सुप्रीम कोर्ट को कोलोजियम और केंद्र के बीच कई मसलों पर टकराव देखने को मिला है। लेकिन सरकार को कहना है कि वो न्यायपालिका में रिक्त पदों को भरने के लिए संजीदगी से काम कर रही है। 2014 के बाद के दौर में सरकार के प्रयासों से जजों के 198 नए पद सृजित किए गए तो न्यायपालिका में आरक्षण को लागू कराने के लिए सरकार पूरी तरह से प्रयासरत है।
संसद में कांग्रेस सांसद अनुमूला रेड्डी और ysr कांग्रेस के चंद्रशेखर बेलना के सवाल पर केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को कोलोजियम की तरफ से भेजे गए 175 प्रस्तावों पर काम चल रहा है। जबकि हाईकोर्ट्स में 230 वैकेंसीज को लेकर अभी तक कोई प्रस्ताव नहीं आया है। दोनों सांसदों ने पूछा था कि न्यायपालिका में सामाजिक न्याय के तहत सिस्टम को लागू कराने के लिए सरकार क्या कर रही है?
सरकार का कहना था कि हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए संविधान के आर्टिकल 217 और 224 के तहत काम किया जा रहा है। इसमें किसी भी तरह के आरक्षण का प्रावधान नहीं है लेकिन फिर भी सरकार ने हाईकोर्ट्स के चीफ जस्टिसों से कहा है कि अपने प्रस्ताव तैयार करते समय एससी\एसटी, महिला और अल्पसंख्यकों को ध्यान में रखकर मसौदा तैयार करें।
3 वर्षों में एससी\एसटी उत्पीड़न के 1 लाख से ज्यादा मामले
देश में 2018 से 2020 के दौरान तीन वर्षों की अवधि में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत 1,61,117 मामले दर्ज किए गए। लोकसभा में दानिश अली के प्रश्न के लिखित उत्तर में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास आठवले ने यह जानकारी दी। आठवले के मुताबिक, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत देशभर में वर्ष 2018 में 49,064 मामले, वर्ष 2019 में 53,515 मामले और वर्ष 2020 में 58,538 मामले दर्ज हुए।
मंत्री ने बताया कि पुलिस और लोक व्यवस्था राज्य के विषय हैं और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 संबंधित राज्य सरकारों एवं संघ राज्य क्षेत्र के प्रशासनों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। आठवले ने कहा कि सरकार अत्याचार से संबंधित मामलों को शीघ्र दर्ज करने, अपराधों की तीव्रता से जांच करने और न्यायालयों द्वारा मामलों का समय पर निपटान सुनिश्चित करने हेतु राज्य सरकार की कानून कार्यान्वयन एजेंसियों के साथ समीक्षा कर रही है।