उत्तराखंड में कांग्रेस चौराहे पर खड़ी है, जहां अपना एक साल का कार्यकाल पुष्कर सिंह धामी सरकार 23 मार्च को पूरा करने जा रही है और पूरे राज्य में राज्य की भाजपा सरकार की एक साल की उपलब्धियों को लेकर जगह-जगह जश्न मनाने की तैयारियां पूरे जोरों से चल रही हैं। वहीं कांग्रेस संगठन राज्य में बिखरा पड़ा है और कांग्रेस पार्टी उत्तराखंड में कई गुटों में बंटी हुई है। कांग्रेस की पंचम विधानसभा में हार को एक साल हो गया है मगर कांग्रेस ने अपनी इस हार से कोई सबक नहीं सीखा और आपसी लड़ाई अब चौराहों पर लड़ी जा रही हैं।
बजट सत्र में नहीं निभा पाई प्रभावी विपक्ष की भूमिका
विधानसभा के बजट सत्र में कांग्रेस पार्टी आपस में ही बिखरी हुई नजर आई, कई मुद्दों को लेकर कांग्रेस राज्य सरकार पर विधानसभा में हावी हो सकती थी मगर आपसी फूट के कारण कांग्रेस बजट सत्र में प्रभावी विपक्ष की भूमिका नहीं निभा पाई। बजट सत्र के दौरान ऐसा लगा कि नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य के काबू में कांग्रेस के विधायक नहीं थे वरना यशपाल आर्य के मना करने के बावजूद कांग्रेस के कई विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष के सामने जमकर हंगामा किया। सदन के माइक और मेज तोड़ दिए और विधानसभा की महिला अध्यक्ष के ऊपर कागज के गोले फेंके गए। इतना ही नहीं विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूरी को लेकर कई अशोभनीय टिप्पणियां भी की जिससे सदन में कांग्रेस की किरकिरी हुई।
एक दिन के लिए निलंबित किए गये कांग्रेस के 15 विधायक
विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूरी को सदन में मौजूद कांग्रेस के 15 विधायकों को एक दिन के लिए निलंबित करना पड़ा। राज्य में कांग्रेस की कमान प्रदेश अध्यक्ष युवा चेहरा करण माहरा और नेता प्रतिपक्ष भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए दलित नेता यशपाल आर्य के हवाले है। दलबदलू छवि होने के कारण यशपाल आर्य का कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और विधायकों में कोई प्रभाव नहीं है। पिछले दिनों देहरादून में कांग्रेस के जनाधार वाले नेता पूर्व नेता प्रतिपक्ष और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने धरना दिया जिसमें कांग्रेस के 19 विधायकों में से 16 विधायक मौजूद थे। इस समय उत्तराखंड में हरीश रावत कांग्रेस, प्रीतम सिंह कांग्रेस, करण माहरा कांग्रेस, हरक सिंह रावत कांग्रेस और यशपाल सिंह कांग्रेस के बीच बंटी हुई है।
दूसरी ओर कांग्रेस में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कार्यपरिषद सूची को लेकर भी जमकर हंगामा हुआ था। इस सूची में राज्य कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं के नाम नदारद थे। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उन्हें उत्तराखंड में कांग्रेस की दुर्गति के लिए जिम्मेदार ठहराया था। प्रीतम का कहना है कि राज्य में गुटबंदी फैलाकर कांग्रेस प्रभारी पार्टी को कमजोर करने का काम कर रहे हैं।
उनका कहना है कि अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कार्यपरिषद की सूची में राज्य के दो महत्त्वपूर्ण जनपदों उत्तरकाशी और चंपावत कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के नाम गायब हैं। एआइसीसी की सूची में उत्तराखंड कांग्रेस के कई दिग्गज अपनी जगह नहीं बना पाए। पहले से ही विभिन्न गुटों में बंटी कांग्रेस में इस सूची के जारी होने के बाद भीतरी करें और अधिक बढ़ गई है।
पिछली बार जहां कांग्रेस की एआइसीसी की सूची में 60 से ज्यादा उत्तराखंड कांग्रेस के नेता शामिल थे वहीं इस बार पार्टी हाईकमान ने इस सूची में जबरदस्त काट छांट करके सदस्यों की संख्या केवल 43 कर दी। कई कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि राज्य प्रभारी देवेंद्र यादव ने सूची जारी करने से पहले राज्य कांग्रेस के कई नेताओं से सलाह मशविरा तक नहीं किया। प्रीतम सिंह कहते हैं कि वे समय आने पर अपनी बात राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने रखेंगे। उदाहरण देते हुए कहा कि एआइसीसी की सूची में शामिल गुरदीप सिंह सप्पल का नाम शामिल किया गया है, जिनका उत्तराखंड की राजनीति से कोई लेना देना नहीं है। सूची में राज्य के पांच कांग्रेसी विधायक अपना स्थान नहीं बना पाए।
इसके अलावा कई पूर्व मंत्रियों और पूर्व विधायकों के नाम भी सूची से गायब हैं। एआइसीसी के पूर्व सदस्य योगेंद्र खंडूड़ी ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पत्र लिखा है। उन्होंने उत्तराखंड कांग्रेस की हालत पर चिंता जताते हुए प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव को बदलकर किसी वरिष्ठ नेता को यह जिम्मेदारी दिए जाने की मांग की है।
जहां सत्तारूढ़ भाजपा उत्तराखंड में 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर अभी से तैयारियों में जुट गई है वहीं विपक्षी दल उत्तराखंड कांग्रेस गुटबाजी में फंसा है। इस कारण न तो जनता की नजर में पार्टी की छवि सुधर पा रही है और न ही संगठन मजबूत बन पा रहा है। प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा को पार्टी की आपसी खींचतान और सत्तारूढ़ भाजपा के कांग्रेस पर लगातार हो रहे हमलों से जूझना पड़ रहा है।