पिछले दिनों झुग्गियों को गिराए जाने के मुद्दे पर सत्ता पक्ष की एक विधायक ने धरना दिया। पर इस दौरान उनकी पार्टी के कार्यकर्ता और नेता उतनी संख्या में नहीं पहुंचे, जितने की उम्मीद की थी। पार्टी के नेता और कार्यकर्ता भी देरी से पहुंचें, जिनको भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी दी गई थी।
उनके इस व्यवहार को लेकर विधायक नाराज हो गर्इं और नेता को फटकरा भी लगाया। अब पार्टी के अंदर चर्चा है कि इसमें नेताओं और कार्यकर्ताओं की क्या गलती है। विधायक को इतना तो पता होना चाहिए कि भीड़ एक दिन में नहीं जुटाई जाती। भीड़ जुटाने के लिए मुद्दे के साथ कई अन्य साधनों की आवश्यकता होती है। यदि विधायक को भीड़ अधिक दिखानी थी तो इसको लेकर तैयारी के लिए वक्त देना चाहिए था।
बेरौनक हुए नेताओं के दरबार
उत्तर प्रदेश के अग्रणी विकसित शहरों में शुमार नोएडा और ग्रेटर नोएडा में जन प्रतिनिधियों समेत अन्य रूसूखदार नेताओं के यहां फरियादियों की लगने वाली भीड़ बेहद कम होने लगी है। इसकी वजह यह नहीं है कि लोगों की परेशानियां या शिकायतें कम हो गई हैं बल्कि जन प्रतिनिधियों के यहां मान मुनव्वल करने के बाद भी समाधान नहीं हो पाना इनकी वजह कही जा रही है। इसके इतर अब निवासी नेताओं के बजाए अधिकारियों या प्राधिकरण व पुलिस महकमे के जन सुनवाई दिवस में दी जाने वाली फरियाद पर कार्यवाही होने का ज्यादा भरोसा जता रहे हैं।
इस अजीबोगरीब स्थिति से जहां नेताओं के यहां लगने वाले दरबार फीके पड़ने लगे है, वहीं अहम पदों पर बैठे अधिकारी, दो भूमिकाएं नेता और काम करने वाले प्रशासनिक पद दोनों का दायित्व उठाने वाला समझकर खुद को सबसे सार्थक पेश करने की कोशिश कर अपनी आगे की संभावनाएं तलाश रहे हैं।
शिक्षा का माडल और लिखित सामग्री पर ली सरकार की चुटकी
दिल्ली भर में शिक्षा के माडल को लेकर उपराज्यपाल व मुख्यमंत्री के बीच चल रहे विवाद से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। इस माडल को लेकर ‘आप’ उपराज्यपाल के खिलाफ सड़क तक पहुंच चुकी है। ‘आप’ के प्रदर्शन में प्रयोग किए पोस्टर भाजपा नेताओं के सबसे बड़ा हथियार बनकर सामने आए हैं। इन पोस्टर में प्रयोग किए गए शब्दों को लेकर भाजपा नेता सरकारी तंत्र की चुटकी लेते नजर अए।
इन पोस्टर में फिनलेंड और ट्रैनिंग जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया था। ये दोनों शब्द गलत है जबकि सही शब्द फिनलैंड और ट्रेनिंग है। इसे भाजपा नेताओं ने शिक्षा को तमाशा बताकर सोशल मीडिया में ‘आप’ की व्याकरण की गलतियों को शिक्षा तंत्र की गड़बड़ियों से जोड़कर आम जनता के सामने रखने की कोशिश की।
निगम में निदेशक से उपनिदेशक बने?
कई बार बारी से प्रोन्नति भी जोखिम भरा साबित हो जाता है। प्रोन्नति पाए अधिकारियों को लेने के देने पड़ जाते हैं। निजी कंपनियों में तो अक्सर ऐसे जोखिम उठाने के लिए कर्मचारी तैयार रहते हैं। लेकिन सरकारी नौकरियों में ऐसी प्रोन्नति और जोखिम बहुत कम ही लोग लेना पसंद करते हैं। हालांकि इसमें प्रशासन की किरकिरी भी होती है। निगम में ऐसे ही एक निदेशक को उपनिदेशक बनाने का ताजा मामला तो हास्यास्पद हो गया है।
सालों उपनिदेशक रहे इस अधिकारी को पूर्वी निगम में निदेशक बना दिया गया। कुछ ही दिन उनकी नौकरी शेष रह गई है सो अधिकारी को भी यह संतोष हुआ कि देर ही सही अब उनकी बांकी नौकरी निदेशक बनकर ही कट जाएगी। लेकिन तीनों निगमों का जैसे ही एकीकरण हुआ, निदेशक को उपनिदेशक बनाकर सिविक सेंटर में बैठा दिया गया।