Karnataka Assembly Elections: भारतीय जनता पार्टी (BJP) कर्नाटक (Karnataka) के अपने दक्षिणी गढ़ को बनाए रखने के लिए आर-पार की लड़ाई की तैयारी कर रही है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा (National President) ने शनिवार को केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान (Education Minister Dharmendra Pradhan) को कर्नाटक का चुनाव प्रभारी (Election In-charge) नियुक्त किया। इसके साथ ही तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष के अन्नामलाई (K Annamalai) को वहां का सह प्रभारी नियुक्त किया है।
UP, Bihar, West Bengal में दिखा धर्मेंद्र प्रधान का असर
धर्मेंद्र प्रधान (Dharmendra Pradhan) ने पिछले साल उत्तर प्रदेश में भाजपा की प्रभावशाली वापसी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इससे पहले वह बिहार में पार्टी के चुनाव प्रभारी और कर्नाटक और उत्तराखंड में पार्टी मामलों के प्रभारी थे। वह पश्चिम बंगाल में नंदीग्राम के चुनाव प्रभारी थे। हालांकि, बंगाल विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी भारी जीत के बावजूद टीएमसी नेता और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से हार गई थी।
कर्नाटक में धर्मेंद्र प्रधान उठा सकते हैं कड़े कदम
धर्मेंद्र प्रधान के बारे में कहा जाता है कि उन्हें पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) का विश्वास प्राप्त है। उम्मीद की जाती है कि वे कर्नाटक में उम्मीदवारों का चयन करने में कड़ा रुख अपनाएंगे। वह गुटबाजी से ग्रस्त प्रदेश भाजपा में उन लोगों से परहेज करेंगे जो सत्ता विरोधी लहर का सामना कर सकते हैं। साथ ही वह सभी गुटों में से एकजुट चेहरा सुनिश्चित करने में भी कामयाब हो सकते हैं।
यूपी में पिछड़ों के एक बड़े वर्ग को लामबंद करने में कामयाबी
धर्मेंद्र प्रधान ने उत्तर प्रदेश में पार्टी नेतृत्व और कैडर दोनों से प्रशंसा अर्जित की थी। यूपी में भाजपा पिछड़े वर्गों के एक बड़े वर्ग को लामबंद करने में कामयाब रही और अपनी चुनावी रणनीति के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में गरीबों के कल्याण में सफलतापूर्वक काम किया। इससे पहले यूपी चुनाव में भाजपा केवल योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) सरकार की कानून व्यवस्था की उपलब्धियों पर ही केंद्रित थी। सूत्रों के मुताबिक, प्रधान पार्टी के नेताओं और कैडर को पार्टी के अभियान में विभिन्न वर्गों के लिए केंद्रीय कल्याणकारी योजनाओं पर जोर देने के लिए राजी करने में सफल रहे थे।
Tamil Nadu में बेहतर काम के लिए अन्नामलाई की सराहना
दूसरी ओर भाजपा सूत्रों ने कहा कि तमिलनाडु (Tamil Nadu) में एक प्रासंगिक विपक्ष की आवाज के रूप में पार्टी को उठाने में सफल रहे प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई (K Annamalai) की नियुक्ति भी कर्नाटक में काफी महत्वपूर्ण है। वह तमिलनाडु में अभी भी चुनावी रूप से उभरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कर्नाटक के लिए उनको लाया जाना “पार्टी नेतृत्व द्वारा तमिलनाडु में उनके काम के लिए सराहना का संकेत है।
पार्टी के एक नेता ने कहा, “अन्नामलाई के नेतृत्व ने भाजपा को तमिलनाडु में सबसे अधिक सुनी जाने वाली राजनीतिक आवाजों में से एक बना दिया है। वह विभिन्न वर्गों-खासतौर पर युवाओं-को भाजपा के बारे में जागरूक करने में सफल रहे हैं। वह राज्य भर में यात्रा करते रहते हैं, बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत करते हैं और व्यवस्थित तरीके से विभिन्न वर्गों के लोगों से मिलते हैं।”
कर्नाटक में क्या होगी दोनों नेताओं की अहम रणनीति
कर्नाटक में सत्ता को बनाए रखने में पार्टी को एक कठिन कार्य का सामना करना पड़ रहा है, प्रधान और अन्नामलाई से अपेक्षा की जाती है कि वे सोशल मीडिया (Social Media) और प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए सावधानीपूर्वक भाजपा की रणनीतियों की योजना बनाएं और उन्हें लागू करें। कर्नाटक जीतना भाजपा के “दक्षिण मिशन” के लिए और दक्षिणी राज्यों में अपने चुनावी आधार का विस्तार करने के लिए महत्वपूर्ण है।
कर्नाटक में क्या है लिंगायत और वोक्कालिगा का सियासी समीकरण
कर्नाटक में अब तक लिंगायत (Lingayat) वोटों पर काफी हद तक निर्भर बीजेपी ने पुराने मैसूरु क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने की योजना विकसित की है। वहां वोक्कालिगा हावी हैं। पारंपरिक जन समर्थन आधार को नष्ट कर सकने में सक्षम मजबूत सत्ता-विरोधी लहर के डर से भारतीय जनता पार्टी इस क्षेत्र में अपनी स्थिति में सुधार के लिए मजबूत और लोकप्रिय वोक्कालिगा नेताओं तक पहुंच रही है। यह क्षेत्र 89 विधायकों को विधानसभा में भेजता है। 2008 में अपने चरम पर भाजपा ने पुराने मैसूरु के 11 जिलों में से केवल 28 सीटें जीतीं थीं। इनमें 17 अकेले बेंगलुरु क्षेत्र (Bengaluru) से जीत हासिल हुई थी। वहीं, 2018 में बीजेपी इन 89 में से सिर्फ 22 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी थी।
कर्नाटक में गठबंधन राजनीति का क्या होगा
कर्नाटक में जनता दल (सेक्युलर) के साथ समझौते की अटकलों को खत्म करते हुए भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने यह भी घोषणा की है कि वह अकेले चुनाव लड़ेगी। भाजपा सूत्रों ने कहा कि यह भी गणना की गई थी, क्योंकि भाजपा के बिना जद (एस) अपने दम पर लड़ रही है। वह कांग्रेस की नजर वाले मुस्लिम वोटों को विभाजित करने में मदद कर सकती है। त्रिशंकु विधानसभा (Hung assembly) की स्थिति में यह पार्टी को चुनाव के बाद का गठबंधन सहयोगी भी बना सकता है।