राजस्थान में आखातीज और अन्य अबूझ विवाह सावों पर होने वाले बाल विवाह की रोकथाम के लिए सरकार ने प्रशासन को चौकस कर दिया है। इन अबूझ सावों पर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में बडी संख्या में बाल विवाह होते हैं। बाल विवाह रोकने वाले कानून के तहत अब बच्चों के माता-पिता के साथ ही पंडित, टेंट वाले और हलवाई के अलावा उसमें शामिल होने वालों के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई की जाती है। प्रदेश में अब ग्रामीण इलाकों में तैनात शिक्षकों और अन्य सरकारी कर्मचारियों को भी बाल विवाह रोकने की जिम्मेदारी डाली गई है। इसके साथ ही ग्रामीण इलाकों में जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों के साथ मिल कर बाल विवाह जैसी कुप्रथा को रोकने के लिए जागरूकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं।
प्रदेश में नौ मई को आखातीज और 21 मई को पीपल पूर्णिमा जैसे अबूझ शादी के मुहूर्त हैं। इन दो दिनों में बड़ी संख्या में विवाह समारोह बगैर मुहूर्त के होते हैं। ग्रामीण इलाकों में परंपरा रही है कि ऐसे दिन दूरदराज के इलाकों में नाबालिग बच्चों की भी शादियां कराई जाती हैं। इसे रोकने के लिए ही सरकार ने कानूनी प्रावधानों के साथ ही ग्रामीण इलाकों में समझाइश के जरिए इन्हें रोकने के निर्देश सभी जिला कलक्टरों और एसपी को दिए हैं।
महिला बाल विकास मंत्री अनिता भदेल का कहना है कि कानूनी सख्ती और शिक्षा के फैलाव से आई जागरूकता ने बाल विवाहों को कम कर दिया है। इसके बावजूद अभी भी कई इलाकों में बाल विवाह होना समाज के लिए कलंक है। सरकार इसे रोकने के लिए पूरी तरह से मुस्तैद है। उनका कहना है कि विभाग की आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के साथ ही अन्य सरकारी महकमों के सहयोग से बाल विवाह रोकने के उपाय किए जा रहे हैं। पटवारी, ग्राम सेवक और ग्रामीण स्कूलों के मास्टरों को पाबंद किया गया है कि उनके इलाके में होने वाले बाल विवाहों की समय पर प्रशासन को सूचना दी जाए। इसके साथ ही ग्रामीणों को बाल विवाह नहीं करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
प्रदेश भर में बाल विवाह से होने वाले नुकसान को भी बताने के साथ जागरूकता से ही इस बुराई को रोकने का अभियान चलाया जा रहा है। राज्य सरकार ने शिक्षा विभाग के शिक्षकों और प्रधानाध्यापकों को भी बाल विवाह रोकने की मुहिम से जोड़ दिया है। शिक्षक स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के परिजनों से मिल कर उन्हें बाल विवाह रोकने का संदेश देंगे। इसके लिए शिक्षकों को 9 और 21 मई को फील्ड में रहने के निर्देश दिए गए हैं।
इसके साथ ही शिक्षकों को अपना सूचना तंत्र मजबूत करने के अलावा बच्चों के जरिए भी बाल विवाह करने वाले परिवारों की जानकारी जुटानी होगी। शिक्षकों को बाल विवाह वाले परिवारों को इसे नहीं करने के लिए समझाना होगा और इसकी सूचना प्रशासन और पुलिस के स्तर पर भी देनी होगी। बाल विवाह की रोकथाम के लिए कई सामाजिक और स्वयंसेवी संगठन भी जागरूकता अभियान चला रहे हैं। सामाजिक संगठन क्वालिस की अध्यक्ष दीपा माथुर का कहना है कि शिक्षा के प्रसार से अब ग्रामीण इलाकों में बाल विवाहों में काफी कमी है। कानूनी भय के चलते अभी भी कुछ जगहों पर बाल विवाह हो जाते हैं। ऐसे ही इलाकों में जागरूकता के जरिए लोगों को बाल विवाह नहीं करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।