Sikkim HC: सिक्किम हाईकोर्ट (Sikkim High Court) ने एक अहम फैसले में कहा है कि किसी आरोपी को दोषी करार देकर ट्रायल कोर्ट ने सजा दी हो और सजा उस मामले में न्यूनतम हो तो इसे कम नहीं किया जा सकता। अपील की सुनवाई करने वाली अदालत भी इसे कम नहीं कर सकती है।
जस्टिस मीनाक्षी मदन रया और भास्कर राज प्रधान की बेंच ने कहा कि कानूनन जो न्यूनतम सजा किसी मामले में निर्धारित की गई है कोर्ट उससे कम सजा नहीं दे सकती। बेंच ने आगे कहा कि अगर दोषी सजा के खिलाफ अपील करता है तो अपीलीय अदालत भी न्यूनतम सजा को कम नहीं कर सकती।
सिक्किम हाईकोर्ट एक मामले की सुनवाई कर रहा था। इसमें आरोपी पर आईपीसी की धारा 376(2), 376(3) सेक्शन 5(j)(ii), 5(l), और पोक्सो एक्ट के सेक्शन 6 के तहत कार्रवाई की गई थी। ये सजा स्पेशल कोर्ट ने सुनाई थी। आरोपी की तरफ से पैरवी करते हुए एडवोकेट जोर्गे नामका ने कहा कि वो सजा को चुनौती नहीं दे रहे हैं, लेकिन मामले को देखने के बाद लगता है कि ये काफी सख्त है। आरोपी और पीड़िता की रिलेशनशिप से एक बच्चे का जन्म हुआ। उस बच्चे और पीड़िता को देखभाल की जरूरत है। लेकिन मौजूदा हालात में उनकी देखभाल सही तरीके से नहीं हो पा रही।
उनका कहना था कि याचिकाकर्ता की उम्र उस समय 27 साल थी जबकि पीड़िता की 16 साल। दोनों के बीच प्रेम संबंध था। दोनों के बीच सब कुछ सहमति से हुआ था। मामला तब बिगड़ा जब पीड़िता के पिता ने केस दर्ज करा दिया। उन्होंने इस आधार पर सजा को कम करने की अपील की। सरकारी वकील का कहना था कि सहमति का सवाल पैदा ही नहीं होता क्योंकि लड़की उस समय नाबालिग थी। उनका कहना था कि सजा को कम करने की अपील बेमानी है। बेंच ने अपने फैसले में कहा कि ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता को न्यूनतम सजा ही दी है। इसमें किसी तरह का फेरबदल नहीं किया जा सकता।