Gujarat Assembly Elections: गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही तमाम राजनीतिक दलों ने वोटर्स को लुभाने के लिए प्रचार तेज कर दिए हैं। इन सब के बीच सभी पार्टियां मुस्लिम वोटों (Muslim Vote) पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही हैं। मुस्लिम समुदाय गुजरात की कुल आबादी का लगभग नौ प्रतिशत है। लेकिन इसके विपरीत कांग्रेस (Congress) के मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या 1995 से अब तक आधी हो गयी है, वहीं BJP ने तो केवल एक को टिकट दिया है।
गुजरात के 182 निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस ने इस बार केवल 6 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। भाजपा ने व्यारा निर्वाचन क्षेत्र से दो दशकों के बाद एक ईसाई उम्मीदवार भी उतारा है। BJP ने आखिरी बार 1998 में वागरा विधानसभा सीट से मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारा था। वहीं, आम आदमी पार्टी ने तीन मुसलमानों को मैदान में उतारा है, जबकि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने कुल 13 नामांकन में से 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। वहीं, समुदाय के कई निर्दलीय उम्मीदवार भी हैं, जिनके कांग्रेस के वोट शेयर में सेंध लगाने की उम्मीद है।
गुजरात के विधानसभा चुनावों में कम होता जा रहा मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व: पारंपरिक रूप से कांग्रेस से जुड़े मुस्लिम वोट बैंक का गुजरात के विधानसभा चुनावों में प्रतिनिधित्व कम होता जा रहा है। 2017 में, कांग्रेस द्वारा मैदान में उतारे गए 6 उम्मीदवारों में से तीन ने गुजरात विधानसभा में जगह बनाई जबकि 2012 में पांच में से केवल दो चुने गए। समुदाय से अपने चुने हुए प्रतिनिधियों को छोड़कर अल्पसंख्यक, जो समुदाय के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपना विरोध दर्ज कराने में मुखर रहे हैं।
कांग्रेस को करना है BJP की हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला: कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ”इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में कांग्रेस को बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला करना है। भाजपा कांग्रेस को हिंदू विरोधी पार्टी कहती है। ऐसे में कांग्रेस अपनी छवि को लेकर सचेत और समझदार हो गई है।”
उन्होंने आगे कहा, “हालांकि, मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारना इस छवि परिवर्तन का हिस्सा नहीं है। 1990 से ही मुस्लिम उम्मीदवारों की जीत की संभावना सवालों के घेरे में आ गई थी। दरअसल, 1995 में कांग्रेस के सभी 10 मुस्लिम उम्मीदवार हार गए थे। 1998 में हमारे नौ उम्मीदवारों में से पांच जीते थे इसलिए 2002 में केवल विजेताओं को दोहराया गया।
भाजपा नहीं मानती इसे बड़ा मुद्दा: वहीं, भाजपा नेताओं के लिए मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारना बड़ा मुद्दा नहीं है। बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘पार्टी की विचारधारा के मुताबिक हम सभी समुदायों के लिए काम करते हैं। कोई भी किसी भी समय सरकारी नेताओं से संपर्क कर सकता है। पार्टी मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की जरूरत महसूस नहीं करती है क्योंकि तुष्टिकरण पीएम नरेंद्र मोदी के एजेंडे का हिस्सा नहीं है।” उन्होंने कहा, “हम अपने अभियान में भी यही कहते रहे हैं। जहां हमें मुस्लिम समुदाय का समर्थन मिलता है, मतदाता विकास के लिए वोट करते हैं न कि अपने धर्म के उम्मीदवार के लिए।”