उच्चतम न्यायालय ने बुधवार (11 मई) को कहा कि अगर राज्य सरकारें सूखे जैसी आपदाओं के प्रति ‘शुतुरमुर्ग जैसा रवैया’ अपनाती हैं तो केन्द्र अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी से बच नहीं सकता क्योंकि आम लोगों से जुड़े विषयों पर अंतत: ‘जिम्मेदारी’ उसी की है। न्यायमूर्ति एमबी लोकुड़ और न्यायमूर्ति एनवी रमण की पीठ ने कहा, ‘‘वह (केन्द्र) संविधान के अनुच्छेद 21 से जुड़े मुद्दों से पूरी तरह से पल्ला झाड़ नहीं सकता लेकिन इसी के साथ हम यह नहीं कहते कि सूखा घोषित करने के राज्य सरकार के अधिकार या इसी तरह की समान शक्ति कमजोर हुई है।
शीर्ष अदालत ने सूखे जैसी स्थिति से निपटने के मुद्दे पर कई निर्देश देते हुए कहा, ‘‘भारत संघ (केन्द्र सरकार) को निश्चित रूप से संघवाद और इसकी संवैधानिक जिम्मेदारी के बीच बारीक एवं सूक्ष्म संतुलन बनाए रखना होता है और ऐसा करना ही होगा वरना अंतत: आम आदमी को दिक्कत और हताशा ऐसी स्थिति के लिए होगी जो उसने नहीं बनाई है।’’
पीठ ने कहा कि अगर केन्द्र और राज्य सरकारें पैदा होते संकट पर कदम उठाने में नाकाम रहती हैं तो न्याय पालिका उचित निर्देश जारी करने पर विचार ‘‘कर सकती है और करना भी चाहिए’’ लेकिन ‘‘एक लक्ष्मण रेखा’’ खींची जानी चाहिए। शीर्ष अदालत ने 53 पेज के फैसले में कहा, ‘‘निश्चित रूप से, अगर राज्य सरकार शुतुरमुर्ग जैसा रवैया अपनाती है तो आपदा के प्रति केन्द्र सरकार की तरफ से ज्यादा सक्रिय और सूक्ष्म प्रतिक्रिया की जरूरत होती है।’’
शीर्ष अदालत ने बाल गंगाधर तिलक के इस वाक्य का हवाला दिया, ‘‘समस्या संसाधनों या क्षमता की कमी की नहीं बल्कि इच्छा की कमी की है।’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि देश की एक चौथाई जनता सूखे जैसी स्थिति से प्रभावित है। अदालत ने केन्द्र को तीन महीने के अंदर राष्ट्रीय आपदा राहत कोष स्थापित करने का निर्देश दिया।
याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन स्वराज अभियान ने समीक्षा के बाद दाखिल अपने आग्रह में केंद्र को मनरेगा कानून के प्रावधानों से संबद्ध एक आदेश देने तथा सूखा प्रभावित इलाकों में रोजगार सृजन के लिए इसका उपयोग किये जाने का अनुरोध किया था। गैर सरकारी संगठन द्वारा दाखिल जनहित याचिका में आरोप लगाया गया था कि 12 राज्यों… उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा, झारखंड, बिहार, हरियाणा और छत्तीसगढ़ के कई हिस्से सूखे से प्रभावित हैं और प्राधिकारी पर्याप्त राहत नहीं मुहैया करा रहे हैं।