छत्तीसगढ़ के बीजापुर में शनिवार को माओवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में मारे गए जवानों की संख्या बढ़कर 22 हो गई है। रविवार की सुबह बीजापुर जिला अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए एक जवान ने इस घटना के बारे में बताया। जवान अबतक इस भयावह घटना से अबतक बाहर नहीं आ पाया है। जवान के पैर में छर्रे लगे हुए हैं और हाथ पर बंदूक का घाव है।
जवान का मानना है कि उन्हें और उनके साथियों को नक्सलियों ने अपने जाल में फंसाया था। जवान ने बताया “हमें जहां बुलाया गया था जब हम उस स्थान पर पहुंचे तो वहां कुछ नहीं था। जब हम वापस जाने लगे तो उन्होंने हमला कर दिया। अचानक से बहुत सारे लोग वहां आ गए, इसका मतलब यह पहले से प्लान किया हुआ था।” ऑपरेशन के बारे में सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि 10 टीमों को इसके लिए तैयार किया गया था। दो सुकमा जिले से थी और आठ बीजापुर के तीन शिविरों से ली गई थी।
यह एक बड़ा ऑपरेशन था जिसमें अकेले बीजापुर के एक हजार कर्मियों के साथ छत्तीसगढ़ पुलिस की एसटीएफ, डीआरजी और जिला बल, सीआरपीएफ और इसकी कोबरा इकाई भी शामिल थी। बीजापुर की आठ टीमों में से छह को तरेम शिविर से लॉन्च किया गया, जबकि अन्य दो उस्सुर और पामेड से थे।
छत्तीसगढ़ पुलिस ने कहा है कि नक्सलियों के बटालियन 1 के कमांडर हिडमा की उपस्थिति की जानकारी इंटेलिजेंस ने दी थी। खुफिया सूचनाओं के आधार पर इस ऑपरेशन को अंजाम दिया गया था। कोबरा ने भी इस बात की पुष्टि की है कि मुठभेड़ हिडमा की बटालियन 1 से ही हुई थी।
जवान रविवार दोपहर को अपने साथियों के शव को वापस लाने के लिए, उनकी टीम के अन्य सदस्यों के साथ लौट आया। बैकड्रॉप में पेड़ से ढकी पहाड़ी की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, “हम वहीं से पूरी तरह से कवर थे। हमने अपने घायलों और मृतकों को ले जाने की कोशिश की, लेकिन आखिरकार, उन्हें पीछे छोड़ना पड़ा। ”
रविवार की दोपहर अपने साथियों के शव को वापस लाने आज्ञे एक जवान ने बैकड्रॉप में पेड़ से ढकी पहाड़ी की ओर इशारा करते हुए कहा “हम वहीं से पूरी तरह से कवर थे। हमने अपने घायलों और मृतकों को ले जाने की कोशिश की, लेकिन गोलीबारी इतनी ज्यादा थी कि उन्हें वहीं छोड़ना पड़ा।”
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा “जाहिर है, हमला बहुत भयावह था। इतनी ज्यादा गोलीबारी हो रही थी कि जवान अपने कैंप की तरफ भागे। कुछ लोग पीछे छूट गए और लगते हुए शहीद हो गए। इस वास्तविकता से कोई छिपा नहीं है। रात तक, हमारे पांच जवान मर चुके थे और 21 को हम वहां छोड़कर आ गए थे।”
अधिकारी ने बताया “नक्सलियों के पास इतना समय था कि उन्होने हमारे जवानों के सारे हथियारों और उपकरणों को छीन लिया और शव घंटों तक वहां पड़े रहे। सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि यह घटना जंगल के ज्यादा अंदर नहीं हुई। पत्रकार कुछ ही समय में अगली सुबह मौके पर पहुँच गए क्योंकि यह शिविरों और मुख्य सड़क से केवल आधे घंटे की दूरी पर है।”
अधिकारी ने कहा कि हम अपने कैंप के इतने पास नक्सलियों के जाल में कैसे फंस गए, इसकी जांच होना बहुत जरूरी है। हमें नक्सलियों की रणनीति और अपने स्वयं पर गंभीर विचार करना होगा।