जैसे यूपी, पंजाब समेत पांच राज्यों में होने वाले चुनाव से ऐन पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने कृषि कानून वापस लिए थे, ठीक उसी तर्ज पर गुजरात की बीजेपी सरकार ने तापी-नर्मदा नदी जोड़ो परियोजना को रद्द कर दिया है। मोदी को आशंका थी कि कृषि कानून वापस न लिए तो पांच चुनावी सूबों में बीजेपी को नुकसान हो सकता है। उसी तरह से गुजरात की सरकार को अंदेशा था कि योजना आगे गई तो आदिवासी वोटबैंक से उसे हाथ धोना पड़ सकता है। जाहिर है कि इसी साल गुजरात में चुनाव होने हैं। बीजेपी जोखिम उठाने के मूड़ में नहीं है।
तापी-नर्मदा नदी जोड़ो परियोजना रद्द करने का ऐलान मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने किया। विस्थापन की आशंका के चलते आदिवासी समुदाय के लोग इस परियोजना के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे। उसी बीच राहुल गांधी ने अपने गुजरात प्रवास के दौरान घोषणा कर दी कि उनकी सरकार सूबे में बनी तो परियोजना को रद्द किया जाएगा। बीजेपी के लिए राहुल की ये चेतावनी खतरे की घंटी थी। पार्टी के पता था कि अकेले राहुल नहीं केजरीवाल भी मुद्दे को कैश कर सकते हैं।
हालांकि भाजपा की गुजरात इकाई के अध्यक्ष सीआर पाटिल ने लगभग दो महीने पहले अमित शाह से मुलाकात के बाद कहा था कि केंद्र परियोजना को आगे नहीं बढ़ाएगा। लेकिन पाटिल के आश्वासन दिए जाने के बाद भी आदिवासियों का विरोध जारी रहा। उन्हें परियोजना के लागू होने का संदेह था। उन्होंने परियोजना से प्रभावित होने वाले जिलों से बड़े पैमाने पर विस्थापन की आशंका जतायी थी। बीजेपी को यहीं पर लगा कि ये मसला बेवजह का ऐसा बखेड़ा खड़ा कर सकता है जो चुनाव में बीजेपी के लिए जान-ए-बवाल बनकर रह जाए।
डैमेज कंट्रोल के तहत सीएम पटेल ने कहा कि इस परियोजना के लिए गुजरात सरकार ने मंजूरी नहीं दी। राज्य सरकार ने फैसला किया है कि इसे किसी भी परिस्थिति में आगे नहीं बढ़ाया जाएगा। हमारे आदिवासी भाई-बहनों की भावनाओं का सम्मान करते हुए परियोजना को रद्द करने का निर्णय लिया गया है। उन्होंने कहा कि केंद्र की किसी भी परियोजना को केवल राज्य सरकार की मंजूरी के बाद ही आगे बढ़ाया जा सकता है। लेकिन राहुल गांधी ने कहा कि गुजरात के दाहोद में उनके दौरे के बाद ही दबाव में आकर गुजरात की भाजपा सरकार ने तापी-नर्मदा लिंक प्रोजेक्ट रद्द किया है। यानि कांग्रेस इस मुद्दे से चुनावी फायदा उठाने में कसर नहीं छोड़ने वाली।