अगले महीने (अक्टूबर-नवंबर) बिहार में विधान सभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सभी राजनीतिक पार्टियां जातीय समीकरण साधने और चुनावी गोटी बिठाने में जुटी हुई हैं। राज्य की 243 सीटों वाली विधानसभा में करीब चार दर्जन (47) सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटरों का न सिर्फ दबदबा है बल्कि वो उम्मीदवारों की हार-जीत तय करते हैं। इन सीटों पर मुस्लिम आबादी 20 से 40 फीसदी तक है।
राज्य में 16 फीसदी मुस्लिम आबादी और करीब 14 फीसदी यादव वोटरों को राजद अपना वोट बैंक समझता रहा है। इसी के सहारे लालू-राबड़ी ने पंद्रह वर्षों तक शासन किया। अब लालू के लाल भी उसी वोट बैंक की बदौलत सत्ता में वापसी का सपना देख रहे हैं लेकिन आंकड़े बताते हैं कि ये राह आसान नहीं है। राज्य में कमोबेश साल 2010 के चुनाव सी परिस्थितियां हैं। सत्तारूढ़ जेडीयू और बीजेपी दोनों एकसाथ हैं। तेजस्वी के मुकाबले अभी भी नीतीश बड़ा चेहरा हैं। इसके अलावा नीतीश ने अब दलित वोटों को साधने के लिए जीतनराम मांझी को भी साथ कर लिया है। हालांकि, लोजपा बिदकती दिख रही है।
साल 2010 सा सियासी समीकरण और नजारा:
2010 में भी लोजपा एनडीए गठबंधन के साथ नहीं थी, तब भी 40 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी वाली 11 विधान सभा सीटों पर एनडीए (बीजेपी-4 और जेडीयू-1) पांच सीटों पर जीती थी। राजद सिर्फ एक सीट जबकि कांग्रेस दो सीट जीत सकी थी। 30 से 40 फीसदी मुस्लिम आबादी वाली 7 विधानसभा सीटों पर एनडीए (बीजेपी-5 और जेडीयू-1) ने छह सीटें जीती थीं।
इसी तरह ऐसी 29 सीटें हैं, जहां मुस्लिम आबादी 20 से 30 फीसदी हैं। इन 29 में से 27 सीटों (बीजेपी-16 और जेडीयू-11) पर एनडीए ने जीत दर्ज की थी। राजद के खाते में सिर्फ एक सीट गई थी। कुल मिलाकर 47 में से 38 सीटें एनडीए ने जीती थीं।
ओवैसी ने ठोकी ताल:
AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने राज्य के मुस्लिम बहुल 22 जिलों की 32 विधान सभा सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान किया है। खास बात ये है कि जिन 32 सीटों को AIMIM ने चिन्हित किया है उनमें से दो तिहाई सीटों पर मौजूदा समय में महागठबंधन का कब्जा है। इनमें से सात पर राजद, दो पर कांग्रेस और एक पर सीपीआई (एमएल) के विधायक हैं। ये सभी विधायक मुस्लिम हैं। बता दें कि साल 2015 के चुनावों में भी ओवैसी ने खासकर सीमांचल में छह सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन एक पर जीत दर्ज नहीं करा सकी।
बाद में एक सीट पर हुए उपचुनाव में ओवैसी की पार्टी ने बिहार में भी खाता खोल लिया। इससे उत्साहित ओवैसी 2015 के मुकाबले पांच गुना से भी ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने की तैयारी में हैं। अगर ऐसा होता है तो राजद महागठबंधन के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगना स्वभाविक है।
पुराने साथियों को साधने में जुटे नीतीश:
2015 के चुनावों में कोशी और सीमांचल की दर्जनभर सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी और जेडीयू ही नंबर एक या दो पर रही हैं। इन दोनों दलों के एक होने के बाद से इन सीटों पर उनकी जीत की संभावना प्रबल हो सकती है। इनके अलावा जेडीयू ने यादव और मुस्लिम सितारों पर भी फोकस किया है। इसी कड़ी में संभावना जताई जा रही है कि मधेपुरा से चार बार सांसद रहे अपने पूर्व अध्यक्ष शरद यादव को भी जेडीयू पार्टी में वापसी कराने पर विचार कर रही है। 1991 से ही शरद यादव का कोशी के इस इलाके पर प्रभाव रहा है।