जम्मू-कश्मीर के बडगाम में 11 मई को आतंकवादियों द्वारा कश्मीरी पंडित राहुल भट्ट की हत्या कर दी गई थी। राहुल भट्ट तहसीलदार कार्यालय में कार्यरत थे। वे प्रवासी कश्मीरी पंडितों के लिए प्रधानमंत्री रोजगार पैकेज के तहत काम कर रहे थे। इस योजना के तहत पंडित प्रवासियों के लिए प्रदान किए गए कुल 6,000 पदों में से कुल 5,928 भरे गए हैं। उनमें से सिर्फ 1,037 कश्मीरी पंडित सुरक्षित आवास में रहते हैं।
राहुल भट्ट की हत्या के बाद घाटी में कश्मीरी पंडितों द्वारा अपनी सुरक्षा को लेकर विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। राहुल भट्ट राजस्व विभाग के एक कर्मचारी थे, जो बडगाम में एक सुरक्षित आवास में रहते थे। ये कॉलोनी पंडितों के लिए कश्मीर की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी कॉलोनी है। लेकिन कुछ दूरी पर उनके कार्यालय में उन्हें गोली मार दी गई।
राहुल भट्ट जिस पद पर कार्यरत थे, ऐसे पदों की घोषणा 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा की गई थी, जिसका उद्देश्य पंडित प्रवासियों को घाटी में वापस लाना और उनका पुनर्वास करना था। इनके लिए वेतन गृह मंत्रालय से आना था। योजना की शुरुआत में 3,000 पदों की घोषणा की गई थी, बाद में 3,000 पद और जोड़े गए और लगभग सभी पद भर गए। नरेंद्र मोदी सरकार ने कश्मीरी पंडितों के लिए अभी तक कोई योजना शुरू नहीं की है।
2008 का जॉब पैकेज कश्मीरी पंडितों की वापसी और पुनर्वास के लिए 2002-04 में तैयार की गई एक पूर्व योजना का हिस्सा थी, जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार सत्ता में थी और मुफ्ती मोहम्मद सईद कांग्रेस के साथ गठबंधन कर जम्मू कश्मीर में सरकार का नेतृत्व कर रहे थे।
योजना के अनुसार घाटी में लौटने के इच्छुक प्रत्येक प्रवासी कश्मीरी पंडित परिवार को अपने घरों के पुनर्निर्माण के लिए 7.5 लाख रुपये का भुगतान किया जाना था। राहत एवं पुनर्वास आयुक्त अशोक पंडिता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इस योजना के तहत 6000 में जो 72 पद खाली हैं, वो मुकदमेबाजी में उलझे हुए हैं। राहत और पुनर्वास आयोग देश भर में रहने वाले प्रवासी कश्मीरी पंडितों के मामलों की देखभाल करने वाली नोडल एजेंसी है।