98 वर्ष की उम्र में ‘जननी अम्मा’ का निधन, 70 वर्षों में 15 हजार बच्चों की मुफ्त में कराई थी डिलीवरी
70 वर्षों में 15 हजार बच्चों की मुफ्त में डिलीवरी करवाने वाली सुलागिट्टी नरसम्मा का मंगलवार को निधन हो गया। वर्ष 2018 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।

पद्मश्री सम्मान से सम्मानित सुलागिट्टी नरसम्मा उर्फ जननी अम्मा का बेंगलुरु के बीजीएस ग्लोबल हॉस्पिटल में 98 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने 70 वर्षों तक कर्नाटक के पवगाडा तालुका के पिछड़े गांव कृष्णपुरा में 15,000 से ज्यादा बच्चों के जन्म में मदद की थी। ये सारे प्रसव बिना किसी चिकित्सा सुविधा के पारंपरिक तरीके से करवाई गई। पिछले महीने तबीयत ज्यादा खराब होने के बाद उन्हें बेंगलुरु के सिद्धगंगा हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में भर्ती करवाया गया था। बाद में 29 नवंबर को बीजीएस हॉस्पिटल रेफर कर दिया गया था। वे फेफड़ों की बीमारी से उबर नहीं सकीं और पिछले पांच दिनों से वेंटिलेटर पर थीं। डॉक्टरों ने बताया कि उन्होंने मंगलवार को दोपहर तीन बजे आखिरी सांस ली। इन्हें जननी अम्मा के नाम से भी जाना जाता था।
पद्मश्री नरसम्मा अपने पीछे एक्टिविस्ट पवगाडा श्रीराम सहित चार बेटों, तीन बेटियों और 36 नाती-पोतियों को छोड़ गई। नरसम्मा की मृत्यु की सूचना मिलने के बाद राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा अस्पताल पहुंचे और उनके प्रति शोक जताया। नरसम्मा की मृत्यु के बाद उनके बेटे पवगडा श्रीराम ने बतया कि जिला प्रशासन को इस बात की जानकारी दे दी गई है। राजकीय सम्मान के साथ उनकी मां का अंतिम संस्कार किया जाएगा। साथ ही प्रशासन यह तय करेगा कि उनकी याद में कोई स्मारक बनाया जाए या नहीं।
बता दें कि नरसम्मा एक अशिक्षित महिला थीं, इसके बावजूद उन्होंने मुफ्त में महिलाओं को प्रसव के दौरान बच्चा जनने में मदद की। वे मूल रुप से पवगाडा तालुका के कृष्णपुरा गांव की रहने वाली थी और 12 वर्ष की उम्र में ही उनकी शादी अंजीनप्पा से हो गई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बच्चे के जन्म के समय महिलाओं की मदद करने की तरकीब अपनी दादी मरीजिम्मा से सीखी थी, जिन्होंने उनके पांच बच्चे होने में मदद की थी। इसके बाद नरसम्मा गांव की महिलाओं को सुरक्षित प्रसव कराने में मदद करने लगी। करीब 15 हजार से ज्यादा महिलाओं की उन्होंने मदद की। उनके इस कार्य की वजह से वर्ष 2018 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। लोगों का मानना था कि वे पेट छूकर गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य के बारे में पता कर लेती थी।