दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को मांग की कि देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न जाने-माने पर्यावरणविद् सुंदर लाल बहुगुणा को मरणोपरांत दिया जाए। उत्तराखंड में चिपको आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा की 94 वर्ष की अवस्था में 21 मई को एम्स, ऋषिकेश में कोविड-19 से निधन हो गया था।
केजरीवाल ने कहा कि वे इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखेंगे। उन्होंने दिल्ली विधानसभा में स्वर्गीय बहुगुणा को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित कार्यक्रम में यह टिप्पणी की। इस मौके पर उनके नाम पर एक पौधा भी लगाया गया और बहुगुणा जी की एक तस्वीर का भी अनावरण किया गया। मुख्यमंत्री ने कहा कि बहुगुणा जी पूरी दुनिया में अपने काम के लिए जाने गए और उनका प्रत्येक पल लोगों को प्रेरित करने वाला रहा।
चिपको आंदोलन भारत में एक वन संरक्षण आंदोलन था, जिसे 1973 में उत्तराखंड के हिमालय की तलहटी (जो तब उत्तर प्रदेश का हिस्सा था) में बहुगुणा द्वारा शुरू किया गया था। बाद में यह दुनिया भर में कई पर्यावरण आंदोलनों के लिए एक रैली स्थल बन गया।
नौ जनवरी, 1927 को टिहरी जिले में जन्मे बहुगुणा को चिपको आंदोलन का प्रणेता माना जाता है। उन्होंने सत्तर के दशक में गौरा देवी तथा कई अन्य लोगों के साथ मिलकर जंगल बचाने के लिए चिपको आंदोलन की शुरूआत की थी। पद्मविभूषण तथा कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित बहुगुणा ने टिहरी बांध निर्माण का भी बढ़-चढ़ कर विरोध किया और 84 दिन लंबा अनशन भी रखा था । एक बार उन्होंने विरोध स्वरूप अपना सिर भी मुंडवा लिया था।
टिहरी बांध के निर्माण के आखिरी चरण तक उनका विरोध जारी रहा । उनका अपना घर भी टिहरी बांध के जलाशय में डूब गया । टिहरी राजशाही का भी उन्होंने कडा विरोध किया जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
वह हिमालय में होटलों के बनने और लक्जरी टूरिज्म के भी मुखर विरोधी थे। महात्मा गांधी के अनुयायी रहे बहुगुणा ने हिमालय और पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए कई बार पदयात्राएं कीं । वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कट्टर विरोधी थे।