। वह वन वर्ल्ड में मानती हैं।
उन्होंने कहा, ”जब कभी भी वह महिलाओं पर अपराध के मुद्दे पर हिंदू, बौद्ध, सिख और ईसाई धर्म की आलोचना करती हैं तो कोई दिक्कत नहीं होती। लेकिन इस्लाम की आलोचना करते ही उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलने लगती हैं। अगर वे मेरी बात को गलत मानते हैं तो इसके लिए तथ्य पेश करें। लेकिन वे ऐसा नहीं करते। जो कोर्इ भी इस्लाम की आलोचना करता है कट्टरपंथी उसे मारना चाहते हैं। मैं अभिव्यक्ति की आजादी में विश्वास करती हूं। मैं धर्म के खिलाफ लिखती हूं। यह देश सेक्युलर है। सेक्युलरिज्म का मतलब यह है कि कि मुस्लिम कट्टरपंथी फतवा जारी कर सके? मुस्लिम वोटों के लिए सेक्युलर लेखकों को देश से बाहर कर दिया जाता है। और वो जो लोग लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते, फतवा जारी करते हैं उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। जिस व्यक्ति ने मेरे सिर काटने वाले को मुंहमांगी रकम देने का एलान किया था वह बंगाल की पूर्व सरकार के सीएम का भी दोस्त था और अब ममता बनर्जी का भी बहुत अच्छा दोस्त है।”
अपने संबोधन के दौरान तस्लीमा ने कहा कि पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने उनकी किताब को इसलिए बैन कर दिया कि इससे मुस्लिम नाराज हो सकते हैं जबकि किसी भी मुस्लिम ने इसे बैन करने की मांग नहीं की थी। किताब को पढ़ने के बाद कुछ लेखक भी नाराज हो गए थे। तस्लीमा नसरीन में भारत में यूनिफार्म सिविल कोड को लागू किए जाने का समर्थन किया।
उन्होंने बुद्धिजीवी वर्ग पर सवाल उठाते हुए कहा, ”कोलकाता जिसे कि प्रगतिशील शहर माना जाता है उसके बुद्धिजीवी लेखकों ने मेरी किताब को बैन करने की मांग की। केवल इसलिए क्यों कि उन्हें मेरा तरीका पसंद नहीं आया। मैंने अपनी आत्मकथा में जो कुछ मुझ पर गुजरा उसका जिक्र किया था। जब सरकार ने मुझे कोलकाता से बाहर जाने का विचार रखा तो उन बुद्धिजीवियों ने भी इसका समर्थन किया। मुझे बांग्लादेश से 23 साल पहले बाहर कर दिया गया। इसके बाद मैं अमेरिका में रही। फिर मैंने भारत आने का फैसला किया क्योंकि वहां से मेरे देश करीब था। इसलिए मैं कोलकाता में रहने लगी क्योंकि वहां मैं बांग्ला बोल सकती थी। लेकिन वहां से भी मुझे जाने को मजबूर किया गया। फिर कई अलग-अलग जगहों पर रहीं। दिल्ली में चितरंजन पार्क जहां बंगाली लोग रहते हैं वहां रहने की कोशिश की।
भारत को पसंद किए जाने के सवाल पर तस्लीमा का जवाब था, ”यदि मैं रह सकती तो मैं अपने देश बांग्लादेश में रहना चाहती हूं। इसके चलते भारत ही एकमात्र विकल्प है। यहां मैं बाहरी महसूस नहीं करती। मैं बंगाली में लिखती हूं जो कि भारत की बड़ी भाषाओं में से एक हैं। यहां मुझे घर जैसा लगता है। मैं यहां सिर्फ इसलिए नहीं रहना चाहती कि यहां मुझे घर जैसा लगता है। मैं यहां के लिए कुछ करना चाहती हूं।”