सुभाष मेहरा
Himachal Pradesh Election Analysis: सत्ता और विपक्ष के मध्य हुई इस सीधी जंग में कांग्रेस ने 20 सीटें निकाल कर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) का घर लूट लिया है। लिहाजा माना जा रहा है कि आलाकमान स्तर पर नड्डा की कुसी पर खौफ मंडराने का संकट पैदा हो सकता है।नतीजों में चंबा की रानी आशा कुमारी (Asha kumari) को डलहौजी (Dalhousie) में हार का मुंह देखना पड़ा है मगर प्रदेश के सबसे बड़े जिले कांगड़ा के दस हलकों पर कब्जा करने वाली कांग्रेस के दो युवा प्रत्याशियों के आगे वन मंत्री राकेश पठानिया और सामाजिक कल्याण मंत्री सरवीण चौधरी बुरी तरह से रौंदे गए।
कांग्रेस ने पिछली बार की पराजय का हिसाब-किताब बराबर
सुलाह हलके से विधानसभा अध्यक्ष विपिन परमार, जसवां परागपुर से उद्योग मंत्री विक्रम ठाकुर के अलावा बतौर निर्दलीय होशियार सिंह राणा दोबारा अपने देहरा हलके को बचाने में कामयाब हुए हैं। गौरतलब है कि सरकार के गठन में अहम भूमिका अदा करने वाले प्रदेश के निचले इलाके के इन चार जिलों के 30 में से 20 हलके जीत कर कांग्रेस ने पिछली बार की पराजय का हिसाब-किताब बराबर करके भाजपा को इस बार आठ हलकों पर समेट दिया है।
सीएम जय राम बड़े यकीन से कह रहे थे कि ‘इस बार रिवाज बदलना तय है’
इस लड़ाई में भाजपा ने बतौर निर्दलीय आशीष शर्मा के जरिए हमीरपुर सदर हलका भी गवां दिया है। इन मुकाबले के जरिए विधानसभा की दहलीज पर देहरा से होशियार राणा और हमीरपुर सदर से आशीष शर्मा जैसे दो निर्दलीयों के कदम रखे जाने के साथ ऊना सदर से सिर्फ सतपाल सत्ती बमुश्किल पार्टी की लाज बचा पाए हैं। लिहाजा चुनावी प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री जय राम बड़े यकीन से यह कह रहे थे कि ‘इस बार हमने रिवाज बदलना तय किया है’।
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लेकिन पांच बरस के बाद सरकार बदलने की मानसिकता व परंपरा को जय-पराजय में बदलने वाली जनता की ताकत को दान के सिंहासन पर सवार जय राम भूल गए। इस चुनाव में मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और सरकार की तकदीर का फैसला करने वाले कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली जैसे मसलों को विपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री के शाब्दिक हमलों का मुकाबला शास्त्रार्थ से करने के बजाय पांच बरस तक भाजपा और संगठन सरकार घुटने पर रहे।
नतीजन सरकार से तंग होकर बैठी जनता ने भाजपाई क्षत्रपों की एक नही सुनी और सुजानपुर व शाहपुर में प्रधानमंत्री मोदी की रैलियां भी राजेंद्र सिंह राणा और केवल पठानिया के लिए विधानसभा के रास्ते रोक नही पाईं तो चंबा में शाह की जनसभा को नीरज नैयर की जीत ने बेअसर साबित किया। लिहाजा वीरभद्र सिंह के बाद प्रचार को अपने कंधों पर उठाए हुए अग्निहोत्री के आक्रमण ने सत्तापक्ष की धार कुंद किए रखी और भाजपाइयों का यह हरावल दस्ता नतीजों को जीत में बदल नही पाया। बहरहाल सरकार दोहराने की परंपरा का ध्वजवाहक बनने की उम्मीदजदा जय राम को मतदाताओं ने भाजपा की मढ़ी पर दीया जलाने को विवश कर दिया है।