केरल में एक गांव का नाम कथकली नृत्य के नाम पर रखा गया है। दक्षिणी केरल जिले में पम्पा नदी के तट पर स्थित एक छोटे से गांव को कथकली शास्त्रीय नृत्य के नाम पर रखा जाएगा। 12 सालों से ज्यादा समय की कोशिश के बाद पठानमथिट्टा में अय्यर गांव को अब ‘अयिरुर कथकली ग्रामम’ के नाम से जाना जाएगा।
300 साल पहले केरल में हुई कथकली नृत्य की उत्पत्ति
रंग बिरंगे श्रृंगार और वेशभूषा के लिए जाने जाने वाले कथकली नृत्य की उत्पत्ति 300 साल पहले केरल में हुई थी। भक्ति, नाटक, नृत्य, संगीत, वेशभूषा और श्रृंगार के साथ भारतीय महाकाव्यों से अतीत की महान कहानियों को जोड़ते हुए इस नृत्य शैली में हाथ और चेहरे के इशारों और भावों का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।
कथकली कलाकारों और पारखियों के परिवार की तीसरी पीढ़ी राज जो खुद एक कलाकार नहीं हैं लेकिन नृत्य शैली के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें 1995 में अपने कुछ दोस्तों के साथ एक जिला कथकली क्लब शुरू करने के लिए प्रेरित किया। पंचायत अध्यक्ष अंबिली प्रभाकरन नायर ने कहा कि इस क्लब के अनुरोध पर ग्राम पंचायत ने 2010 में गांव का नाम बदलकर अयरूर कथकली ग्रामम करने का प्रस्ताव पारित किया था।
गांव में किसी को नहीं नाम बदलने पर आपत्ति
हालांकि, पूरी प्रक्रिया को फलीभूत होने में 12 साल से अधिक का समय लगा और यह बहुत बोझिल था। क्लब के सचिव राज ने पीटीआई को बताया, “नाम बदलना इतना आसान नहीं है। यह एक लंबी प्रक्रिया है क्योंकि आपको राज्य और केंद्र सरकारों के अनुमोदन की आवश्यकता होती है। यह पता लगाने के लिए खुफिया अधिकारियों द्वारा निरीक्षण भी किया जाता है कि क्या नाम बदलने से कोई सांप्रदायिक समस्या पैदा होगी।”
राज ने कहा कि हमारी ओर से ऐसी कोई चिंता कभी नहीं थी क्योंकि किसी ने नाम बदलने पर आपत्ति नहीं की थी। यह पूछे जाने पर कि क्लब ने पहले ऐसा प्रस्ताव क्यों रखा? राज ने कहा कि गांव में लगभग 200 साल पुरानी कथकली विरासत है।
गांव का नाम बदलने में लगा 12 साल से ज्यादा का समय
राज ने बताया कि गांव के पुतेझम इलाके में चिराकुझीयिल परिवार के शंकर पणिक्कर कथकली पारखी थे और उन्होंने अपने पैतृक घर से जुड़ी कथकली कलारी शुरू करके वहां नृत्य शैली के बीज बोए। उन्होंने कहा कि यह एक क्रांतिकारी कदम था जिसने मंदिरों की चहारदीवारी से कला को बाहर निकाला, जहां उन दिनों समाज के दबे-कुचले वर्ग को प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। क्लब की स्थापना के बाद अपने खर्च पर कक्षा 1 से 10 तक के स्कूली बच्चों को नृत्य मुद्राएं सिखाईं।
पुनर्विचार के बाद मिला नया नाम
राज ने कहा कि नाम में बदलाव के प्रस्ताव को 2018 में सर्वसम्मति से केरल नाम प्राधिकरण के सदस्यों द्वारा अनुमोदित किया गया था, जो राज्य के राजस्व मंत्री की अध्यक्षता वाली एक वैधानिक संस्था है। पर जब यह भारत के महासर्वेक्षक – देश में स्थानों के नाम बदलने पर राष्ट्रीय प्राधिकरण – तक पहुंचा तो इसने गांव की वर्तनी पर एक रोड़ा अटका दिया और परिणामस्वरूप प्रक्रिया में देरी हो रही थी। जबकि युगों तक गांव का नाम ‘अय्यर’ लिखा जाता था, भारत के महासर्वेक्षक का विचार था कि यह ‘अय्यूर’ होना चाहिए और इस मामले को पुनर्विचार के लिए राज्य को वापस भेज दिया गया।
राज ने कहा कि यह हमारे लिए थोड़ा हतोत्साहित करने वाला था। इसके बाद फिर से प्रक्रिया शुरू हुई और राजस्व आयुक्त ने कहा कि राज्य सरकार भारत के महासर्वेक्षक द्वारा सुझाए गए नाम से सहमत है। राज ने कहा, “इससे मामले में तेजी आई और गृह मंत्रालय ने इस साल मार्च में गांव का नाम बदलने की मंजूरी दे दी।”