मंत्रियों, नेताओं पर दर्ज 61 केस खत्म करना चाहती थी कर्नाटक सरकार, हाईकोर्ट ने रोका
अदालत ने कहा था कि सीआरपीसी की धारा 321 के तहत केस रद्द करने की कार्रवाई केवल न्यायालय की अनुमति से की जा सकती है।

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के उस आदेश पर सोमवार को रोक लगा दी जिसके तहत मंत्रियों और निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ 61 मामलों में मुकदमा वापस लेने का फैसला किया गया है। मुख्य न्यायाधीश अभय श्रीनिवास ओका और न्यायमूर्ति विश्वजीत शेट्टी की खंडपीठ ने कहा, ‘‘हम निर्देश देते हैं कि कर्नाटक कैबिनेट के 31 अगस्त, 2020 के आदेश के आधार पर आगे कोई कदम नहीं उठाया जाएगा।’’ अदालत ने सरकार को अगले वर्ष 22 जनवरी तक अपनी आपत्ति दाखिल करने का आदेश दिया।
अदालत एक एनजीओ, पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 321 के तहत 61 मामलों में मुकदमा वापस लिए जाने के सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी। बता दें कि जिन नेताओं से केस वापस लिए जाने की बात सामने आई है, उनमें मंत्री जेसी मधुस्वामी, आनंद सिंह, बीसी पाटिल, पूर्व मंत्री सीटी रवि शामिल हैं। इसके अलावा मुख्यमंत्री के राजनीतिक सचिव एमपी रेणुकाचार्य से भी मुकदमे हटाए जाने थे।
हाईकोर्ट ने 21 दिसंबर (सोमवार) को हुई सुनवाई राज्य सरकार से यह भी कहा था कि वह उन सभी सरकारी वकीलों को 1 दिसंबर से जुड़े कोर्ट के आदेश की कॉपियां दें, जिन्हें 61 मामलों में मुकदमे वापस लेने के लिए कहा गया है। दरअसल, पिछली सुनवाई के दौरान कर्नाटक हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला देते हुए कहा था कि सरकारी वकील राज्य सरकार के पोस्ट बॉक्स की तरह काम नहीं कर सकता, क्योंकि वह कोर्ट का एक अफसर है।
अदालत ने कहा था कि सीआरपीसी की धारा 321 के तहत कार्रवाई केवल न्यायालय की अनुमति से की जा सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि यहां तक कि अगर कोई आवेदन सीआरपीसी की धारा 321 के तहत किया जाता है, तो न्यायालय यह आकलन करने के लिए बाध्य हैं कि क्या एक प्रथमदृष्टया मामला बनता है या नहीं और न्यायालय के पास आवेदन खारिज करने का अधिकार है। हाईकोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई 29 जनवरी को रखी है।