जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने शनिवार (7 मई) को कहा कि भारत में आदिवासियों की स्थिति काफी खराब है। समाज के हाशिए पर स्थित इन समुदायों को एकजुट करने, इनमें आत्मविश्वास भरने और जमीनी स्तर पर इनकी विकास की योजनाओं को आगे बढ़ाने की जरूरत है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद और नेशनल कंफेडरेशन ऑफ दलित आदिवासी आर्गेनाइजेशन के कार्यक्रम में मदनी ने कहा कि भारतीय समाज में दलित, आदिवासी और मुसलिम सबसे बड़े वंचित वर्गों में शामिल हैं। इनकी आबादी काफी अधिक है। इन वर्गों के विकास और सम्मान से जीने के अधिकार को सुनिश्चित किए बिना समावेशी समाज और सबके विकास की संकल्पना साकार नहीं हो सकती है।
नेशनल कंफेडरेशन आफ दलित आदिवासी ऑर्गेनाइजेशन के अशोक भारती ने कहा कि दलितों, आदिवासियों को आज भी समाज में भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। मुसलिम विकास की मुख्य धारा से अभी भी दूर हैं। विभिन्न संस्थाओं में भी उनका समानुपातिक प्रतिनिधित्व नहीं है। चाहे, प्रशासन, मीडिया, शिक्षा या कोई और क्षेत्र क्यों न हो। इस समस्या से निपटने के लिए एकीकृत पहल किए जाने की जरूरत है। समाजसेवी कमाल फारूकी ने कहा कि दलितों, मुसलमानों, आदिवासियों को सम्मानजनक जीवन के लिए इनकी आबादी के अनुपात में सभी क्षेत्रों में प्रतिनिधित्व दिया जाए। उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य स्तर पर सरकार इन समुदायों के उत्थान के लिए गंभीरता से कदम उठाए और पेयजल, स्वच्छता, आजीविका, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी इनकी चिंताओं को दूर करने की पहल करे। इन वर्गों के मानवाधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए।
हिंदू कॉलेज के प्रो. रतनलाल शर्मा ने कहा कि भारत के समग्र विकास के लिए सांप्रदायिक सौहार्द सबसे जरूरी तत्त्व है। कुछ लोग इस माहौल को खराब करने का प्रयास करते रहते हैं लेकिन सभी नागरिकों का कर्तव्य है कि हम ऐसे तत्त्वों के बुरे इरादों को परास्त करें। बैठक के दौरान सामाजिक सौहार्द बनाने और एकता कायम रखने का संकल्प लिया गया।