उपराज्यपाल को ताकतवर बनाने की एक और कोशिश
चार फरवरी को केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने दिल्ली को विधानसभा देने वाले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम-1991 में एक संशोधन करने का प्रस्ताव पास किया। जिसके तहत संसद में इसमें संशोधन करके यह प्रावधान किया जाएगा कि दिल्ली सरकार कोई भी विधायी प्रस्ताव उपराज्यपाल के पास कम से कम 15 दिन पहले और प्रशासनिक प्रस्ताव सात दिन पहले भेजा जाए।

मनोज कुमार मिश्र
इस संशोधन के बाद दिल्ली सरकार आनन-फानन में कोई फैसला लागू नहीं करवा पाएगी। केन्द्र सरकार ने उपराज्यपाल को ताकतवर बनाने का प्रयास तब किया है जब चार जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ यह फैसला दे चुकी है कि दिल्ली में गैर आरक्षित विषयों में दिल्ली सरकार फैसला लेने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है।
दूसरे राज्यों के राज्यपालों की तरह ही दिल्ली के उपराज्यपाल को केवल उसकी सूचना (एड एंड एडवाइस) का अधिकार है। इसी के कारण दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने आरोप लगाया कि भाजपा चोर दरवाजे से दिल्ली पर शासन करना चाहती है। दिल्ली की मौजूदा आम आदमी पार्टी (आप)की सरकार दिल्ली को राज्य (पूर्ण राज्य) बनवाने के लिए लगातार अभियान चला रही है।
सरकार के अधिकार बढ़ने के बजाए कम ही होने से सरकार में बेचैनी होना स्वाभाविक है। दिल्ली के लोगों से चुनी हुई सरकार को एक तो पहले से ही कम अधिकार हैं, ऊपर से जो अधिकार हैं उसमें भी कटौती करने की तैयारी की जा रही है। जिस दिन संसद में यह संशोधन विधेयक -‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली(संशोधन)-2021’ पेश होगा, उस दिन हंगामा होना तय सा है।
दिल्ली के अधिकारों की लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इसलिए नहीं खत्म हुआ क्योंकि अभी बहुत सारी चीजें तय होनी रह गई हैं। सुप्रीम कोर्ट का एक पीठ अधिकारियों की नियुक्ति और तबादलों पर अधिकार पर फैसला देने वाला है। दूसरे, संविधान पीठ ने अपने फैसले में दिल्ली की सरकार को मजबूती दी लेकिन यह कह कर कि दिल्ली केन्द्र शासित प्रदेश ही रहेगा, राज्य नहीं बन सकता है, उसकी हद तय कर दी।
कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कोई भी विधेयक का प्रारूप या प्रशासनिक फैसलों की फाइल उपॉराज्यपाल के पास आखिरी क्षण में भेजी जा रही है। जिससे राजनिवास (उपराज्यपाल का दफ्तर) को उस पर कानूनी राय आदि लेने का समय नहीं मिल पाए। यह संशोधन इसी लिए कराया जा रहा है।
संसद ने 69 वें संशोधन के माध्यम से दिसंबर 1991 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली को संवैधानिक उपबंध(अनुच्छेद 239 एए और 239 एबी) के तहत सीमित अधिकारों वाली विधानसभा दी गई। केन्द्र शासित प्रदेश को विधानसभा मिलने के कारण इसके अधिकारों की विस्तार से व्याख्या करने के लिए संसद ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम-1991 को बनाकर पास किया।
इसमें साफ-साफ कहा गया है कि दिल्ली व्यवहार में केन्द्र शासित प्रदेश बना रहेगा। दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कहा जाएगा और इसके प्रशासक को उपराज्यपाल कहा जाएगा। इसकी एक विधानसभा होगी, जिसमें लोगों से चुने हुए सदस्य बनेंगे। विधानसभा की सीटें, निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण, अनुसूचित जाति के सीटों का आरक्षण आदि संसद के बनाए कानून से तय होंगे।
विधानसभा को राज्य सूची की प्रविष्टियां 1,2 और 18 (लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि) से संबंधित विषयों को छोड़कर राज्य सूची और समवर्त्ती सूची में गिनाए गए मामलों में कानून बनाने का अधिकार होगा। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद होगा जो उपराज्यपाल को (विधानसभा को जिन विषयों में कानून बनाने का अधिकार है) उन विषयों पर सहायता और सलाह देगी।
मुख्यमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेंगे और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति मुख्यमंत्री की सलाह पर करेंगे। यदि उप राज्यपाल और उनके मंत्रियों में किसी मुद्दे पर मतभेद होगा तो वह मुद्दा (विषय) राष्ट्रपति को भेजेंगे, जिनका निर्णय अंतिम होगा। उप राज्यपाल को सत्रावसान के दौरान अध्यादेश जारी करने की शक्ति होगी।
संसद को संविधान के पूर्वोक्त उपबंधों की अनुपूर्ति के लिए और उनके आनुषंगित या परिणामिक सभी विषयों के लिए कानून बनाने का अधिकार होगा। उप राज्यपाल से रिपोर्ट प्राप्त होने पर या अन्यथा यदि राष्ट्रपति संतुष्ट हैं कि ऐसी स्थिति बन गई है जिसमें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का प्रशासन संविधान या कानून के अनुरूप नहीं चलाया जा सकता, तो वह उस अवधि के लिए जो विनिर्दिष्ट की जाए अनुच्छेद 239 एए के किसी भी उपबंध को निलंबित कर सकते हैं।
उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली पर चोर दरवाजे से
शासन करने का भाजपा पर लगाया आरोप
दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने आरोप लगाया कि भाजपा चोर दरवाजे से दिल्ली पर शासन करना चाहती है। दिल्ली की मौजूदा आम आदमी पार्टी (आप)की सरकार दिल्ली को राज्य (पूर्ण राज्य) बनवाने के लिए लगातार अभियान चला रही है। सरकार के अधिकार बढ़ने के बजाए कम ही होने से सरकार में बेचैनी होना स्वाभाविक है।
दिल्ली के लोगों से चुनी हुई सरकार को एक तो पहले से ही कम अधिकार हैं, ऊपर से जो अधिकार हैं उसमें भी कटौती करने की तैयारी की जा रही है। जिस दिन संसद में यह संशोधन विधेयक -‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली(संशोधन)-2021’ पेश होगा, उस दिन हंगामा होना तय सा है।