छत्तीसगढ़ः विधानसभा के बाद लोकसभा चुनाव में भी भाजपा के लिए मुश्किलें, इतिहास दोहराया तो लगेगा बड़ा झटका
छत्तीसगढ़ का इतिहास बताता है कि यहां जिसे विधानसभा में ज्यादा सीटें मिली उसे ही लोकसभा में भी भारी बढ़त मिली है।

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार का असर सिर्फ यहीं तक सीमित रहने वाला नहीं है। यदि इतिहास ने खुद को दोहराया तो भाजपा के लिए यहां से विधानसभा और राज्यसभा के साथ-साथ लोकसभा चुनाव में भी मुश्किल खड़ी हो जाएगी। दरअसल 2000 में मध्य प्रदेश से अलग होने के बाद राज्य में चार बार विधानसभा और तीन बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। पहले तीन विधानसभा चुनाव में जिस पार्टी ने जीत दर्ज की उसी पार्टी को राज्य में लोकसभा में ज्यादा सीटें मिली हैं। ऐसे में 2018 विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में झटका दे सकते हैं।
मध्य प्रदेश से अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ में…
चुनाव | विधानसभा | लोकसभा (निर्वाचित सदस्य) |
पहला | भाजपा- 50, कांग्रेस- 37 | भाजपा- 09, कांग्रेस- 02 |
दूसरा | भाजपा- 50, कांग्रेस- 38 | भाजपा- 10, कांग्रेस- 01 |
तीसरा | भाजपा- 49, कांग्रेस- 39 | भाजपा- 10, कांग्रेस- 01 |
चौथा | भाजपा- 68, कांग्रेस- 15 | अभी चुनाव नहीं हुए |
रमन सिंह के क्षेत्र में भी मुश्किल में भाजपा
इन विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनाव के लिहाज से सेमीफाइनल माना जा रहा था। ऐसे में विधानसभा चुनाव की 90 में से महज 15 सीटों पर सिमटी भारतीय जनता पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। संसदीय क्षेत्रों के लिहाज से आकलन करें तो 11 क्षेत्रों में से तीन (कांकेर, रायगढ़ और सरगुजा) की विधानसभा सीटों पर भाजपा का पूरी तरह से सफाया हो चुका है। वहीं दो (बस्तर और दुर्ग) में सिर्फ एक-एक विधानसभा सीटें जीती हैं। मुख्यमंत्री रमन सिंह के क्षेत्र राजनांदगांव में भी यहां सिर्फ उन्हीं की सीट भाजपा के पास बची है। इसके अलावा छह सीटें कांग्रेस और एक जोगी कांग्रेस के खाते में चली गई है।