दिल्ली उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि बलात्कार के कारण जन्म लेने वाला बच्चा उसकी मां को मिले किसी भी तरह के मुआवजे से अलग मुआवजे का हकदार है। अदालत ने यह फैसला उस मामले में सुनाया जिसमें अपनी नाबालिग सौतेली बेटी का बलात्कार करने के जुर्म में दोषी को स्वाभाविक मृत्यु तक की अवधि के लिए जेल भेज जा चुका है। अदालत ने हालांकि कहा कि बाल यौन अपराध संरक्षण कानून या दिल्ली सरकार की पीड़ित मुआवजा योजना में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। हालांकि इस संबंध में कानून तय कर चुके उच्च न्यायालय ने बलात्कार पीड़ित को मुआवजे की राशि निचली अदालत द्वारा निर्धारित 15 लाख रूपये से घटाकर साढे सात लाख रूपये कर दी। अदालत ने कहा कि उच्च राशि दिल्ली सरकार द्वारा तय 2011 मुआवजा योजना के खिलाफ है। उच्च न्यायालय ने बलात्कार की पीड़ित की गोपनीयता कायम रखने के दिशानिर्देशों को नजरअंदाज करने के मामले में निचली अदालत के आदेश में खामी पाई।
हालांकि न्यायमूर्ति गीता मित्तल और न्यायमूर्ति आरके गौबा की पीठ ने कहा कि नाबालिग या बालिग महिला के बलात्कार से जन्म लेने वाली संतान निश्चित रूप से अपराधी के कृत्य की पीड़ित है और वह उसकी मां को मिले मुआवजे की राशि से इतर मुआवजे का हकदार है। कानून में यह ‘‘रिक्ति’’ अदालत के ध्यान में उस समय आयी जब वह नाबालिग सौतेली बेटी के बलात्कार के दोषी और उम्रकैद पाने वाले व्यक्ति की अपील पर सुनवाई कर रही थी। बलात्कार की शिकार पीडिता ने 14 साल की उम्र में बच्चे को जन्म दिया था।
एक दिन पहले, 12 दिसंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा था कि यदि पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक को राजी हो जाते हैं और फिर इनमें से कोई भी अपनी तलाक से मुकर जाता है तो इसे मानसिक क्रूरता माना जाएगा।करीब एक महीना पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश जारी कर कहा था कि पति के विवाहेतर संबंधों को लेकर पत्नी के संदेह को हमेशा मानसिक क्रूरता नहीं माना जा सकता।