Uttar Pradesh News: उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों में पिछले दो दिनों से मूसलाधार बारिश हो रही है। इस बीच इटावा कचहरी परिसर में लगा ऐतिहासिक बरगद का पेड़ भी तेज बारिश की मार नहीं सह सका और गिर गया। इस वृक्ष से कई ऐतिहासिक घटनाएं जुड़ी हैं। करीब 150 सालों से यह पेड़ सत्याग्रहियों के संघर्ष का गवाह रहा है। इस बरगद के पेड़ की पूजा करने वाले लोग अब इस स्थान पर फिर से पेड़ लगाने की प्रशासन से मांग कर रहे हैं।
दरअसल, जिले में कई राजनेताओं ने बरगद इस पेड़ के नीचे बैठकर अपनी राजनीति को गति दी है। इनमें एक बड़ा नाम सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का भी है। बलराम सिंह यादव, मुलायम सिंह यादव, चौधरी रघुराज सिंह, गौरी शंकर, गोरे लाल शाक्य जैसे तमाम नेताओं को राजनीति का पाठ सिखाने वाला यह प्राचीन ऐतिहासिक पेड़ मूसलाधार बारिश को झेल नहीं पाया और धाराशायी हो गया।
पेड़ के नीचे धरना-प्रदर्शन करते थे लोग: पिछले 150 सालों से लोग जिला मुख्यालय में इसी पेड़ के नीचे धरना-प्रदर्शन करते थे। इसके गिरने से आंदोलकारी, सत्याग्राही परेशान हैं कि अब वह किस स्थान पर अनशन-धरना कर अपनी मांग उठाएंगे। स्थानीय नागरिकों ने इसे तीर्थस्थल बता कर डीएम अवनीश राय से इस स्थान पर दोबारा एक बरगद का पेड़ लगाने की मांग की है।
लोगों ने बताया तीर्थस्थल: कचहरी परिसर में लगे इस पेड़ की हर दिन पूजा करने वाले समाजसेवी वरिष्ठ पत्रकार गणेश ज्ञानार्थी का कहना है कि ब्रिटिश शासनकाल में के दौरान लगान न देने वालों को इस पेड़ पर लटका कर सजा दी जाती थी। उस समय क्रांतिकारियों को भी इस पेड़ से बांधा जाता था। स्वतंत्रता संग्राम में सुभाष चंद बोस की आजाद हिंद फौज के वीर लड़ाकों का भी इस वृक्ष से नाता रहा है।
पत्रकार गणेश ज्ञानार्थी ने कहा, “मैं हर दिन बरगद के पेड़ की परिक्रमा करने आता हूं और बस एक ही मांग करता रहा हूं कि आंदोलनकारियों और प्रदर्शनकारियों की आवाज को बल मिले क्योंकि प्रशासन सदैव निर्मम, क्रूर और अमानवीय होता है।” उन्होंने कहा, “इस वट वृक्ष के नीचे जिन लोगों ने भी संघर्ष किया है वो कामयाबी की सीढ़ियां चढ़े हैं। चाहे शीला दीक्षित रहीं हों, मुलायम सिंह यादव या बलराम सिंह यादव रहे हों और चाहे किसी भी पार्टी के रह हों, सबको इस बरगद के पेड़ के नीचे आसरा मिला है।”