राह चलते या गली मुहल्लों में होने वाले झगड़े या अन्य वारदातों पर पीसीआर की गाड़ियों को लोग तुरंत घटनास्थल पर पहुंचने का सबसे नायाब तरीका और उपाय मानते आ रहे हैं। लेकिन एक आयुक्त ने तो अपनी किरकिरी कराने के लिए ही सही कई ऐसे फैसले कर गए जिसे अब एक-एक कर बदलना पड़ रहा है।
इन्हीं फैसलों में एक आदेश निकाला गया कि पीसीआर अब थाने के अंग होंगे। एसएचओ और जिले के आला अधिकारी के अधीन ही काम करेंगें। एक बारगी तो पुलिस वाले भी चौंके लेकिन आयुक्त के आगे किसकी हिम्मत? लेकिन वही हुआ जिसका अंदेशा था। ऐसे फरमान देने वाले आयुक्त बदल गए। नए आयुक्त ने फरमान निकाला कि-पीसीआर स्वतंत्र इकाई के रूप में ही सही है और पूर्व के आदेश को निरस्त करते हुए अब पहले की तरह पीसीआर काम करेंगे। अब पुलिस मुख्यालय को अन्य कई उन फरमानों के बदलने का भी इंतजार है जो पूर्व पुलिस आयुक्त ने जारी किया था।
दो मंत्रियों के इस्तीफे
दिल्ली की सत्ता पर काबिज पार्टी के दो वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्रियों पर कथित तौर पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। इनमें से एक तिहाड़ जेल में हैं। पार्टी जहां एक ओर दावा कर रही है कि दोनों को झूठे मामलों में फंसाया गया है। वहीं, दूसरी और दोनों नेताओं से इस्तीफे ले लिए गए। इससे पार्टी के अंदरखाने चर्चा जोरों पर है।
हालांकि, दोनों के इस्तीफे एक दिन ही लिए गए हैं और संदेश देने की कोशिश की गई है कि सरकारी कामकाज पर कोई असर नहीं पड़ा है। लेकिन, जिस हिसाब से मुख्यमंत्री की सक्रियता बढ़ी है। उससे तो यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि पार्टी भी अंदरखाने आकलन कर रही है कि कहीं इसका खामियाजा आने वाले दिनों में न भुगतना पड़े।
आयुक्त की तलाश
निगम के आयुक्त की दोनों महत्त्वपूर्ण बैठकों में उनकी कुर्सी लगी रहती है। लेकिन एकीकरण के बाद आयुक्त ने तो ठीक से कार्यभार संभाला भी नहीं कि संदेश आ गया कि उनकी प्रतिनियुक्ति समाप्त हो गई और वे मूल कैडर में वापस चलें जाएं। अब नए आयुक्त की तलाश इसलिए जरूरी हो गई है चूंकि निगम में आप की सत्ता है और केंद्र में भाजपा की। फिर छोटी-छोटी बातों और फैसलों पर बवाल तो होना ही है, सो आयुक्त की तलाश के लिए संबंधित विभाग चिंतित है।
रेरा से मदद का लंबा इंतजार
बिल्डर व खरीदारों के बीच के विवाद के समाधान के लिए बनाए गए नियामक रेरा भले ही उप्र में अपना उल्लेखनीय प्रदर्शन बयां कर रहा है लेकिन उलझे हुए ज्यादातर मामलों के सुलझने का अभी लंबा इंतजार है। रेरा के लागू होने से पहले की परियोजनाओं के खरीदारों की सार्थक सुनवाई इस बिना पर नहीं हो रही है कि तब उसके नियम प्रभावी नहीं थे।
बड़ी संख्या में ऐसी परियोजनाओं के विकासकर्ता खरीदारों की पूंजी लेकर ना तो निर्माण पूरा कर रहे है और ना ही उसे कब्जा मिल पा रहा है। वहीं, एक और डर कि बकाए का भुगतान नहीं होने की दशा में यदि प्राधिकरण उस परियोजना का आबंटन निरस्त कर देता है, तो जीवन भर की पूंजी बिल्डर को सौंप चुके खरीदारों की कौन सुध लेगा। वर्तमान में रेरा से सार्थक मदद मिलने की आस है, जो कब पूरी होगी, इंतजार जारी है।
-बेदिल