देवभूमि उत्तराखंड जहां विभिन्न देवी-देवताओं की सिद्ध पीठ है वहीं यह प्राकृतिक सौंदर्य से सराबोर है। देवभूमि का 67 फीसद से ज्यादा क्षेत्र वनक्षेत्र है, जो सिद्ध योगियों के लिए साधना का प्रमुख केंद्र माना जाता है। यह वन क्षेत्र विभिन्न वन्यजीवों का घर भी है। इस देवभूमि के बाशिंदों का वन और वन्य जीव से गहरा नाता है। इसलिए यहां पर कई कथाएं वन्यजीवों से जुड़ी हुई हैं जो यहां के बाशिंदों की आस्था का एक प्रमुख केंद्र हैं। इसी सिलसिले में पर्वतों की रानी मसूरी का नाग देवता मंदिर लोगों की आस्था और श्रद्धा का प्रमुख केंद्र है। नाग देवता का अत्यंत प्राचीन यह सिद्ध मंदिर देहरादून से मसूरी जाते हुए हाथी पांव रोड क्षेत्र में स्थित है। मान्यता है कि यह मंदिर 500 साल से अधिक प्राचीन है।
सदियों से हर साल नाग पंचमी पर लगता है बड़ा मेला
नाग देवता का यह अत्यंत प्राचीन मंदिर एक सिद्ध पीठ है, जहां हर साल नाग पंचमी में नाग देवता का बड़ा मेला सदियों से लगता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि एक दंतकथा के अनुसार इस क्षेत्र में रहने वाले एक व्यक्ति की गोशाला थी और उसकी गायें रोजाना इस क्षेत्र के जंगल में चर कर शाम के समय जब गोशाला में पहुंचती थीं तो उसके थनों में दूध नहीं पाया जाता था। एक दिन गोशाला के मालिक ने इस रहस्य को जानने के लिए अपनी गोशाला की गायों का वन क्षेत्र में जाने पर चुपके से पीछा किया तो उसे यह देख कर आश्चर्य हुआ कि उसकी गायें अपने थनों से सारा दूध एक पत्थर के ऊपर चढ़ा देती हैं और जिसे नाग देवता पी जाते थे।
गोशाला के मालिक ने चुपके से गायों को पत्थर पर दूध छोड़ते देखा और देखा कि उस दूध को नाग पी रहे थे। यह रहस्य अपनी आंखों से देख कर चकित गांव वाले ने अपने आसपास के लोगों को यह घटना बताई तो सभी गांव वालों ने नाग देवता को प्रसन्न करने के लिए उस स्थान पर नाग मंदिर की स्थापना की और इस नाग मंदिर की स्थापना के बाद मसूरी के इस क्यार कुली भट्टा गांव के लोग नागदेवता को अपना कुलदेवता मानने लगे। तब से नागपंचमी के दिन यहां पर नाग देवता का बड़ा मेला लगता है, जो नाग पंचमी से एक हफ्ते पहले शुरू हो जाता है। स्थानीय लोग ढोल नगाड़ों के साथ पारंपरिक वेशभूषा में नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है।
इस मेले में मसूरी और आसपास के क्षेत्र के लोग बड़ी तादाद में हिस्सा लेते हैं। नाग देवता के अत्यंत प्राचीन मंदिर में स्थापित 500 साल से भी अधिक प्राचीन नाग देवता की मूर्ति का दुग्धाभिषेक करते हैं और उनका दर्शन करके मन्नत मांगते हैं। मन्नत पूरी होने पर अगली नाग पंचमी में फिर से नाग देवता का दुग्धाभिषेक करते हैं।
नाग पंचमी के अवसर पर हर वर्ष नाग मंदिर समिति की ओर से महारुद्र यज्ञ एवं शिव महापुराण कथा का आयोजन किया जाता है। कथा से पूर्व कलश और शोभायात्रा निकाली जाती है जो स्थानीय पर्वतीय क्षेत्रों में होते हुए नाग मंदिर में समाप्त होती है। कलश यात्रा के दौरान महिलाएं अपने सिर पर रखे कलश को हटाती नहीं हैं। क्योंकि कलश यात्रा के बिना कलश शोभायात्रा अधूरी मानी जाती है। इसलिए महिलाएं बड़ी श्रद्धा के साथ कलश यात्रा में भाग लेती हैं। इस अवसर पर श्रद्धालु और पर्यटक नाग देवता की डोली के दर्शन कर पुण्य प्राप्त करते हैं। कथा के समापन पर विशाल भंडारे का आयोजन भी किया जाता है।
मसूरी की रहने वाली ग्राम्य विकास विभाग में सहायक परियोजना निदेशक नलिनीत घिल्डियाल बताती हैं कि मसूरी के क्षेत्र के स्थानीय लोगों के कुल देवता नाग हैं, जो कोई भक्त इस मंदिर से सच्चे मन से मन्नत मांगता है, नाग देवता उसकी मुराद अवश्य ही पूरी करते हैं।