मास्टर से आतंकी बना रियाज नायकू, ऐसे बना घाटी में हिज्बुल की रीढ़, पिता की नजरबंदी पर पुलिसकर्मी के 11 परिजनों को कर लिया था अगवा
नायकू पर नजर रखने वाले एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि वह अपने अभियान के बारे में किसी को नहीं बताता था। तकनीक का अच्छा जानकार होने के नाते तकनीक से जुड़ा ऐसा कोई भी सुबूत नहीं छोड़ता था जो सुरक्षा बलों को उस तक पहुंचा सके।

जम्मू कश्मीर में बुधवार को सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया हिज्बुल मुजाहिदीन का एक शीर्ष कमांडर रियाज नायकू आतंकवाद की राह पर चलने से पहले गणित का अध्यापक था। सुरक्षा बलों को नायकू की आठ वर्षों से तलाश थी। वह अपने ही गांव में घिरने के बाद सुरक्षा बलों के हाथों मारा गया। अवंतिपुरा में पुलिस रिकॉर्ड में उसका नाम पहली बार छह जून 2012 को ‘रोजनामचे’ में तब दर्ज हुआ जब वह बेघपुरा गांव के अपने मकान से अचानक गायब हो गया।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि नायकू के खिलाफ 11 मामले दर्ज थे और उस पर 12 लाख रुपए का इनाम था। वह ज्यादातर अकेला ही रहता था और आतंकवादी संगठन के अंदर किसी पर भरोसा नहीं करता था। न्होंने बताया कि नायकू तकनीक का अच्छा जानकार था और सामने आने से हमेशा परहेज करता था। उसने ही 2014 में अपने साथी बुरहान वानी को संगठन की कमान संभालने को कहा था। बुरहान वानी हिजबुल का पोस्टर ब्वॉय था। वह 2016 में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया।
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उसके मारे जाने के बाद नायकू ने आतंकवादी संगठन की अंदरूनी राजनीति से खुद को दूर रखा और सब्जार अहमद और फिर उसके बाद जाकिर मूसा को कमान सौंपी। वानी की मौत के कुछ ही सप्ताह के बाद सब्जार मुठभेड़ में मारा गया और मूसा ने हिजबुल मुजाहिदीन छोड़ कर अपना अलग संगठन ‘अंसार गजवात-उल-ंिहद’ बनाया। यह दूसरे आतंकवादी संगठन अलकायदा से जुड़ा था। मूसा के अलग होने के बाद नायकू ने आतंकवादी संगठन की कमान संभाली।
नायकू पर नजर रखने वाले एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि वह अपने अभियान के बारे में किसी को नहीं बताता था। तकनीक का अच्छा जानकार होने के नाते तकनीक से जुड़ा ऐसा कोई भी सुबूत नहीं छोड़ता था जो सुरक्षा बलों को उस तक पहुंचा सके। किसान के बेटा नायकू ने पुलवामा के सरकारी डिग्री कॉलेज से स्रातक किया था और एक निजी स्कूल में पढ़ाता था। सुरक्षा बलों ने उसे 2010 में एक प्रदर्शन के दौरान पकड़ा था और 2012 में उसे रिहा कर दिया था।
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उन्होंने बताया कि रिहा होने के तीन सप्ताह बाद मई 2012 में वह घर से चला गया और फिर नहीं लौटा। शोपियां में 2016 में एक आतंकवादी के जनाजे में वह राइफल लिए दिखाई दिया। इसके बाद से वह दक्षिण कश्मीर से आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने लगा। पुलिस ने नायकू के पिता को हिरासत में लिया तो सितंबर 2018 में उसने पुलिस अधिकारियों के 11 रिश्तेदारों को बंधक बना लिया। इसके बाद पुलिस अधिकारियों को उसके पिता को रिहा करना पड़ा और बदले में अपने रिशतेदारों की सुरक्षित रिहाई कराई। नायकू अकसर पाकिस्तानी प्रोपेगंडा को बढ़ावा देता था। उसने अनेक वीडियो और ऑडियो जारी कर पुलिसर्किमयों को आतंकवाद विरोधी अभियानों से दूर रहने की चेतावनी दी थी।
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