Dr Kumar Vishvas : कुमार विश्वास की गिनती देश के नामी गिरामी कवियों में होती है। उनकी कविताओं को दुनिया भर में सुना पढ़ा और देखा जाता है। ‘कोई दीवाना कहता है’ कविता ने उन्हें लोकप्रियता का नया मुकाम दिया। जिसके कारण वह अपने आपको कमर्शियल कवि के तौर पर स्थापित कर पाए। आज वह एक शो में शामिल होने के लाखों रुपये लेते हैं। इस शोहरत को पाने के लिए कुमार जब भी अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हैं तो वह बताते हैं कि पिता को उनका कविताओं और साहित्य के प्रति यह रुझान पसंद नहीं था। वह कुमार को इंजीनियर बनाना चाहते थे। अपने जीवन का ऐसा ही एक रोचक किस्सा पिछले दिनों उन्होंने साहित्य तक के कार्यक्रम में सुनाया।
कुमार विश्वास ने बताया कि किस तरह से पहली बार उन्होंने कविता लिखी थी और उस कविता को लोगों की प्रशंसा भी मिली थी। साहित्य तक के कार्यक्रम में उन्होंने बताया कि स्कूल के दिनों में उनकी बहन को एक प्रतियोगिता में कविता पढ़ने का मौका मिला था। प्रतियोगिता में जाने के लिए बहन एक कविता तैयारी कर रही थीं लेकिन वह कविता पूरी नहीं हो पा रही थी। इसी दौरान कुमार, बगल में बैठकर केमस्ट्री पढ़ रहे थे। उन्होंने बहन की मदद की तो कविता पूरी हो गई।
कुमार विश्वास ने बताया कि बहन ने जब प्रतियोगिता में कविता सुनाई तो उन्हें प्रथम पुरस्कार मिला। पुरस्कार के साथ वह घर आईं तो पिता ने आशीर्वाद दिया। साथ ही सवाल पूछा कि इस कविता में तुमने किसकी मदद ली थी ? बहन ने कुमार की तरफ देखते हुए कहा कि नहीं नहीं, मैंने किसी की मदद नहीं ली। कार्यक्रम में विश्वास बताते हैं कि पिता जी तुरंत समझ गए कि इस कविता में मेरा योगदान है।
पिता ने जब कुमार को अपने पास बुलाया तो वह खुशी खुशी यह सोचकर गए कि उन्हें इस कविता के एवज में कुछ पुरस्कार या प्रशंसा मिलेगी लेकिन हुआ इससे उलट। इस घटना को याद करते हुए कुमार विश्वास हंसते हुए बताते हैं कि पिता जी ने कान के नीचे थप्पड़ रसीद करते हुए कहा कि तुमसे 15 दिनों से पीरियोडिक टेबल याद करने के लिए कह रहे थे लेकिन तुम इस कविता में लगे रहते हो। उनके ऐसा कहते ही वहां लोग ठहाके लगाने लगे और कुमार भी मुस्कुराते रहे। वह बताते हैं कि पहली कविता के एवज में हमें दो थप्पड़ और बहन को 51 रुपये का पुरस्कार मिला था।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कुमार विश्वास कुछ साल पहले तक डिग्री कॉलेज में अध्यापन का कार्य भी किया करते थे। लेकिन राजनीतिक टीका टिप्पणी के चलते उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया था। वह कई मौकों पर बता चुके हैं कि कवि बनने से ज्यादा संघर्ष उन्हें समाज में इस बात को स्वीकार कराने में हुआ कि वह कवि बनकर भी अच्छा जीवन बिता सकते हैं।