गुजरात हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस बीरेन वैष्णव ने आशंका व्यक्त की कि क्या नोटबंदी के उद्देश्यों को पूरा किया गया। जस्टिस ने कहा कि नोटबंदी का मुख्य उद्देश्य नकली रुपयों, काले धन और आतंक की फंडिंग को खत्म करने का था। बता दें कि इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के आधार पर नोटबंदी के पक्ष में फैसला सुनाया था।
कुछ मामलों का हवाला देते हुए जिसमे न्यायिक फैसलों ने अर्थव्यवस्था की रूपरेखा को आकार दिया है, जस्टिस वैष्णव ने यह भी कहा कि हमें विचार करने की आवश्यकता है कि क्या अदालतों के लिए हमेशा उन सवालों में हस्तक्षेप करना उचित है जो आर्थिक मामलों से जुड़े हैं। जस्टिस वैष्णव GNLU सेंटर फॉर लॉ एंड इकोनॉमिक्स द्वारा आयोजित कानून, शासन और सार्वजनिक नीति के आर्थिक विश्लेषण पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में बोल रहे थे।
नोटबंदी को सही ठहराने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख करते हुए जस्टिस वैष्णव ने कहा, “8 नवंबर, 2016! मुझे यकीन है कि हम सभी अभी भी रात 8 बजे प्रधान मंत्री की उस प्रेस कॉन्फ्रेंस से कांपते हैं, जब उन्होंने कहा था कि बड़ी मुद्राओं का विमुद्रीकरण किया गया। हमें रातों-रात अचानक पता चला कि हमारे पास कोई लीगल टेंडर नहीं बचा है। क्या हम एटीएम या बैंकों में उन लाइनों को भूल सकते हैं? जनता को काफी पीड़ा झेलनी पड़ी। छह साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 के फैसले में कहा कि निस्संदेह नोटबंदी के कारण नागरिकों को विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन अदालत ने कहा कि नकली मुद्राओं, काले धन और आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने का उद्देश्य हासिल किया गया था।”
नोटबंदी के उद्देश्यों की पूर्ति को लेकर जस्टिस वैष्णव ने कहा, “जब मैं यहां खड़ा हूं, तो सुप्रीम कोर्ट के प्रति सम्मान के साथ हम सभी फैसले से बंधे हैं और मैं आप सभी से ज्यादा इससे बंधा हूं। लेकिन मुझे नहीं पता कि क्या उन सवालों का अभी भी उत्तर मिला है कि नोटबंदी के उद्देश्यों को प्राप्त किया गया या नहीं।”
इसी वर्ष 2 जनवरी को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि 8 नवंबर, 2016 को 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोटों की कानूनी निविदा को वापस लेने की सरकारी अधिसूचना कोई कमी नहीं थी। पांच में चार जज नोटबंदी से सहमत थे जबकि एक असहमत थे।